गर्भावस्था अपने आप में महत्वपूर्ण समय में से एक है। गर्भधारण के पश्चात गर्भवती महिला के शरीर में हलचल होनी शुरू हो जाती है, जिसके परिणाम शरीर में बाहरी रूप से दिखाई पड़ने लगते है। विकास की प्रांरभिक अवस्था के लक्षण शुरूआत में निरंतर बदलते रहते हैं। गर्भावस्था के दौरान गर्भवती स्त्री के हार्मोंस में तेजी से बदलाव आता है। प्रत्येक महीने में ये बदलाव और भी अधिक तेज हो जाते है। एक महीने के गर्भ में भी बच्चे के विकास को देखा जा सकता है। आइए जानते हैं भ्रूण महीने से विकास महीने के बारे में।
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भ्रूण महीने से विकास महीने को तीन ट्राइमेस्टर में बांटा जा सकता है।
1. पहला ट्राइमेस्टर
जिसमें एक से तीन महीने शामिल होते हैं यानी एक से 12 सप्ताह। गर्भावस्था में शुरूआत के तीन महीने बहुत अहम होते हैं क्योंकि इस दौरान गर्भवती महिला के शरीर में काफी बदलाव होते हैं। शरीर में परिवर्तित हो रहे हार्मोंस के बीच भ्रूण भी लगातार विकसित हो रहा होता है। एक महीने के गर्भ में हार्मोंस के बदलावों के साथ-साथ स्तहनों, त्वूचा और मूड में बदलाव दिखाई देने लगता है। प्रत्येंक महीने समय के साथ-साथ स्वाहद में भी परिवर्तन होने लगता है, जिससे अतिरिक्त देखभाल की आवश्येकता होने लगती है। शुरूआत के तीन महीनों यानी विकास की प्रारंभिक अवस्थाक में बच्चे के अंग बनते हैं। होने वाले बच्चेी के विकास के दौरान गर्भवती महिला को थकान, मितली और उलटी,शरीर में सूजन इत्याेदि की शिकायत सबसे ज्यादा शुरूआती महीनों में ही होती है। ऐसे में कई बार वजन अधिक बढ़ जाता है तो कुछ महिलाओं का वजन कम हो जाता है। हालांकि इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं है क्योंककि महिलाओं के खान-पान और जीवनशैली का इस पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
पहला हफ्ता | दूसरा हफ्ता | तीसरा हफ्ता | चौथा हफ्ता | पाँचवा सप्ताह | छटा सप्ताह | सातवाँ सप्ताह | आठवां सप्ताह | नौंवा सप्ताह | दसवाँ सप्ताह | ग्यारहवां हफ्ता | बारहवां हफ्ता
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2. दूसरा ट्राइमेस्टर
इसमें चार से छह महीने शामिल होते हैं यानी 13 से 24 सप्ताह। दूसरा ट्राइमेस्टतर पहले ट्राइमेस्टर के मुकाबले अधिक सामान्ये होता है क्योंकि इस दौरान भ्रूण और मां दोनों ही एडजस्टा हो जाते है। इन महीनों में गर्भवती मां न सिर्फ व्यायाम कर सकती है बल्कि पहले से अधिक सक्रिय भी हो सकती है। बच्चे के घूमने के बारे में इसी ट्राइमेस्ट र में अहसास होने लगता है। शुरूआत में कंपन और बाद में बच्चे के अच्छे से घूमने का अहसास दिलाता है। कुछ महिलाओं के चेहरे पर इस समय में झांइयां भी दिखाई देने लगती है और पेट पर खिंचाव के निशान पड़ सकते हैं।गर्भाशय और स्तनों केआकार में वृद्धि होती है। होने वाले बच्चेा के विकास के दौरान मां को सबसे अधिक पौष्टिक आहार लेना चाहिए और डॉक्ट र की सलाह पर व्याियाम आरंभ कर देने चाहिए है। प्रत्ये्क महीने बच्चेा का विकास होता है और दूसरे ट्राइमेस्टलर में बच्चाक लगतार विकसित हो रहा होता है और बच्चेम का सोनोग्राफी के माध्यहम से गर्भ में बच्चेर को देखा जा सकता है।
तेरहवां हफ्ता | चौदहवां हफ्ता | पंद्रहवा हफ्ता | सोलहवां हफ्ता | सत्रहवाँ सप्ताह | अठाहरवां सप्ताह | उन्नीसवां सप्ताह | बीसवाँ सप्ताह | इक्कीसवाँ सप्ताह | बाईसवाँ सप्ताह | तेइसवां हफ्ता | चौबीसवां हफ्ता
3. तीसरा ट्राइमेस्टर
इस में सात से नौ महीने और उसके बाद के समय को शामिल किया जाता है। जिसमें 25 से 36 सप्ताह या 40-42 सप्ताहों को भी शामिल किया जाता है। इस समय में बच्चेह का विकास तीव्र गति से होने लगता है और मां का वजन भी बढ़ने लगता है। ये समय सबसे ज्या दा ध्यान रखने वाला होता है क्योंगकि जरा भी चूक इस माह में गर्भपात का खतरा बढ़ा देती है। इस ट्राइमेस्टेर में पेट काफी बढ़ जाता है, जिससे सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगती है साथ ही पैरों में सूजन और थकान हो जाती है। कमजोरी के कारण अधिक देर तक एक जगह बैठना मुश्किल लगता है। शरीर के विभिन्न हिस्सोंा में खुजली की शिकायत होने लगती है और पेट के निचले हिस्सेत में स्ट्रेच मार्क्स पड़ने लगते है। कई बार त्वोचा रूखी हो जाती है। इस समय में बहुत ज्याेदा स्रिकयता नहीं दिखानी चाहिए और कोई भी परेशानी आने पर तुरंत डॉक्टमर को संपर्क करना चाहिए।
पच्चीवसवां हफ्ता | छब्बीसवां हफ्ता | सत्ताईसवाँ हफ्ता | अट्ठाईसवाँ हफ्ता | उनत्तीसवाँ सप्ताह | तीसवाँ सप्ताह | इकतीसवाँ सप्ताह | बत्तीसवाँ सप्ताह | तैतिसवां सप्ताह | चौतीसवाँ सप्ताह | पैतीसवाँ हफ्ता | छत्तीसवाँ हफ्ता | सैंतीसवां हफ्ता | अड़तिसवां हफ्ता | उनतालिस हफ्ता | चालीसवां हफ्ता | इत्तालीसवां हफ्ता | बयालिसवां हफ्ता
पूरी गर्भावस्था के दौरान हर महिला को नियमित रूप से अपना चैकअप कराना चाहिए। जांच के दौरान गर्भवतीमहिला का वजन ,ब्लड प्रेशर, हीमोग्लाबिन,बच्चें का विकास, विकास की प्रारंभिक अवस्था , एक महीने के गर्भ के बाद और प्रत्ये क महीने जांच कराना होने वाले बच्चे और गर्भवती महिला दोनों के लिए अच्छा रहता है।
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