जब घर में नन्हीं किलकारियां गूंजती हैं तो यकीनन पूरा घर खुशी से सराबोर हो जाता है, लेकिन उस नन्हीं सी जान को दुनिया में लाने के लिए एक स्त्री को कई तरह की कठिनाईयों से दो-चार होना पड़ता है। मां बनना यकीनन स्त्री के लिए दूसरा जन्म होता है। डिलीवरी के बाद एक स्त्री के भीतर सिर्फ शारीरिक परिवर्तन नहीं होते, बल्कि हार्मोनल बदलाव होने के कारण उसका असर स्त्री के मानस पटल पर भी पड़ता है। यही कारण है कि प्रसव के बाद कई बार स्त्री अवसाद से गुजरती है। डिलीवरी के बाद का डिप्रेशन दो प्रकार का होता है- प्रारम्भिक डिप्रेशन या बेबी ब्लूज और देर तक रहने वाला पोस्टपार्टम डिप्रेशन।
समझें अंतर
बेबी ब्लूज और पोस्टपार्टम डिप्रेशन में थोड़ा अंतर होता है। वैसे बेबी ब्लूज को अगर पोस्टपार्टम डिप्रेशन की प्रारंभिक अवस्था कहा जाए तो गलत नहीं होगा। बेबी ब्लूज में महिला को मूड स्विंग्स होते हैं व कभी-कभी रोने का मन करता है। हालांकि बेबी ब्लूज एक दो दिन या एक दो सप्ताह में खुद ब खुद ठीक हो जाता है। वहीं जब यही लक्षण लंबे समय तक हों और गंभीर रूप ले लें तो उसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहा जाता है। यह कई हफ्तों से लेकर एक वर्ष तक रह सकता है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन में महिला को अपने बच्चे की देखरेख करने व उसे संभालने में परेशानी होती है। वल्र्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में करीबन 22 प्रतिशत महिलाओं को प्रसव के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन की समस्या होती है। वहीं राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015 के अनुसार, भारत में करीबन 15.3 प्रतिशत से 23 प्रतिशत के बीच नई मांओं को मानसिक विकार जैसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन का सामना करना पड़ता है।
इसे भी पढ़ें : महिलाओं में इन 2 कारणों से होता है ऑस्टियोपोरोसिस, जानें बचाव का तरीका
पहचानें लक्षण
सरोज सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की इंडोस्कोपिक स्त्री रोग सर्जन व आब्स्टट्रिशन एचओडी डाॅ निशा जैन कहती हैं कि पहले से यह तय कर पाना बेहद मुश्किल है कि किस महिला को प्रसव के बाद डिप्रेशन का सामना करना पड़ेगा, लेकिन इसके लक्षणों के आधार पर इसकी पहचान की जा सकती है-
- भूख में कमी
- अनिद्रा
- चिड़चिड़ापन व गुस्सा
- बहुत अधिक थकान का अहसास
- संभोग में रूचि का कम होना
- मन में निराशा, अपराध या अपर्याप्तता का भाव
- गंभीर मूड स्विंग्स
- बच्चे के प्रति अरूचि व उसकी ओर ध्यान न देना
- परिवार व दोस्तों से दूरी बनाना
- खुद को या बच्चे को किसी भी तरह के नुकसान पहुंचाने के विचार
जानें कारण
- पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लिए सिर्फ एक ही कारण जिम्मेदार नहीं होता। बल्कि शारीरिक, भावनात्मक व जीवनशैली सभी एक कारक के रूप में भूमिका निभा सकते हैं-
- बच्चे के जन्म के बाद एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन में गिरावट
- थाॅयराइड ग्रंथि द्वारा निर्मित हार्मोन का तेजी से गिरना
- रक्तचाप, प्रतिरक्षा प्रणाली व मेटाबाॅलिज्म में परिवर्तन
- नींद में कमी
- नवजात की देखभाल को लेकर चिंता
- भावनात्मक अस्थिरता
- परिवार या जीवनसाथी का सपोर्ट न मिलना
- आत्म-नियंत्रण की कमी महसूस करना
- अकेलेपन का अहसास
- करियर को लेकर चिंता
- वित्तीय समस्याओं को लेकर चिंता
- पहले से ही अवसाद की समस्या
वैसे इन सभी कारणों के अतिरिक्त भारत में नई मांओं के पोस्टपार्टम डिप्रेशन का एक सबसे बड़ा कारण होता है कि आज भी यहां पर लिंग के आधार पर भेद किया जाता है। अधिकतर घरों में लोग लड़का होने की आस करते हैं और लड़की के जन्म के बाद महिला को मानसिक तौर पर परेशान किया जाता है, जिससे वह गंभीर रूप से अवसाद ग्रस्त हो जाती है। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन आॅफ इंडिया के साथ इंटर्न ने 2016 के अपने एक शोध में पाया था कि शिशु का लिंग, बेटों के लिए वरीयता, सामाजिक व भावनात्मक सहयोग की कमी, सामाजिक आर्थिक व वित्तीय कठिनाइयां और हिंसा के अनुभव पोस्टपार्टम डिप्रेशन में महत्वपूर्ण कारक होते हैं।
हो सकता है घातक
सरोज सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की इंडोस्कोपिक स्त्री रोग सर्जन व आब्स्टट्रिशन एचओडी डाॅ. निशा जैन कहती है कि अमूमन महिलाएं और उनके परिवार के सदस्य इस मानसिक परेशानी को नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन वास्तव में यह बेहद घातक साबित हो सकता है। सबसे पहले तो अगर इसका इलाज न किया जाए तो सामान्य पोस्टपार्टम डिप्रेशन क्रोनिक डिप्रेसिव डिसआॅर्डर में बदल जाता है। कभी-कभी तो महिला जीवनभर के लिए गंभीर रूप से अवसादग्रस्त हो जाती है। वहीं, जब पोस्टपार्टम डिप्रेशन बढ़ जाता है तो इससे महिला स्वयं को या अपने नवजात शिशु को बेहद गंभीर रूप से चोट पहुंचा सकती है। इतना ही नहीं, इसके कारण महिला को नींद लेने व खाने में भी कठिनाई होती है, जिसके कारण धीरे-धीरे उसका स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित होने लगता है। इसके अतिरिक्त जब महिला पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजरती है तो वह अपने बच्चे की ही देखरेख नहीं करती और न ही उसे स्तनपान कराने में रूचि लेती है, जिससे बच्चे के स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।
ऐसे करें इलाज
सरोज सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के मनोचिकित्सक डाॅ. आत्मेश कुमार कहते हैं कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन का पता लगाने के लिए वैसे तो कोई क्लीनिकली टेस्ट नहीं होता, लेकिन कुछ मनोरोग परीक्षणों द्वारा स्थिति का पता लगाया जाता है। अगर महिला पोस्टपार्टम डिप्रेशन की प्रारंभिक अवस्था में है तो दवाईयों के बिना भी उसका इलाज किया जा सकता है। वहीं अगर स्थिति गंभीर होती है तो उसके लिए दवाईयों का सहारा लेना आवश्यक हो जाता है।
डाॅ. आत्मेश के अनुसार, इलाज के पहले चरण में महिला को यह समझाना होता है कि वह वास्तव में बीमार है और उसे इलाज की जरूरत है। इतना ही नहीं, कई बार तो महिला के पति व घर के अन्य सदस्यों को भी स्थिति से अवगत करवाकर उन्हें इलाज की महत्ता बतानी पड़ती है क्योंकि अधिकतर भारतीय घरों में लोग इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेते।
ऐसे अन्य स्टोरीज के लिए डाउनलोड करें: ओनलीमायहेल्थ ऐप
Read More Articles On Womens Health In Hindi
How we keep this article up to date:
We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.
Current Version