प्रेग्नेंसी एक खूबसूरत एहसास है। ये 9 महीने का सफर जितना महिलाओं के लिए खास और खूबसूरत होता है, उतना ही संवेदनशील भी माना जाता है। प्रेग्नेंसी में महिलाओं के शरीर में कई प्रकार के बदलाव होते हैं। साथ ही, समय के साथ गर्भ में स्थिति शिशु में भी कई प्रकार के बदलाव आते हैं। प्रेग्नेंसी का जैसे-जैसे समय बीतता है वैसे-वैसे गर्भ का आकार और भार दोनों ही बढ़ता है। प्रेग्नेंसी जब अपने आखिरी दौर यानी की 36 से 38 सप्ताह तक पहुंचती है, तो बच्चा डिलीवरी के लिए सिर नीचे और पैर ऊपर की ओर हो जाता है, जिसे सेफेलिक प्रेजेंटेशन (Cephalic Presentation) कहते हैं।
लेकिन कई बार बच्चा गर्भ में उल्टा रह जाता है, यानी उसका सिर ऊपर और पैर नीचे की ओर होता है, तो इसे ब्रीच प्रेजेंटेशन (Breech Presentation) कहा जाता है। फरीदाबाद स्थित क्लाउडनाइन अस्पताल में एसोसिएट निदेशक और वरिष्ठ स्त्री रोग सलाहकार डॉ. शैली शर्मा (Dr. Shailly Sharma, Senior Consultant Gynaecology and Associate Director at Cloudnine Hospital, Faridabad) बताती हैं कि ब्रीच प्रेजेंटेशन एक स्थिति है, जिसके कारण महिलाओं की नॉर्मल डिलीवरी मुश्किल हो जाती है। इस स्थिति का सामना करने वाली महिलाओं को ज्यादा दर्द और परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
ब्रीच प्रेजेंटेशन पर क्या कहते हैं आंकड़े
इंडियन जनरल ऑफ रिप्रोडक्शन के आंकड़े बताते हैं कि भारत में लगभग 25% बच्चे प्रेग्नेंसी के 28वें सप्ताह तक ब्रीच पोजीशन में रहते हैं। हालांकि 37वें सप्ताह तक पहुंचते हुए यह संख्या घटकर 3-4% रह जाती है। यानी, ज्यादातर बच्चे गर्भ के अंतिम महीने तक खुद-ब-खुद अपनी सही पोजीशन ले लेते हैं। लेकिन कुछ बच्चे गर्भ में कई कारणों से सही पोजीशन नहीं ले पाते हैं।
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ब्रीच प्रेजेंटेशन के कारण
डॉ. शैली शर्मा के अनुसार, कुछ बच्चे डिलीवरी से पहले भी ब्रीच पोजीशन में ही क्यों रह जाते हैं, इस पर अभी भी कई रिसर्च जारी है। वर्तमान में ऐसा कोई जानकारी मौजूद नहीं, जिससे बच्चे के ब्रीच पोजीशन का पता चल सके। डॉक्टर के अनुसार फिलहाल ब्रीच प्रेजेंटेशन के कारण हैं, उनमें शामिल हैः
1. कम एम्नियोटिक फ्लूइड (Oligohydramnios)
कुछ महिलाओं के शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलावों के कारण उनके शरीर में एम्नियोटिक फ्लूइड कम बन पाता है। इससे बच्चा गर्भ के अंदर सही तरीके से अपने है और पैर को नहीं फैला पाता है और सही पोजीशन में नहीं आ पाता है।
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2. गर्भाशय की असामान्य बनावट (Uterine Abnormalities)
प्रेग्नेंसी कंसीव के दौरान महिलाओं के गर्भाशय में सेप्टम या फाइब्रॉइड की मौजूदगी के कारण भी बच्चा अपनी पोजीशन सही नहीं कर पाता है।
3. मल्टीपल प्रेग्नेंसी
जिन महिलाओं को जुड़वा या तीन बच्चों की प्रेग्नेंसी होती है, उस स्थिति को मल्टीपल प्रेग्नेंसी कहा जाता है। इस स्थिति में गर्भ के अंदर बच्चे के पास मूवमेंट के लिए कम जगह होती है। इसके कारण भी ब्रीच पोजीशन की समस्या आ सकती है।
ब्रीच प्रेजेंटेशन के कारण होने वाली परेशानियां
डॉ. शैली शर्मा के अनुसार, ब्रीच पोजीशन में डिलीवरी आसान नहीं होती। इस स्थिति में मां और बच्चे दोनों के लिए कुछ खतरे हो सकते हैं। आइए आगे जानते हैं इसके बारे में।
- ब्रीच प्रेजेंटेशन की स्थिति में नॉर्मल डिलीवरी की संभावना बहुत ही कम होती है। ऐसे में सिजेरियन डिलीवरी की संभावना बढ़ जाती है।
- ब्रीच प्रेजेंटेशन में डिलीवरी के समय चोट और हैवी ब्लीडिंग का खतरा ज्यादा होता है।
- ब्रीच पोजीशन में अगर डॉक्टर नॉर्मल डिलीवरी करवाने की कोशिश करते हैं, तो इससे सिर फंसने की संभावना ज्यादा होती है।
ब्रीच प्रेजेंटेशन की पहचान कैसे करें?
ब्रीच पोजीशन का पता लगाने के लिए डॉक्टर कई तरीके अपनाते हैं:
फिजिकल एग्जामिनेशन
डॉक्टर पेट को छूकर बच्चे की स्थिति का अंदाजा लगाते हैं।
अल्ट्रासाउंड
डॉपलर टेस्ट
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ब्रीच प्रेजेंटेशन में मां को क्या करना चाहिए
- अगर आपको प्रेग्नेंसी के दौरान ब्रीच प्रेजेंटेशन का पता चलता है, तो कम समय के अंतराल में डॉक्टर से चेकअप करवाते रहें।
- डॉक्टर की सलाह पर ब्रिज पोजीशन और पेल्विक टिल्ट एक्सरसाइज मददगार हो सकती हैं।
- प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाले मानसिक तनाव को कम करने के लिए योग और एक्सरसाइज करें।
- नींद की पोजीशन पर ध्यान दें। ब्रीच प्रेजेंटेशन में बाईं करवट सोना गर्भ के लिए सुरक्षित होता है।
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निष्कर्ष
ब्रीच प्रेजेंटेशन, यानी गर्भ में उल्टा बच्चा, प्रेग्नेंसी के दौरान एक सामान्य लेकिन संवेदनशील स्थिति है। ज्यादातर बच्चे अंतिम महीने तक अपनी सही पोजीशन ले लेते हैं, लेकिन अगर ऐसा नहीं होता, तो मां को घबराने की बजाय मानसिक रूप से शांति से काम लेने की जरूरत होती है।
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