
Childhood Pre Diabetes: डायबिटीज की समस्या एक लाइफस्टाइल से जुड़ी गंभीर बीमारी है। व्यस्कों में यह बीमारी आम है, लेकिन अब यह बीमारी बच्चों में भी तेजी से देखने को मिल रही है। अगर बच्चों का पहले से ही डायबिटीज चेक रखा जाए, तो उन्हें इस समस्या से बचाया जा सकता है। डायबिटीज के पहले की कंडीशन को प्री-डायबिटीज कहा जाता है। इस कंडीशन में ब्लड शुगर सामान्य से थोड़ा ज्यादा होता है, लेकिन डायबिटीज जितना नहीं होता। इस बारे में दिल्ली के क्लाउडनाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के नियोनेटोलॉजिस्ट और पीडियाट्रिक विभाग के कंसल्टेंट डॉ. अभिषेक चोपड़ा (Dr Abhishek Chopra, Consultant Pediatrician and Neonatologist, Cloudnine Group of Hospitals, New Delhi Punjabi Bagh) से बात की। उन्होंने बच्चों में प्री-डायबिटीज बढ़ने के कारण और उसे मैनेज करने के तरीके बताए हैं।
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बच्चों में प्री-डायबिटीज होने के कारण
डॉ. अभिषेक कहते हैं, “NIH में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों में प्री-डायबिटीज 4 से 23 फीसदी तक बढ़ रही है, जो चिंताजनक है। इसलिए इस बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाना बहुत जरूरी है कि क्यों बच्चों में डायबिटीज के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। बच्चों को प्री-डायबिटीज स्टेज पर ही चेक करना जरूरी है। पहले जानते हैं कि क्यों बच्चों में इसके मामले लगातार बढ़ रहे हैं।”

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सही खान-पान न होना
बच्चों में जंक फूड को लेकर बहुत ज्यादा क्रेज है। बर्गर, फ्रेंच फ्राइज, चॉकलेट, पैक्ड जूस, सॉफ्ट ड्रिंक्स और शुगर वाले स्नैक्स रोजमर्रा की आदत बन चुके हैं। इनमें कैलोरी बहुत होती है और न्यूट्रिशन नाममात्र ही होता है। इस वजह से शरीर इंसुलिन को सही तरह इस्तेमाल नहीं कर पाता और बच्चों को प्री-डायबिटीज होने का रिस्क बढ़ जाता है।
फिजिकल एक्टिविटी न होना
आजकल बच्चे सिर्फ मोबाइल गेम, टीवी और टैबलेट में ही बिजी रहते हैं। इसके अलावा, स्कूल भी कई बार ऑनलाइन क्लास लेते हैं। खासतौर पर कोविड के बाद से तो स्कूलों का ऑनलाइन क्लास लेना आम हो गया है। इस वजह से बच्चों की फिजिकल एक्टिविटी कम होने लगी है। जब शरीर कम चलता है, तो कैलोरी भी कम बर्न होती है। इससे वजन बढ़ता है और इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ने लगता है, जो प्री-डायबिटीज को बढ़ा सकता है।
बचपन का मोटापा
जंक फूड और फिजिकल एक्टिविटी न होने के कारण पेट के आसपास जमा फैट इंसुलिन की क्षमता को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। इससे बचपन में मोटापा बढ़ने लगता है और यह प्री-डायबिटीज के रिस्क को बढ़ा देता है। अगर समय पर इलाज न किया जाए, तो आगे चलकर टाइप-2 डायबिटीज की बड़ी वजह बन सकता है।
फैमिली हिस्ट्री
अगर फैमिली में पैरेंट्स या फिर दादा-दादी या नाना-नानी किसी को भी डायबिटीज की समस्या होती है, तो बच्चे में डायबिटीज का रिस्क बढ़ सकता है। हालांकि यह जेनेटिक फैक्टर है जिसे बदला नहीं जा सकता, लेकिन कंट्रोल जरूर किया जा सकता है। रेगुलर चेकअप करके बच्चे के प्री-डायबीटिज कंडीशन में ही लाइफस्टाइल मैनेज करके डायबिटीज के रिस्क को कम किया जा सकता है।
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हार्मोनल बदलाव
अगर लड़कियों को जल्दी पीरियड्स आने लगते हैं, तो उनके हार्मोनल बदलाव बहुत छोटी उम्र में ही होने लगते हैं। इसे Early Puberty कहते हैं। इसमें बच्चे की ग्रोथ अचानक ही बढ़ने लगती है, जिससे इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ जाती है। इसलिए जिन बच्चों को जल्दी पीरियड्स आते हैं या फिर लड़कों को जल्दी प्यूबर्टी आ जाती है, उन पर ध्यान देना जरूरी है।
नींद पूरी न होना
आजकल पढ़ाई, मोबाइल पर गेम खेलने या फिर सोशल मीडिया के चलते रात में बच्चे सोते नहीं है। इससे उनकी नींद पर असर पड़ता है। इससे बॉडी में स्ट्रेस हार्मोन बढ़ जाते हैं, जो स्ट्रेस बढ़ा देते हैं। इससे ब्लड शुगर बढ़ने का रिस्क काफी बढ़ जाता है और बच्चे को प्री-डायबिटीज का खतरा हो सकता है।
बच्चों में प्री-डायबिटीज कैसे मैनेज करें?
डॉ. अभिषेक चोपड़ा कहते हैं, “बच्चों के खान-पान पर खास ध्यान रखने की जरूरत है और साथ ही फिजिकल एक्टिविटी कराना महत्वपूर्ण है। अगर बच्चे के विकास पर ध्यान दिया जाए, तो प्री-डायबिटीज की समस्या से काफी हद तक बचा जा सकता है। पैरेंट्स बच्चों की इन आदतों को जरूर सुधारने की कोशिश करें।”
- सॉफ्ट ड्रिंक, पैक्ड जूस और शुगर वाली चीजों को कम से कम खाने दें।
- फल, सब्ज़ियां, दलिया, मिलेट्स, रागी, ओट्स डाइट में रोजाना शामिल करें।
- बच्चे को वॉक, दौड़ने और उनके मनपसंद खेल को प्रोत्साहित करें। अगर बच्चे का डांस में मन है, तो करने दें। इससे शरीर एक्टिव रहेगा।
- मोटे बच्चों में सिर्फ 5–7% वजन कम होने से ही ब्लड शुगर में बड़ा सुधार आ सकता है। इसलिए बच्चों के वजन को कंट्रोल में रखें।
- अगर डायबिटीज की फैमिली हिस्ट्री है, तो फास्टिंग ब्लड शुगर, HbA1c और लिपिड प्रोफाइल जरीर कराएं।
- बच्चों को सोने से पहले मोबाइल या टीवी बिल्कुल न देखने दें।
- बच्चे का लाइफस्टाइल अकेले नहीं बदला जा सकता, इसलिए पूरे परिवार को अपना हेल्दी रूटीन रखना चाहिए।
निष्कर्ष
डॉ. अभिषेक कहते हैं कि बचपन में प्रीडायबिटीज को सही समय पर पहचान लिया जाए तो इसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। पैरेंट्स में जागरूकता, रेगुलर चेकअप और हेल्दी लाइफस्टाइल इस समस्या को कम किया जा सकता है।
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Nov 25, 2025 07:05 IST
Published By : Aneesh Rawat