What Is Claustrophobia Explained With A Real Case Study In Hindi: 38 वर्षीय रमेश एक एमएनसी में काम करता था। हर आम आदमी की तरह वह रोजाना ऑफिस जाता था, अपनी फैमिली के साथ रहता था और खुशहाल जिंदगी जी रहा था। लेकिन, एक रोज उसकी लाइफ में एक बड़ा बदलाव आया। दरअसल, वह रोजाना की तरह गुड़गांव बेस्ड अपने एमएनसी ऑफिस पहुंचने के लिए लिफ्ट का यूज कर रहा था। उस रोज वह लिफ्ट में अकेला था और उसे 10वे फ्लोर तक पहुंचना था। मगर, अचानक लिफ्ट रुक गई और वह वहीं फस गया। काफी देर तक वह लिफ्ट में अकेला बंद रहा। इस दौरान उसकी सांस फूल रही थी, उसका शरीर पसीने से भर चुका था, वह बहुत ज्यादा डरा हुआ था। हालांकि, उसे लिफ्ट से सही सलामत निकाल लिया गया था। मगर उसके मन में जो डर बैठ गया था, वह निकल नहीं रहा था। जब वह मेरे पास आया तब ट्रीटमेंट के दौरान पता चला कि वह क्लौस्ट्रफोबिया का शिकार है। वास्तव में, बचपन में एक रमेश अपने दोस्तों के साथ हाइड एंड सीक खेलते हुए एक मेटल बॉक्स में फस गया था। उस दौरान वह बहुत डर गया था और तभी से वह बंद जगहों पर जाने से डरने लगा। काफी देर बाद, उसकी मां की मदद से वह वहां से निकल पाया था। वैसे, तो वक्त बीतने के साथ, वह इन चीजों को भूल गया था। पर जब वह लिफ्ट में फसा, तो उसका यह डर एक बार फिर वापिस लौट आया।
यह केस स्टडी हमारे साथ क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और माइंडट्राइब की फाउंडर डॉ. प्रेरणा कोहली ने शेयर की है, जिन्होंने रमेश का ट्रीटमेंट किया। रमेश के साथ बातचीत करके और ट्रीटमेंट के दौरान डॉक्टर प्रेरणा को पता चला कि वह क्लौस्ट्रफोबिया का मरीज है।
ओनलीमायहेल्थ ऐसे मानसिक विकारों और रोगों की बेहतर तरीके से समझने के लिए ‘मेंटल हेल्थ मैटर्स’ नाम से एक विशेष सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के जरिए हम विभिन्न मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के बारे में अपने पाठकों को बता रहे हैं। इस सीरीज में हम आपको मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारी के लक्षण, कारण और इलाज के संबंध में जरूरी जानकारी दे रहे हैं। आज इस सीरीज में हम आपको रमेश की केस स्टडी की मदद से ‘क्लौस्ट्रफोबिया’ के बारे में बताएंगे।
क्या है क्लौस्ट्रफोबिया - What Is Claustrophobia In Hindi
क्लौस्ट्रफोबिया एक तरह का चिंता से जुड़ा विकार है। इस बीमारी के तहत बंद जगहों में जाने से बहुत ज्यादा डरता है। उसे लगता है कि वह वहां फंस जाएगा और कभी बाहर नहीं निकल पाएगा। इन जगहों में खासकर, लिफ्ट, सुरंगें, भीड़ भरे कमरों में, या यहां तक कि एमआरआई जैसे मेडिकल मशीन शामिल हैं। क्लौस्ट्रफोबिया से पीड़ित इन जगहों में जाने के नाम भर से डर और घबराहट से भर जाता है।
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क्लौस्ट्रफोबिया के लक्षण - What are the Symptoms Of Clustrophobia?
रमेश की बात करें, तो वह अपने इमोशंस को जग-जाहिर करने में डरने लगा था, अंदर ही अंदर घुटन महसूस करता था। इसी का नतीजा यह निकला कि उसे बंद जगहों पर जाने से घबराहट होने लगी। यहां तक कि इन जगहों की कल्पना भर उसे तनाव से भर देती थी। धीरे-धीरे उसके ये लक्षण रोजमर्रा के कामकाज में भी दिखने लगे थे। वह अचानक किसी को देखकर चौंक जाता था। डॉ. प्रेरणा कोहली इसके अन्य लक्षणों के बारे में बता रही हैं-
भावनात्मक लक्षण - Emotional Symptoms
- किसी बंद जगह के बारे में सोचते हुए डर से भर जाना और लंबे समय तक डरे हुआ रहना।
- बंद जगह फंसने पर पैनिक अटैक आना या डर से सहम जाना।
- बंद जगहों पर फंसने पर वहां से जितनी जल्दी हो सके, भागने की कोशिश करना।
शारीरिक लक्षण - Physical Symptoms
- सांस लेने में तकलीफ या हाइपरवेंटिलेशन।
- दिल की धड़कन तेज होना।
- कंपकंपनी छूटना।
- मतली या पेट से जुड़ी समस्या होना।
- अत्यधिक पसीना आना।
- चक्कर आना, या बेहोशी महसूस होना।
- सीने में दर्द या जकड़न होना।
- शरीर में झनझनाहट महसूस होना।
- अचानक से बहुत ज्यादा गर्मी या ठंड लगना।
व्यवहार संबंधी लक्षण - Behavioral Symptoms
- बंद जगहों, जैसे लिफ्ट, छोटे कमरे या भीड़-भाड़ वाली जगहों में जाने से बचना और इसके लिए हर संभव प्रयास करना।
- लिफ्ट के बजाय, सीढ़ियों का विकल्प चुनना। भले ही दूसरा रास्ता कष्टकारी हो, लेकिन लिफ्ट में न जाना।
- हमेशा ऐसी जगह बैठना, जहां से भागना आसान हो।
- मेडिकल टेस्ट करवाने से और एड्वेंचर एक्टिविटी से बचने की कोशिश करना।
क्लौस्ट्रफोबिया का कारण - What are the causes of Claustrophobia In Hindi
जैसा कि रमेश की स्टोरी से यह क्लियर है, बचपन में वह एक बार एक टिन के डिब्बे में फंस गया था। वहीं से उसके मन में बंद जगहों को लेकर डर बैठ गया। जब एक बार फिर वह लिफ्ट में फंसा, तब क्लौस्ट्रफोबिया के लक्षण और उभरकर आए। इसी तरह, किस व्यक्ति को क्लौस्ट्रफोबिया क्यों है, इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। हालांकि, इसके सटीक कारणों का अब तक पता नहीं चला है। फिर भी कुछ कारण इस प्रकार हैं-
दर्दनाक अनुभवः आमतौर पर क्लौस्ट्रफोबिया उसी व्यक्ति को होता है, जिसके साथ कभी कोई बुरी दुर्घटना घटी हो। यह दुर्घटना किसी टिन के बक्से में बंद होना, किसी कमरे में बंद हो जाना या लिफ्ट में फंस जाना, हो सकता है।
दूसरों से सीखनाः कई बार ऐसा होता है कि जो व्यक्ति बच्चों की परवरिश कर रहा है, वह खुद क्लौस्ट्रफोबिया का शिकार होता है। ऐसे लोग अक्सर बच्चों के मन में बंद जगहों को लेकर डर बैठा देते हैं। नतीजतन, ऐसे बच्चों में भी क्लौस्ट्रफोबिया के लक्षण उभर सकते हैं।
ब्रेन फंक्शनः क्लौस्ट्रफोबिया को बढ़ाना देने में ब्रेन फंक्शन को भी जिम्मेदार माना जाता है। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि दिमाग में जो हिस्सा डर को कंट्रोल करता है, उसे एमिग्डाला के नाम से जाना जाता है। यही हिस्सा क्लौस्ट्रफोबिया को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार हो सकता है।
आनुवांशिकः हालांकि, विशेषज्ञ इस बात को पुख्ता तौर पर नहीं कह पाते हैं कि क्लौस्ट्रफोबिया के आनुवांशिक कारक जिम्मेदार हो सकते हैं। लेकिन, यह देखा गया है कि कई तरह की मानसिक बीमारियां, जैसे एंग्जाइटी या स्ट्रेस परिवार में किसी को हो, तो उनकी भावी पीढ़ी को भी वही समस्या हो सकती है। इस लिहाज से यह कहा जा सकता है कि क्लौस्ट्रफोबिया के होने कारण आनुवांशिक कारक हो सकते हैं।
मूवमेंट न कर पानाः अगर कहीं व्यक्ति के हाथ-पांव बांध दिए गए हों या फिर उसके लिए मूवमेंट करना मुश्किल हो जाए, तो भी क्लौस्ट्रफोबिया के होने का रिस्क बढ़ जाता है।
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क्लौस्ट्रफोबिया का इलाज - What is the treatment of claustrophobia In Hindi
रमेश के मामले में देखा गया है कि डॉ. कोहली ने इलाज के दौरान, कई अलग-अलग थेरेपी का उपयो किया है। जैसे, सबसे पहले थेरेपी की मदद से मन से नेगेटिव थॉट को बाहर निकालने की कोशिश की। इसके तहत, रमेश ने अपने डर का सामना किया, उसे पहचाना। इसके बाद उसे एक्सपोजर थेरेपी दी गई। इसमें शुरुआती दिनों में रमेश ने किसी के साथ लिफ्ट में आना-जाना शुरू किया और धीरे-धीरे उसे अकेले लिफ्ट में जाने-आने के लिए तैयार किया। ट्रीटमेंट के दौरान ट्रॉमा थेरेपी पर भी फोकस किया गया ताकि बचपन में हुई दुर्घटना के कारण उसके मन में जो डर बैठ गया था, उसे निकाला जा सके। अंत में रिलैक्स थेरेपी की मदद ली गई। डॉ. कोहली के ट्रीटमेंट की मदद से रमेश अब काफी सही है और नॉर्मल लोगों की तरह हेल्दी लाइफ जी रहा है। उपरोक्त बताए गए, ट्रीटमेंट के अलावा, डॉ. कोहली अन्य तरीकों के बारे में भी बताती हैं-
एक्सपोजर थेरेपीः जैसा कि नाम से पता चलता है, व्यक्ति को इस थेरेपी के दौरान अपने डर का सामना करना पड़ता है। एक्सपर्ट काफी ध्यान रखते हैं, लेकिन, धीरे-धीरे उसके डर को खत्म करने की कोशिश करते हैं।
रिलैक्स तकनीकः इस तकनीक के दौरान ब्रीदिंग एक्सरसाइज मांसपेशियों को रिलैक्स करने वाली एक्सरसाइज, मेडिटेशन और योग किया जाता है। इनकी मदद से क्लौस्ट्रफोबिया के कारण होने वाली घबराहट को कम किया जा सकता है। साथ ही क्लौस्ट्रफोबिया के लक्षणों में भी कमी आ सकती है।
दवाः हालांकि, दवा क्लौस्ट्रफोबिया के लिए प्राथमिक उपचार नहीं है। इसके बावजूद, अगर मरीज की स्थिति ज्यादा गंभीर है, तो उन्हें मेडिसिन दी जा सकती है। इसकी मदद से मरीज के लक्षणों को कम किया जा सकता है।
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क्लौस्ट्रफोबिया के मरीज की मदद कैसे करें - What can one do to support a loved one suffering from Claustrophobia?
- क्लौस्ट्रफोबिया के मरीजों की अगर मदद करना चाहते हैं, तो बेहतर है खुद को इस संबंध में एजुकेट करें। जब आप क्लौस्ट्रफोबिया के बारे में जानेंगे, तो इसके मरीजों की मदद करना आसान हो जाएगा।
- मरीज की हमेशा धैर्यपूर्वक सुनें। कभी भी उनके प्रति अपना जजमेंट पास न करें।
- उनके डर को समझने की कोशिश करें। कभी भी उनके डर को कमतर करके न आंकें। आपके ऐसा करने से मरीज आपसे अपने मन की बात शेयर करने से कतराने लगेगा।
- डर से निपटने में अपने करीबी की मदद करें।
- जब मरीज बहुत परेशान हो जाए, उसे पैनिक अटैक आने लगे, तो आप शांत रहें। उन्हें डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज करने के लिए कहें।
- अंतिम रूप से आप अगर अपने करीबी की सही तरह से मदद नहीं कर पा रहे हैं, तो बेहतर है कि उन्हें प्रोफेशनल के पास ले जाएं।
रमेश की तरह अगर आपके घर में भी ऐसा कोई है, जिसे क्लौस्ट्रफोबिया है, तो आप सावधान हो जाएं। उसे लेकर तुरंत एक्सपर्ट के पास जाएं। इस लेख में हम "क्लौस्ट्रफोबिया" से जुडी सभी जानकारी देने की कोशिश की है। अगर फिर भी आपके मन में कोई सवाल रह गए हैं, तो हमारी वेबसाइट https://www.onlymyhealth.com में 'Claustrophobia' से जुड़े दूसरे लेख पढ़ें या हमारे सोशल प्लेटफार्म से जुड़ें।