प्रेग्नेंसी के दौरान डिप्रेशन में है मां, तो बच्चों में हो सकती है ये बीमारी: स्टडी

हाल ही में हुए एक शोध के मुताबिक गर्भावस्था में मां के डिप्रेशन में होने से बच्चों में भी इस बीमारी का खतरा रहता है, जानें बचाव के उपाय।
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प्रेग्नेंसी के दौरान डिप्रेशन में है मां, तो बच्चों में हो सकती है ये बीमारी: स्टडी

आज के समय में दुनिया की एक बड़ी आबादी डिप्रेशन या अवसाद की समस्या से पीड़ित है। इसके पीछे खानपान, लाइफस्टाइल और काम के प्रेशर जैसी कई समस्याएं हो सकती हैं। हाल ही में हुए एक शोध के मुताबिक अगर प्रेग्नेंट मां प्रेग्नेंसी के दौरान डिप्रेशन में है तो इसका असर उसके होने वाले बच्चे पर भी पड़ सकता है। बच्चों में किशोरावस्था में डिप्रेशन की समस्या का सबसे प्रमुख कारण आनुवांशिक माना जाता है। गर्भावस्था में में मां के डिप्रेशन में होने से आगे चलकर बच्चे को भी यह समस्या हो सकती है। लेकिन अच्छी बात यह है कि इस समस्या का इलाज किया जा सकता है। प्रेग्नेंसी के दौरान मां के तनावग्रस्त या डिप्रेशन में होने से बच्चे को 24 वर्ष तक की उम्र तक इसके लक्षण विकसित होने का खतरा बना रहता है। यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टॉल की रिसर्च में इस बात को कहा गया है। जामा साइकियाट्री पत्रिका में प्रकाशित यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टॉल की यह रिसर्च चौंकाने वाली है। आइये विस्तार से जानते हैं इसके बारे में।

डिप्रेशन और प्रेग्नेंसी (Depression and Pregnancy) 

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(image source - freepik.com)

यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टॉल के इस जनसंख्या आधारित शोध में कहा गया है कि जिन महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान डिप्रेशन और तनाव जैसी मानसिक समस्याओं से जूझना पड़ता है। गर्भावस्था के दौरान मां के डिप्रेशन में होने के कारण बच्चे के स्वास्थ्य पर कई प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक लगभग 10 से 15 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को डिलीवरी से पहले प्रेग्नेंसी के दौरान डिप्रेशन की समस्या का सामना करना पड़ता है। आज के समय में यह समस्या पोस्टपार्टम डिप्रेशन जितनी सामान्य है। प्रेग्नेंसी के दौरान मां के डिप्रेशन में होने को प्रसवोत्तर अवसाद भी कहा जाता है। गर्भावस्था के दौरान माओं में हार्मोनल परिवर्तन के कारण भावनात्मक बदलाव होते हैं। यह समस्या जब गंभीर हो जाती है तो इसकी वजह से डिप्रेशन और तनाव शुरू होता है। प्रेग्नेंसी के दौरान तनावग्रस्त या डिप्रेशन की शिकार महिलाओं के बच्चों में पहले से ही डिप्रेशन के लक्षण देखे जा सकते हैं। 14 वर्ष के बाद और 24 वर्ष की उम्र तक इन बच्चों को आनुवांशिक कारणों से डिप्रेशन का सबसे ज्यादा खतरा रहता है।

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डिप्रेशन के लक्षण (Depression Symptoms)

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं में हार्मोनल परिवर्तन होते हैं जिनका प्रभाव महिला के मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। इस वजह से धीरे-धीरे महिलाओं में डिप्रेशन के लक्षण विकसित होने लगते हैं। जब यह समस्या गंभीर रूप ले लेती है तो डिप्रेशन और तनाव के लक्षण दिखाई देते हैं। गर्भावस्था में महिलाओं में डिप्रेशन के ये लक्षण देखे जा सकते हैं।

  • भूख की आदत में बदलाव
  • बहुत कम या बहुत ज्यादा भोजन करना
  • नींद की आदतों में बदलाव, नींद से जुड़ी समस्याएं
  • हर समय थकान का अनुभव करना
  • उदासी और निराशा
  • बिना किसी कारण के रोना या चिल्लाना
  • अच्छी चीजों में भी मन न लगना
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गर्भवती महिलाओं पर डिप्रेशन का प्रभाव (How Does Depression Affect Pregnant Women?)

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं में डिप्रेशन की समस्या हार्मोनल बदलाव और कुछ दवाओं के सेवन हो सकती है। डिप्रेशन के लक्षण गंभीर होने पर इसका महिला के ऊपर बुरा असर पड़ता है। इस दौरान डिप्रेशन की वजह से महिलाएं सही ढंग से आराम नहीं कर पाती हैं जिसका असर पेट में पहले रहे बच्चे के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। प्रेग्नेंसी के दौरान महिला के डिप्रेशन में होने की वजह से उनका खानपान भी प्रभावित होता है जिसके कारण महिला के शरीर में पोषक तत्वों की कमी हो सकती है और बच्चे को भी दिक्कतें होती हैं। डिप्रेशन से ग्रसित महिलाओं को प्रीटर्म डिलीवरी का खतरा रहता है। गर्भावस्था के दौरान अगर महिला डिप्रेशन की समस्या से ग्रसित है तो इसका इलाज जरूर किया जाना चाहिए अन्यथा इसकी वजह से बच्चों में डिप्रेशन की समस्या हो सकती है और बच्चे के जन्म के बाद मां को पोस्टपार्टम डिप्रेशन से जूझना पड़ सकता है।

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बेबी ब्लूज और प्रेग्नेंसी के दौरान डिप्रेशन में अंतर (What’s The Difference Between ‘Baby Blues’ And Postpartum Depression?)

बेबी ब्लूज और प्रसवोत्तर अवसाद की समस्या के बीच बड़ा अंतर होता है। कई बार महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान डिप्रेशन के लक्षण को बेबी ब्लूज समझकर अनदेखा कर देती हैं जिसका नकारात्मक असर उनकी और पेट में पल रहे बच्चे की सेहत पर पड़ता है। बेबी ब्लूज आमतौर पर बच्चे के जन्म के एक से तीन दिन बाद शुरू होता है। इसके लक्षण माओं में एक हफ्ते से लेकर 20 दिन तक रह सकते हैं। इसकी वजह से महिलाओं के मिजाज में बदलाव और खाने या सोने में परेशानी होती है। लगभग 80 प्रतिशत महिलाओं में बच्चे के जन्म के बाद बेबी ब्लूज के लक्षण देखे जाते हैं और यह अपने आप खत्म हो जाता है। लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान डिप्रेशन हार्मोनल बदलाव और कई अन्य कारणों से होता है जो अधिक गंभीर माना जाता है। गर्भावस्था के दौरान मां में डिप्रेशन के लक्षण दिखने पर उसे एक्सपर्ट डॉक्टर से सलाह और इलाज जरूर लेना चाहिए। इस दौरान डिप्रेशन को नजरअंदाज करना आपकी और आपके पेट में पल रहे बच्चे की सेहत पर भारी पड़ सकता है।

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प्रेग्नेंसी के दौरान मां के डिप्रेशन में होने से बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव (How Does Mother’s Depression Affect Her Children?)

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं में डिप्रेशन की समस्या का सीधा असर उनके बच्चों की सेहत पर पड़ता है। हालांकि प्रेग्नेंसी के दौरान डिप्रेशन की समस्या का इलाज किया जा सकता है लेकिन अगर इसे अनदेखा किया गया तो निश्चित ही बच्चे की मानसिक सेहत पर आगे चलकर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेंगे। रिसर्च के मुताबिक अगर गर्भावस्था के दौरान मां डिप्रेशन में है तो उसके बच्चे को 24 साल की उम्र तक मानसिक बीमारियों का खतरा रहता है। गर्भ में पहल रहे बच्चे की मानसिक स्थितियों का सीधा संबंध मां की मानसिक स्थिति से होता है। अगर प्रेग्नेंसी के दौरान मां के दिमाग या मन में नकारात्मक विचार आते हैं तो इसका सीधा असर बच्चे पर भी होता है। ठीक इसी प्रकार अगर प्रेग्नेंसी में मां डिप्रेशन से जूझ रही है तो आनुवांशिक कारणों से बच्चे के पैदा होने के बाद 12 से 24 साल की उम्र में उसे भी इन बीमारियों का खतरा रहता है।  इसके कारण बच्चों के बड़े होने पर उनकी मानसिक भावनाओं में बदलाव और डिप्रेशन या तनाव के लक्षण देखे जा सकते हैं।

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में डिप्रेशन की समस्या से बचाव के टिप्स (Tips To Overcome with Depression During Pregnancy)

प्रेग्नेंसी के दौरान भावनात्मक बदलाव और हार्मोनल बदलाव के कारण महिलाओं को डिप्रेशन का खतरा अधिक रहता है। इस दौरान डिप्रेशन से बचने के लिए महिलाओं को स्वस्थ और संतुलित आहार का सेवन, नियमित रूप से मेडिटेशन और एक्सरसाइज करनी चाहिए। इसे साथ ही अगर आपको इस दौरान डिप्रेशन के लक्षण दिखते हैं तो एक्सपर्ट डॉक्टर की सहायता ले सकती हैं। गर्भावस्था में डिप्रेशन का आसानी से इलाज किया जा सकता है। इस समस्या के इलाज के लिए कई तरह की थेरेपी और एंटी डिप्रेसेंट दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। 

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प्रेग्नेंसी के दौरान और उसके बाद मां को डिप्रेशन का खतरा बना रहता है। प्रेग्नेंट महिला के डिप्रेशन में होने के कारण उनके बच्चों में भी डिप्रेशन की समस्या पनप सकती है। इससे बचाव के लिए डिप्रेशन के लक्षण दिखते ही एक्सपर्ट की सलाह लेनी चाहिए। प्रेग्नेंसी के दौरान डिप्रेशन को नजरअंदाज करने से आपकी और पेट में पल रहे बच्चे की सेहत को खतरा होता है।

(main image source- urbanclap)

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