
आजकल हर उम्र के लोगों में सर्दी-जुकाम, खांसी, गले में खराश या सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याएं आम हो चुकी हैं। बदलते मौसम, प्रदूषण, धूल-मिट्टी, धुएं और कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी के कारण श्वसन तंत्र सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। खासकर अस्थमा और साइनस जैसी समस्याएं न केवल जीवन की क्वालिटी को कम करती हैं बल्कि बार-बार होने वाले इंफेक्शन से शरीर को थका भी देती हैं। ऐसे में लोग तुरंत राहत पाने के लिए दवाइयों और इनहेलर का सहारा लेते हैं, लेकिन यह समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। आयुर्वेद में श्वसन तंत्र यानी रेस्पिरेटरी सिस्टम को मजबूत बनाने और प्राकृतिक रूप से सांस लेने की क्षमता को आसान बनाने के लिए कई औषधियां बताई गई हैं। इनमें से एक प्रमुख जड़ी-बूटी है भारंगी (Bharangi)। आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसे कफनाशक और ज्वरनाशक औषधि के रूप में वर्णित किया गया है। भरंगी को नेचुरल डिकंजेस्टेंट कहा जाता है, क्योंकि यह बलगम को पिघलाकर बाहर निकालने, वायुमार्ग की जकड़न को खोलने और फेफड़ों को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करती है। इस लेख में नोएडा के सेक्टर-12 में स्थित, अर्चित आयुर्वेदिक क्लिनिक के डॉ. अनंत त्रिपाठी (Dr. Anant Tripathi of Archit Ayurvedic Clinic, Sector 12, Noida) से जानिए, कमजोर फेफड़ों को कैसे ठीक करें (What is the best herb to clear lungs)?
फेफड़ों को नेचुरली कैसे करें हील - Natural Ways To Heal Lungs
अर्चित आयुर्वेदिक क्लिनिक के डॉ. अनंत त्रिपाठी बताते हैं कि भारंगी स्वाद में कड़वी और गुणों में तीक्ष्ण होती है। आयुर्वेदिक ग्रंथों जैसे चरक संहिता और भावप्रकाश में भारंगी का वर्णन श्वसन रोग, कफज विकार और ज्वर नाशक औषधि के रूप में मिलता है। इसकी जड़, पत्ते और फूल औषधीय उपयोग में आते हैं।
- भारंगी बलगम को पतला कर उसे बाहर निकालने में मदद करती है। यह गले की खराश, खांसी और जुकाम में लाभकारी मानी जाती है।
- भारंगी को आयुर्वेद में श्वासहर यानी अस्थमा और सांस की तकलीफ को कम करने वाली औषधि बताया गया है। इसके सेवन से श्वसन मार्ग की सूजन कम होती है और सांस लेने में आसानी होती है।
- भारंगी प्राकृतिक डिकंजेस्टेंट की तरह काम करती है। यह नाक और साइनस की जकड़न को खोलकर हवा का प्रवाह आसान बनाती है।
- भारंगी का नियमित सेवन फेफड़ों को शुद्ध और स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है। यह प्रदूषण और धूल-मिट्टी से हुए नुकसान से बचाव करती है।
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भारंगी का सेवन कैसे करें?
- भारंगी की जड़ को उबालकर बना हुआ काढ़ा खांसी, जुकाम और सांस की तकलीफ में लाभ देता है।
- सूखी जड़ को पीसकर पाउडर बनाया जाता है। इसे शहद या गुनगुने पानी के साथ लिया जा सकता है।
- नाक और छाती पर भरंगी तेल की मालिश करने से जकड़न और बलगम की समस्या में राहत मिलती है।
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सावधानियां
- भारंगी का प्रयोग हमेशा आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में करना चाहिए।
- गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं इसका सेवन बिना डॉक्टर की सलाह न करें।
- ज्यादा मात्रा में इसका सेवन उल्टी या पेट की गड़बड़ी पैदा कर सकता है।
निष्कर्ष
भारंगी को आयुर्वेद में श्वसन रोगों की प्राकृतिक औषधि माना गया है। यह खांसी-जुकाम से लेकर अस्थमा और साइनस तक में राहत पहुंचाती है। भारंगी श्वसन मार्ग को खोलकर बलगम को पिघलाती है और फेफड़ों को स्वस्थ बनाए रखती है। भारंगी का नियमित और चिकित्सकीय उपयोग फेफड़ों को प्राकृतिक रूप से मजबूत बनाने में मदद करता है।
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FAQ
भारंगी किस रोग में सबसे ज्यादा उपयोगी है?
भारंगी मुख्य रूप से खांसी, जुकाम, अस्थमा, ब्रॉन्काइटिस और साइनस जैसी श्वसन संबंधी बीमारियों में उपयोगी मानी जाती है। यह बलगम को पिघलाकर वायुमार्ग को साफ करती है।भारंगी का सेवन कैसे करना चाहिए?
भारंगी की जड़ या पत्तों का काढ़ा, पाउडर या अर्क के रूप में सेवन किया जा सकता है। कई आयुर्वेदिक योगों में भी भारंगी का प्रयोग होता है। सेवन से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह लेना जरूरी है।क्या भारंगी का कोई साइड इफेक्ट होता है?
आमतौर पर भारंगी सुरक्षित मानी जाती है, लेकिन इसकी अधिक मात्रा लेने पर पेट में गड़बड़ी, उल्टी या जलन हो सकती है। गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसका उपयोग विशेषज्ञ की देखरेख में करना चाहिए।
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Nov 06, 2025 08:07 IST
Published By : Anurag Gupta