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ऑटिज्म क्या है और क्यों होता है? 8 वर्षीय सोनू की कहानी के जरिए समझें बीमारी को

Autism kya hai aur kyon hota hai: ऑटिज्म एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है। इस रोग से पीड़ित मरीज काफी हाइपर होते हैं।
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ऑटिज्म क्या है और क्यों होता है? 8 वर्षीय सोनू की कहानी के जरिए समझें बीमारी को


What Is Autism Explain In Hindi: ‘शादी के लंबे समय तक मेरी कोई संतान नहीं हुई थी। मैंने कई डॉक्टरों के चक्कर लगाए, कई अस्पताल गई, कई नर्सिंग होम की दर-दर की ठोकरें खाई थी। अंत में, मैंने आईवीएफ की मदद ली थी। जिससे मेरे दो बच्चे हुए।  दोनों, बेटे। लेकिन दोनों बच्चे प्रीमैच्योर हुए। इस वजह से बच्चों को कई दिनों तक ICU में रखना पड़ा था। उसी दौरान एक बच्चे को ब्रेन इंजुरी हुई थी। उस समय तक मुझे ये नहीं पता था कि इस इंजुरी का मेरे बच्चे पर गहरा असर पड़ने वाला है। जब बच्चे मेरी जो आए, यकीन मानिए, मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। मैं इतनी खुश थी कि बता नहीं सकती थी। वक्त सहजता से बीतता गया। एक समय बाद, मैंने नोटिस किया मेरे दोनों बेटों में से एक थोड़ा ज्यादा हाइपरएक्टिव है। वह चीजें तोड़ने लगता, वह बेतहाशा पांव पटकता था और जो भी चीजें उसके हाथ में आती थीं, वह तोड़ देता था। हद तो तब हो गई, जब महज डेढ़ साल की उम्र में उसने अपने आपको दीवार पर दे मारा। उसकी इस तरह की हरकतों ने मुझे बेहत परेशान कर दिया था। वह दो साल की उम्र तक एक भी शब्द नहीं बोल पाता था। तब मुझे लगा कि उसे लेकर डॉक्टर के पास जाना बहुत जरूरी है। आखिर मुझे पता तो चले कि वह ऐस क्यों कर रहा है? डॉक्टर के पास ले गई, तो उसका एमआरआई करवाया गया था। रिपोर्ट के जरिए पता चला कि डिलीवरी के दौरान उसे सिर में चोट लगी थी, जिस वजह से उसे ऑटिज्म हो गया। यह खबर सुनते ही मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई थी। मैंने खुद को कैसे संभाला था, यह मैं आज भी किसी को समझा नहीं सकती हूं।’

यह कहानी आठ वर्षीय सोनू (बदला हुआ नाम) की है। सोनू की मां मीना (बदला हुआ नाम) ने खुद यह कहानी ओनीमायहेल्थ से शेयर की है। सोनू एक ऑटिस्टिक बच्चा है, जिसकी परवरिश उसकी मां कर रही है। बच्चे की काउंसलिंग करवाने से लेकर उसका हर तरह का काम मीना खुद करती हैं। सोनू की कहानी के जरिए, आज हम जानेंगे कि ऑटिज्म क्या है, क्यों होता है, इसके लक्षण क्या हैं। इस संबंध में हमने सुकून साइकोथैरेपी सेंटर की फाउंडर, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और साइकोथैरेपिस्ट दीपाली बेदी से डिटेल बात की है।

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ओनलीमायहेल्थ ऐसे मानसिक विकारों और रोगों की बेहतर तरीके से समझने के लिए ‘मेंटल हेल्थ मैटर्स’ नाम से एक विशेष सीरीज चला रहा है। इस सीरीज में हम तरह-तरह के मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, उसके प्रभावों और लक्षणों के बारे में सटीक जानकरियां अपने पाठकों तक पहुंचाएंगे। इस संबंध हमने विशेषज्ञ से बात की है। आज इस सीरीज में आपको सोनू की स्टोरी के माध्यम से ‘ऑटिज्म’ के बारे में बताने जा रहे हैं।

ऑटिज्म क्या है (What is Autism)

What is Autism

सुकून साइकोथैरेपी सेंटर की फाउंडर, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और साइकोथैरेपिस्ट दीपाली बेदी के अनुसार, ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी), सामाजिक कौशल, दोहराए जाने वाले व्यवहार, स्पीच, नॉन-वर्बल कम्युनिकेशन से जुड़ी बीमारी है। ऑटिज्म सिर्फ एक तरह की बीमारी नहीं है, बल्कि इसके कई तरह के प्रकार यानी सब केटेगरी हैं। इसके होने की वजह अलग-अलग हो सकती है, मरीजों का व्यवहार अलग-अलग हो सकता है। इन सबमें यह तय है कि ऑटिज्म का कोई स्थाई इलाज नहीं होता है। हालांकि, इस बीमारी के तहत मरीज की काउंसलिंग की जाती है, जिससे उसके स्वभाव को कुछ हद तक नियंत्रण में रखा जा सकता है।

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ऑटिज्म के लक्षण (Symptoms Of Autism)

जैसा कि मीना बताती हैं कि उनका बेटा जब महज डेढ़ साल का था, तब वह पांव पटकता था, दीवार में जाकर सिर मारता था और आक्रामक व्यवहार करता था। यहां तक कि उसे चोट लग जाए, तो उस पर मरहम भी लगाने नहीं देता और अगर पट्टी की जाए, तो उसे भी खोलकर फेंक देता है। सुकून साइकोथैरेपी सेंटर की फाउंडर, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और साइकोथैरेपिस्ट दीपाली बेदी इसके अन्य लक्षणों के बारे में बताते हुए कहती हैं-

  • ऑटिज्म के बच्चे आई कॉन्टैक्ट नहीं कर पाते।
  • उन्हें बोलने में दिक्कत आती है।
  • सोशल कम्युनिकेशन नहीं कर पाते।
  • उन्हें वर्बल और नॉन-वर्बल कम्युनिकेशन में भी प्रॉब्लम होती है।
  • जन्म के बाद कई महीनों तक ये बच्चे अपने इमोशंस, जैसे खुशी, उदासी, गुस्सा और हैरानी को व्यक्त नहीं कर पाते।
  • ऑटिस्टिक बच्चे साल भर तक इंटरैक्टिव गेम्स नहीं खेल पाते।
  • इस तरह के बच्चे बातचीत करने के लिए उंगलियों से इशारा करते हैं।
  • ये बच्चे अपने इंट्रेस्ट को शो नहीं कर पाते। उन्हें नहीं पता होता है कि उनकी रुचि किस चीज में है।
  • ये बच्चे दूसरों के सुख-दुख का हिस्सा नहीं बन पाते।
  • दूसरों को चोट लग जाए, तो उस ओर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं।
  • सामान्य बच्चों की तरह ये नाचने-गाने जैसी एक्टिविटी का हिस्सा नहीं होते हैं।

ऑटिज्म का कारण (Causes Of Autism)

मीना का कहना है कि उन्हें एमआरआई की रिपोर्ट के बाद यह पता चला था कि डिलीवरी के दौरान उनके बेटे को ब्रेन इंजुरी हुई थी। इस कारण उसे ऑटिज्म की समस्या हुई है। क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और साइकोथैरेपिस्ट दीपाली बेदी कहती हैं, “ऑटिज्म एक न्यूरोलॉजिक प्रॉब्लम है, तो यह जेनेटिकल हो सकता है या बोयोलॉजिकल भी हो सकता है। इसके अलावा, प्रेग्नेंसी के दौरान अगर महिला को किसी तरह की समस्या हो, तब भी बच्चे को यह समस्या हो सकती है। हालांकि, ऑटिज्म के होने की सटीक वजह का अब तक पता नहीं चला है।”

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ऑटिज्म का इलाज (Treatment Of Autism)

मीना अपने 8 साल के बेटे सोनू के इलाज के तौर पर उसे प्रोफेशनल काउंसलर के पास ले जाती थीं और अब भी ले जाती हैं। उनका कहना है, ‘प्रोफेशनल काउंसलिंग की मदद से बेटे के ऑटिस्टिक लक्षणों को नियंत्रण करने में काफी मदद मिली है। हालांकि, वह अब भी काफी नहीं है। सोनू अब भी किसी-भी बात पर आक्राम हो जाता है और वह बहुत ज्यादा हाइपरएक्टिव भी है।’ क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और साइकोथैरेपिस्ट दीपाली बेदी ऑटिज्म के इलाजों की बात करते हुए बताती है, ‘यह सही है कि ऑटिज्म का कोई इलाज नहीं है। काउंसलिंग और थेरेपी की मदद से बच्चे की फंक्शनिंग को बेहतर किया जाता है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को जितना जल्दी हो सके, उतना जल्दी विशेषज्ञों के पास ले जाना चाहिए। उसके फंक्शन कितने दिनों में बेहतर हो सकते हैं, ये बात बच्चे की स्थिति पर निर्भर करता है। ऑटिज्म तीन तरह के होते हैं, माइल्ड, मॉडरेट और सीवियर। इसके अलावा, बच्चे की स्ट्रेंथ को पहचानते हुए उसके स्किल्स को एन्हैंस करना हमारा काम होता है।’

ऑटिज्म के मरीजों की मदद कैसे करें (How To Help)

मीना कहती हैं कि मेरे घर में सोनू के अलावा मेरा एक बेटा और है। ये दोनों ट्विंस हैं। घर मेंं एक ऑटिज्म बच्चा होने के कारण, मेरे नॉर्मल बच्चे को कई तरह की समस्याओं  का सामना करना पड़ता है, जैसे मैं उसे पूरा अटेंशन नहीं दे पाती। लेकिन, अच्छी बात ये है कि मेरा दूसरा बेटा सोनू की केयर में मेरी पूरी मदद करता है। कई बार, वह भी मेरे साथ-साथ अपने भाई की रोजमर्रा के काम में मदद करता है। क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और साइकोथैरेपिस्ट दीपाली बेदी सलाह देती हैं कि अगर घर में कोई बच्चा ऐसा है, तो पेरेंट्स को बहुत सब्र के साथ अपने बच्चे की परवरिश करनी चाहिए। उसे समय-समय पर एक्सपर्ट के पास ले जाना चाहिए, उसकी काउंसलिंग करवानी चाहिए। इस तरह उसे बेहतर तरीके से फंक्शनिंग में मदद मिलेगी। यही नहीं, काउंसलिंग की मदद से बच्चे की इंटलेक्चुअल स्किल को निखारा जा सकता है, उसकी सीमाओं को समझते हुए, उसे बेहतर बनाया जा सकता है।

सोनू की तरह अगर आपके घर में भी ऐसा कोई है, तो उसकी देखभाल बहुत प्यार करें। उसके लक्षणों के प्रति जरा भी लापरवाही न करें। डॉक्टर से संपर्क करें। हालांकि, इस लेख में हमने ‘ऑटिज्म’ से जुडी सभी जानकारी देने की कोशिश की है। इसके बावजूद, अगर आपके मन में इससे जुड़े और भी सवाल हैं, तो हमारी वेबसाइट https://www.onlymyhealth.com में Autism से जुड़े दूसरे लेख पढ़ें या हमारे सोशल प्लेटफार्म से जुड़ें।

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