प्री-डायबिटीज एक ऐसी स्थिति है जिसमें मरीज का ब्लड शुगर लेवल बॉर्डर लाइन पर होता है और उसे डायबिटीज होने की संभावना ज्यादा होती है। प्री-डायबिटीज की स्टेज में अक्सर डॉक्टर यह सलाह देते हैं कि अगर डाइट और लाइफस्टाइल पर गौर करें, तो डायबिटीज से बचा जा सकता है। ब्लड शुगर लेवल को कम करने का सबसे आसान तरीका है कि आप मीठा खाने की मात्रा न के बराबर कर दें। लेकिन जो लोग रोज मीठी चीजों का सेवन करते हैं, उनके लिए मीठा छोड़ना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। बहुत से लोग ऐसे हैं, जो रोज खाने के बाद मीठे का सेवन करते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि प्री-डायबिटीज स्टेज में मीठे की क्रेविंग को कैसे कम किया जाए। एक्सपर्ट की मानें, तो मीठा छोड़ना इतना मुश्किल नहीं है। अगर आप चाहें, तो मीठे की क्रेविंग को कंट्रोल कर सकते हैं। मेरा खुद का अनुभव यह कहता है कि अगर आप मीठा खाना कम कर दें, या बंद कर दें, तो मीठा खाने की तलब खुद ही कंट्रोल हो जाती है और शरीर के एनर्जी लेवल में भी सुधार होता है। इस लेख में हम जानेंगे कि आखिर कैसे प्री-डायबिटिक मरीज, मीठे की क्रेविंग (Sugar Craving) को कंट्रोल कर सकते हैं। इस विषय पर बेहतर जानकारी के लिए हमने लखनऊ के विकास नगर में स्थित न्यूट्रिवाइज क्लीनिक की न्यूट्रिशनिस्ट नेहा सिन्हा से बात की।
1. चीनी के हेल्दी विकल्प न ढूंढें- Avoid Sugar Alternatives
अक्सर लोगों को लगता है कि चीनी छोड़कर वे उसके हेल्दी विकल्पों को अपना सकते हैं। लेकिन ऐसा सोचना गलत है। चीनी के हेल्दी विकल्प भी सेहत के लिए हानिकारक हो सकते हैं। चीनी की जगह, गुड़, खजूर, यहां तक कि फलों का रस भी सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है और शुगर लेवल को बढ़ा सकता है इसलिए इनसे पूरी तरह से बचें।
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2. मीठा खाने की तलब हो तो फल खाएं- Eat Fruits in Sugar Cravings
अगर आपको मीठा खाने की तलब महसूस हो, तो फल का सेवन करें। मुझे इस मौसम में आम खाना बहुत पसंद है, लेकिन मैंने भी लोगों से सुना था कि आम खाने से वजन बढ़ता है। जबकि ऐसा नहीं है, आम में प्राकृतिक मिठास होती है। अगर आप आम का सेवन करेंगे, तो वजन नहीं बढ़ेगा, लेकिन अगर आप आम का रस निकालकर उसे पिएंगे, तो वजन बढ़ सकता है इसलिए मीठा खाना हो, तो रस के बजाय साबुत फलों का सेवन करें।
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3. पानी की मात्रा को कम न होने दें- Avoid Dehydration to Control Sugar Level
अगर आप प्री-डायबिटीज की स्टेज पर हैं और डायबिटीज से बचना चाहते हैं, तो शरीर में पानी की मात्रा को कम न होने दें। अगर आप पानी का सेवन कम करेंगे, तो शरीर को लगेगा कि आपको भूख लगी है और ऐसे में मीठे की क्रेविंग भी होगी। अगर आप पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करेंगे, तो मीठा खाने की तलब कम होगी और आप ओवरईटिंग से भी बच सकते हैं।
4. शरीर को एक्टिव रखें- Stay Active in Pre Diabetes Stage
अगर आप प्री-डायबिटीज स्टेज में हैं, तो शरीर को एक्टिव रखना जरूरी है। शरीर जब एक्टिव रहता है, तो ब्लड शुगर लेवल में खुद ही सुधार होता है। हालांकि एक्टिव रहने के साथ डाइट की भी अहम भूमिका है। अपने रूटीन में ब्रिस्क वॉक, योग, डांस वर्कआउट, जुंबा वगैरह को शामिल कर सकते हैं।
5. प्री-डायबिटीज की स्टेज में इन गलतियों से बचें- Avoid These Mistakes in Pre Diabetes Stage
- अगर आप हेल्दी डाइट का सेवन नहीं करते हैं, तो ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करना मुश्किल हो सकता है। इसलिए ऑयली, मिर्च-मसाले वाला भोजन या ज्यादा मीठी चीजों का सेवन बिल्कुल न करें।
- चीनी, रिफाइंड ऑयल, व्हाइट राइस, ऑमलेट, चीज (Cheese), बिस्किट, चीनी वाली चाय वगैरह का सेवन करने से बचें।
- प्री-डायबिटीज में स्ट्रेस बिल्कुल न लें, इससे ब्लड शुगर लेवल में असामान्यता देखने को मिल सकती है। इससे बचने के लिए डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज करें।
- प्री-डायबिटीज से छुटकारा पाना है, तो नींद की कमी से बचें। 7 से 8 घंटे की नींद जरूर लें।
अगर आप प्री-डायबिटीज स्टेज पर हैं, तो मीठे की क्रेविंग को कंट्रोल करें। इस तरह आप टाइप 2 डायबिटीज से बच सकते हैं। मीठे की क्रेविंग से बचने के लिए फल खाएं, एक्सरसाइज करें, पानी का सेवन करें और चीनी के विकल्पों से दूर रहें।
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FAQ
प्री-डायबिटीज के क्या लक्षण हैं?
अगर आप प्री-डायबिटीज की स्टेज पर हैं, तो अचानक थकान महसूस होगी, स्वभाव में चिड़चिड़ापन बढ़ सकता है और ज्यादा भूख लगना या ज्यादा पेशाब आने जैसे लक्षण भी नजर आ सकते हैं।डायबिटीज और प्री डायबिटीज में क्या अंतर है?
डायबिटीज का शरीर पर ज्यादा असर होता है, प्री-डायबिटीज में शुगर लेवल, डायबिटीज के लेवल से नीचे रहता है। प्री-डायबिटीज को ठीक किया जा सकता है लेकिन डायबिटीज को रिवर्स करना मुश्किल है, हालांकि उसे कंट्रोल किया जा सकता है।प्री डायबिटीज में शुगर लेवल कितना होना चाहिए?
अगर आप प्री डायबिटीज स्टेज पर हैं, तो एचबीए1सी लेवल 5.7-6.4 प्रतिशत के बीच में आना चाहिए और फास्टिंग शुगर की बात करें, तो वो 100-125 mg/dL होना चाहिए।