शरद ऋतु की शुरुआत के साथ ही मौसम में हल्की ठंडक और आसमान में सुनहरी धूप का सुहावना संतुलन नजर आने लगता है। बरसात के बाद की यह ऋतु देखने में जितनी मनमोहक लगती है, उतनी ही संवेदनशील भी होती है। आयुर्वेद के अनुसार यही वह समय है जब शरीर में पित्त दोष का प्रकोप बढ़ता है। तेज और चमकीली धूप, दिन के समय की गर्माहट और रात की हल्की ठंडक, ये सब मिलकर शरीर के तापमान और पाचन शक्ति पर असर डालते हैं। अगर इस मौसम में खान-पान और दिनचर्या में जरूरी परिवर्तन न किए जाएं, तो यह सुंदर मौसम शरीर के लिए कई परेशानियों की वजह बन सकता है। इस लेख में सिरसा के रामहंस चेरिटेबल हॉस्पिटल के आयुर्वेदिक डॉक्टर श्रेय शर्मा (Ayurvedic doctor Shrey Sharma from Ramhans Charitable Hospital) से जानिए, शरद ऋतु में क्या खाएं और क्या न खाएं?
शरद ऋतु में क्या खाएं और क्या न खाएं? - What To Eat and Avoid In Sharad Ritu According To Ayurveda
आयुर्वेदिक डॉक्टर श्रेय शर्मा बताते हैं कि चरक संहिता में स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है कि शरद ऋतु में यदि खानपान और दिनचर्या सही न हो तो व्यक्ति को पित्त से जुड़ी बीमारियां जैसे त्वचा पर जलन, मुंह में छाले, एसिडिटी, सिरदर्द, पेट में जलन, और चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं घेर सकती हैं। इसलिए इस मौसम में आहार और दिनचर्या में विशेष सावधानी जरूरी है।
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डॉ. श्रेय शर्मा के अनुसार, इस ऋतु में मधुर (मीठा), तिक्त (कड़वा) और लघु (हल्का) भोजन शरीर के लिए हितकारी माना गया है। इन रसों से बने भोजन पित्त को शांत करने में सहायक होते हैं और शरीर को ठंडक पहुंचाते हैं। आयुर्वेद कहता है कि इस समय घी, जौ, गेहूं और शाली चावल (पुराने धान से बने चावल) का सेवन लाभदायक होता है। ये अनाज हल्के होते हैं और पाचन को संतुलित रखते हैं। इसके अलावा, लावा, तीतर, और खरहा (एक प्रकार का जंगली खरगोश) के मांस का उल्लेख भी चरक संहिता में किया गया है, क्योंकि ये पचने में हल्के और शरीर को एनर्जी देने वाले होते हैं।
वहीं, विरेचन कर्म एक आयुर्वेदिक शोधन चिकित्सा है जिसमें शरीर के अंदर जमा हुआ अतिरिक्त पित्त कंट्रोल किया जाता है। यह प्रक्रिया किसी योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में की जानी चाहिए।
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किन चीजों से बचना चाहिए?
- आयुर्वेदिक डॉक्टर श्रेय शर्मा बताते हैं कि चरक संहिता के अनुसार, शरद ऋतु में कुछ चीजें बिलकुल निषिद्ध मानी गई हैं।
- वसा और तैलीय पदार्थ पित्त को और बढ़ा देते हैं, जिससे जलन और अपच हो सकती है।
- क्षार (अत्यधिक नमकीन चीजें) से परहेज करें, नमक शरीर में गर्मी बढ़ाता है और त्वचा में खुजली या जलन का कारण बन सकता है।
- औदक और आनूप मांस यानी जल में रहने वाले या चिकने मांस जैसे मछली, सूअर आदि का सेवन इस मौसम में निषिद्ध है क्योंकि यह पित्त को बढ़ाते हैं।
- इस मौसम में दिन में सोने से शरीर का पाचन अग्नि कमजोर हो जाता है, जिससे पित्त असंतुलित होता है।
- पुरवैया हवा यानी पूर्व दिशा की ठंडी हवा में देर तक रहने से शरीर में वात-पित्त दोनों का असंतुलन हो सकता है।
निष्कर्ष
शरद ऋतु में जब पित्त दोष बढ़ने की संभावना होती है, तब मधुर, तिक्त और शीतल आहार का सेवन शरीर के लिए सबसे अधिक लाभकारी होता है। जौ, गेहूं, शाली चावल, घी और हल्के मांसाहारी भोजन के साथ गिलोय जैसे पित्तनाशक तत्वों को शामिल करने से शरीर का संतुलन बना रहता है। वहीं, ऑयली, नमकीन और भारी भोजन से दूरी रखकर और दिन में न सोने की आदत से बचकर आप शरद ऋतु को स्वस्थ तरीके से बिता सकते हैं।
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FAQ
घी कब नहीं खाना चाहिए?
घी सेहत के लिए लाभदायक होता है, लेकिन कुछ स्थितियों में इसका सेवन नहीं करना चाहिए। अगर किसी को पाचन कमजोर है, पेट में गैस, अपच या दस्त की समस्या हो तो घी से परहेज करें।शरद ऋतु कौन से महीने में आती है?
लगभग सितंबर से नवंबर के बीच का समय शरद ऋतु कहलाता है। इस दौरान वर्षा ऋतु की नमी समाप्त हो जाती है और सूर्य की धूप तेज व चमकीली हो जाती है।सर्दी में सबसे ज्यादा क्या खाना चाहिए?
सर्दियों के मौसम में शरीर को गर्म रखने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए पौष्टिक और ऊर्जावान भोजन करना चाहिए। इस ऋतु में तिल, गुड़, मूंगफली, घी, ड्राई फ्रूट्स, बाजरा, जौ, अदरक, लहसुन, और देसी घी में बने व्यंजन सबसे लाभदायक माने जाते हैं।
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Oct 07, 2025 12:28 IST
Published By : Akanksha Tiwari