
Frequent Cold and Cough Cause Asthma Risk: जैसे ही शिशु का जन्म होता है, वैसे ही उसके शरीर का विकास शुरू हो जाता है। इसमें शरीर के बाहरी हिस्सों के साथ-साथ शरीर के अंदरूनी हिस्से जैसे फेफड़े और इम्यून सिस्टम की भी तेजी से ग्रोथ होती है। आजकल के बदलते मौसम का भी असर शिशुओं पर तेजी से पड़ रहा है और इस वजह से भी शिशुओं को बार-बार सर्दी, खांसी, कफ, वायरल, रेस्पिरेटरी इंफेक्शन या ब्रोंकाइटिस (baccho ko saans ki bimari) जैसी समस्याएं हो रही हैं। इसका सीधा असर फेफड़ों पर भी पड़ सकता है। सांस से जुड़ी बीमारियों के कारण बच्चों को अस्थमा होने का रिस्क क्यों बढ़ जाता है? यह जानने के लिए हमने इंदिरापुरम के क्लाउडनाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स की बालरोग विशेषज्ञ डॉ. नेहा राघव (Dr. Neha Raghava, Pediatrician and Pediatric Intensivist, Cloudnine group of hospitals, Indiarapuram) से बात की।
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बच्चों में बार-बार इंफेक्शन से अस्थमा का रिस्क क्यों होता है?
डॉ. नेहा राघव कहती हैं, “शुरुआती इंफेक्शन सिर्फ कुछ समय के परेशानी का कारण नहीं बनती, बल्कि ये बच्चे की सांस की नलियों पर गंभीर असर छोड़ सकती है। इसलिए अगर बच्चों को बार-बार किसी भी तरह का इंफेक्शन होता है, तो उसकी रोकथाम करना जरूरी है।”

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फेफड़ों की ग्रोथ पर असर
जन्म के बाद बच्चों की पहले दो साल फेफड़ों के ग्रोथ का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है। अगर इस दौरान बार-बार इंफेक्शन होता है, तो फेफड़ों में सूजन हो सकती है। इससे सांस की नली संकरी होकर सेंसेटिव हो जाती है। अगर भविष्य में धूल, ठंडी हवा, धुआं या किसी एलर्जी के संपर्क में आने पर अस्थमा के लक्षण ट्रिगर हो सकते हैं और इससे अस्थमा का रिस्क बढ़ सकता है।
इम्यून सिस्टम का ज्यादा एक्टिव होना
जब बच्चों को इंफेक्शन होती है, तो उनका इम्यून सिस्टम भी काफी तेजी से एक्टिव हो जाता है। अगर बच्चों को बार-बार इंफेक्शन होता है, तो यह बार-बार हाइपर एक्टिव हो जाता है। इस वजह से बाद में जब बच्चों को कुछ छोटा सा भी ट्रिगर होता है, तो उन्हें सांस फूलने, छाती से सांस की आवाज आने या अस्थमा का रिस्क हो सकता है।
RSV के कारण अस्थमा का रिस्क होना
सर्दियों में बच्चों में Respiratory Syncytial Virus (RSV) बहुत आम है। कई बच्चों में यह सामान्य सर्दी जैसा लगता है, लेकिन कुछ में यह ब्रोंकाइटिस का कारण बनता है। जिन बच्चों को शुरुआती उम्र में RSV से गंभीर इंफेक्शन होता है, उनमें बड़े होने पर अस्थमा की संभावना दूसरों के मुकाबले कई गुना ज्यादा पाई गई है।
फैमिली हिस्ट्री के कारण अस्थमा का रिस्क होना
अगर फैमिली में किसी को अस्थमा या एलर्जी होती है, तो यह समस्या बच्चों में भी आ सकती है। ऐसे बच्चे सांस से जुड़ी बीमारियों के प्रति ज्यादा सेंसेटिव हो जाते हैं और इस कारण अस्थमा की शुरुआत जल्दी हो सकती है।
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बच्चों में इंफेक्शन होने के लक्षण
डॉ. नेहा राघव ने कहा, “कई बार पैरेंट्स को पता ही नहीं चलता कि बच्चो को नॉर्मल खांसी-जुकाम है या कोई और समस्या है। इसलिए मैं हमेशा सलाह देती हूं कि अगर बच्चे को बार-बार इंफेक्शन हो, तो डॉक्टर को जरूर दिखाएं और सबसे महत्वपूर्ण है कि लक्षणों की पहचान करें ताकि अस्थमा का रिस्क कम किया जा सके।”
- रात में लगातार खांसी होना
- सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज आना
- सांस तेजी से लेना
- बार-बार वायरल रेस्पिरेटरी इंफेक्शन
- खांसते-खांसते उल्टी हो जाना
- बच्चा चिड़चिड़ा रहना या फीडिंग कम करना
अस्थमा का रिस्क कैसे कम करें?
डॉ. नेहा राघव ने बताया कि अगर बच्चे को बार-बार इंफेक्शन हो, तो पैरेंट्स को घरेलू नुस्खे नहीं अपनाने चाहिए, बल्कि समय रहते डॉक्टर से मिलकर इलाज कराएं। साथ ही रोजाना कुछ उपाय अपनाकर बच्चों को सांस से जुड़े इंफेक्शन से बचा सकते हैं।
- बच्चे को धूल, धुआं, अगरबत्ती, तेज परफ्यूम, मच्छर कॉइल, पालतू जानवरों के बाल जैसी चीजों से दूर रखने की कोशिश करें।
- अगर कोई घर में स्मोक करता है, तो यह बच्चों के फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए बच्चों को second hand smoke से बचाएं।
- बच्चे को इंफेक्शन से बचाने के लिए रेगुलर सफाई का ध्यान रखें।
- शिशु को ब्रेस्टफीडिंग कराएं। इससे शिशु की इम्युनिटी बढ़ती है।
- समय पर बच्चों का टीकाकरण कराएं। इसमें फ्लू वैक्सीन जैसे वैक्सीन जरूर लगाएं, जिससे अस्थमा का रिस्क कम होता है।
निष्कर्ष
डॉ. नेहा कहती हैं कि अस्थमा को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता, लेकिन काफी हद तक कम किया जा सकता है। अगर इंफेक्शन जल्दी डायग्नोज हो जाए, तो बच्चे को सही न्यूट्रिशन और साफ-सफाई रखकर सांस से जुड़ी बीमारियों से बचाया जा सकता है।
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Dec 04, 2025 07:05 IST
Published By : Aneesh Rawat