हाल के सालों में हमने देखा है कि तेजी से मौसम में परिवर्तन हो रहा है। भीषण गर्मी के मौसम में बारिश होने लगती है, तो सर्दियों के दिन नाममात्र रह गए हैं। ये सब ग्लोबल वॉर्मिंग की निशानी है। इस तरह के पर्यावरणीय बदलाव के कारण फसलों पर बुरा असर पड़ रहा है। लेकिन, ऐसे में एक सवाल हर आम और खास को परेशान कर रहा है कि क्या इससे लोगों को स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है? खासकर हार्ट के मरीजों पर मौसम बदलाव का क्यर प्रभाव पड़ रहा है? इस संबंध में हमने दिल्ली के शालीमार बाग स्थित मैक्स अस्पताल के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी के डायरेक्टर और एचओडी डॉ. नवीन भामरी बात की है। पेश है, बातचीत के महत्वपूर्ण अंश।
क्या मौसम का हार्ट मरीज पर असर पड़ रहा है?
डॉ. नवीन भामरी की मानें, ‘हां, क्लाइमेट चेंज उन लोगों के लिए ज्यादा खतरनाक है, जिन्हें पहले से ही किसी न किसी तरह की हार्ट प्रॉब्लम है। इसमें कई तरह के कारण जिम्मेदार हैं। मेरे मुताबिक, आज की तारीख में व्यक्ति को पता होना चाहिए क्लाइमेट चेंज का हार्ट पेशंट के स्वास्थ्य से क्या संबंध है और क्यों?’
मौसम का हार्ट पेशंट पर असर पड़ने का कारण
बढ़ता तापमान (Extreme temperatures)
बहुत ज्यादा गर्मी और बहुत ज्यादा सर्दी, दोनों स्थितियों का कार्डियोवास्कुलर सिस्टम पर असर पड़ता है। दरअसल, जब ज्यादा गर्मी पड़ती है, तो शरीर खुद को ठंड करने की कोशिश करता है। इसका नतीजा ये होता है कि हार्ट रेट और ब्लड फ्लो बढ़ जाता है। जाहिर है, यह स्थिति हार्ट के मरीजों के लिए बिल्कुल सही नहीं है। उनका दिल पहले से ही कमजोर है और बढ़ते ब्लड फ्लो से उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। वहीं दूसरी ओर, ठंडा मौसम ब्लड वेसल्स को संकुचित यानी श्रिंग कर सकता है, जिससे ब्लड प्रेशार बढ़ सकता है, जिस वजह से हार्ट को ब्लड पंप करने के औसत से ज्यादा मेहनत करनी पड़ सकती है।
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बढ़ती ह्यूमीडिटी (Humidity)
क्लाइमेट चेंज की वजह से वातावरण में ह्यूमीडिटी भी बढ़ रही है। बहुत गर्म और अधिक ठंडे मौसम या स्थितियों में हमारी कार्डिओवास्कुलर सिस्टम पर दबाव पड़ता है। लेकिन शरीर गर्म तापमान में खुद को ठंडा करने की अधिक कोशिश करता है, जिस कारण हृदय गति और रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। इससे हार्ट के मरीजों के दिल को अधिक काम करना पड़ता है। यही नहीं, इस तरह के क्लाइमेट के कारण शरीर डिहाइड्रेट हो जाता है। जब शरीर में हर चीज की आपूर्ति के शरीर को अतिरिक्त काम करना पड़ता है, तो इससे दिल पर भी ज्यादा दबाव बनता है, जो कि हार्ट पेशंट के लिए सही नहीं है।
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बढ़ता एयर पल्यूशन (Air pollution)
क्लाइमेट चेंज के दौरान हम सभी ने नोटिस किया है कि कभी भी लू चलने लगती है, तो कभी भी बारिश शुरू हो जाती है। लू होने के कारण तेज हवा चलती है, जिससे एयर पल्यूशन यानी वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। इस वजह से कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों में हृदय संबंधी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। यही नहीं, हार्ट पेशंट को दिल का दौरा पड़ सकता है, स्ट्रोक हो सकात है या कोई अन्य हृदय संबंधी समस्या हो सकती है।
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हवा के दबाव में तेजी से बदलाव होना (Rapid variations in air pressure)
एटमॉस्फेयरिक प्रेशर में अगर अचानक से बदलाव हो जाए, तो यह स्थिति भी हार्ट के मरीजों के लिए सही नहीं है। इसे उदाहरण स्वरूप समझिए। अगर अचानक तूफान आ जाए या फिर मौसम में बदलाव हो जाए, तो इससे शरीर के ऑक्सीजन लेवल और ब्लड फ्लो पर प्रभाव पड़ सकता है। इस तरह की फ्लक्चुएशन वाली स्थिति दिल के मरीजों के सीने में दर्द, दिल की धड़कनों में अनियमितता जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है।
चिंता और तनाव का बढ़ना (Anxiety and stress)
अक्सर मौसम में हो रहे बार-बार बदलाव के कारण लोगों को चिंता और तनाव होने लगता है। इस तरह की स्थिति विशेषकर कार्डियोवस्कूलर सिस्टम के लिए सही नहीं होती है। अगर हार्ट पेशंट तनाव में रहे, तो उन्हें ब्लड प्रेशर हो सकता है या फिर हार्ट रेट में बदलाव भी हो सकता है और हार्ट स्ट्रोक की आंशका में भी इजाफा हो सकता है।
हार्ट के मरीज इस तरह रखें अपना ख्याल
हृदय संबंधी मरीजों को क्लाइमेट चेंज के दौरान विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, जैसे-
- खुद को हाइड्रेटेड रखें।
- घर से बाहर कम से कम निकलें।
- अत्यधिक बाहरी एक्टिविटी से बचें।
- अपने बॉडी टेंप्रेचर को कंट्रोल में रखें।
- जब भी तबियत खराब लगे, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
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