Down Syndrome vs Autism: डाउन सिंड्रोम और ऑटिज्म दोनों ही जन्म से जुड़ी बीमारियां हैं। दोनों ही बीमारियों में बच्चे को मानसिक और शारीरिक चुनौतियां होती हैं। भारत में खासतौर से मुश्किल यह होती है कि लोगों में डाउन सिंड्रोम और ऑटिज्म को लेकर ज्यादा जागरूकता नहीं है। इसलिए लोग दोनों बीमारियों को एक ही समझ लेते हैं। आंकड़ों पर नजर डाली जाए, तो भारत में हर साल करीब 30 हजार बच्चे डाउन सिंड्रोम के साथ जन्म लेते हैं, वहीं करीब 20 लाख बच्चे ऑटिज्म से प्रभावित हैं। ऐसी स्थिति में यह बहुत जरूरी हो जाता है कि दोनों बीमारियों के अंतर को समझा जाए और साथ ही इन बीमारियों से पीड़ित बच्चों को कौन सी थेरेपी दी जाए। इस बारे में हमने विस्तार से गुरुग्राम के मेंदाता अस्पताल के कंसल्टेंट बालरोग विशेषज्ञ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अंकुश सिंह (Dr Ankush Singh,Consultant, Pediatric Neurologist, Medanta Hospital, Gurugram) से बात की।
डाउन सिंड्रोम क्या है और इसके लक्षण - What is Down Syndrome and Symptoms in Hindi
डॉ. अंकुश सिंह कहते हैं कि डाउन सिंड्रोम की समस्या असामान्य क्रोमोजोम की वजह से होती है। प्रेग्नेंसी में जब 21वें क्रोमोजोम की दो कॉपी बनने की बजाय तीन बन जाती हैं, तो शिशु को डाउन सिंड्रोम की दिक्कत होती है। ऐसे बच्चों में 46 क्रोमोजोम की जगह 47 क्रोमोजोम बन जाते हैं। हालांकि प्रेग्नेंसी में इसका टेस्ट भी किया जा सकता है। इस बीमारी में बच्चे के शारीरिक और मानसिक दिक्कते देखने को मिलती हैं। बच्चे में कुछ लक्षण ऐसे होते हैं -
- नाक चपटी और गर्दन छोटी होती है
- आंखें बादाम के आकार की होती हैं
- जीभ मुंह से बाहर निकलती रहती है
- हाथ और पैर छोटे होते हैं
- आमतौर पर हाइट सामान्य से कम होती है
- सोचने और समझने की क्षमता कम होती है
- बोलने में दिक्कत महसूस होती है
- बच्चों को दिल, दांतों या आंखों में दिक्कत हो सकती है
इसे भी पढ़ें: World Down Syndrome Day: डाउन सिंड्रोम के बारे में इन 5 बातों की लोगों को है गलत जानकारी, डॉक्टर से जानें सच्चाई
ऑटिज्म क्या है और इसके लक्षण - What is Autism in Hindi
डॉ. अंकुश सिंह कहते हैं, “ऑटिज्म को मेडिकल भाषा में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑडर (Autism Spectrum Disorder) कहा जाता है। इसके होने के कारणों की अभी तक कोई पुष्टि नहीं हुई है। इसमें बच्चे का दिमाग आम लोगों से थोड़ा अलग तरीके से काम करता है। उन्हें आमतौर पर पढ़ने-लिखने और लोगों से मेलजोल बढ़ाने में दिक्कत आती है। वैसे तो इसके लक्षणों की किसी भी उम्र में पहचान हो सकती है, लेकिन आमतौर पर जन्म के बाद दो साल के भीतर लक्षण नजर आने लगते हैं। ऑटिज्म ऐसी मेडिकल स्थिति नहीं है, जिसका इलाज किया जा सके। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे का थेरेपी की मदद से जीवन बेहतर किया जा सकता है। इसके लक्षण कुछ इस तरह हैं।”
- आंख मिलाकर बात न कर पाना
- दूसरों की बातों पर फोकस न कर पाना
- दूसरों के साथ बात कर पाने में दिक्कत होना
- अनजान आवाज सुनकर घबरा जाना या डर जाना
- एक ही काम को बार-बार करना
- एक ही बात को बार-बार दोहराते रहना
- रोजाना का रूटीन बदलने पर दिक्कत महसूस करना
- अपनी भावनाएं न समझा पाना
डाउन सिंड्रोम और ऑटिज्म में अंतर - What is the difference between autism and down syndrome in Hindi
डॉ. अंकुश कहते हैं, “हालांकि दोनों ही समस्याएं बच्चे के विकास से जुड़ी हैं, लेकिन दोनों परेशानियां अलग-अलग हैं। डाउन सिंड्रोम में बच्चे के शारीरिक विकास में कई तरह की परेशानियां देखने को मिलती हैं। इस बीमारी में बच्चे के कई अंग असामान्य तरीके से विकसित होते हैं और साथ ही बच्चे को इम्यूनिटी संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। कई मामलों में देखा गया है कि बच्चे को देखने, सुनने, दिल की बीमारियां, थॉयरायड या फिर मोटापे की परेशानी भी होती है। वहीं दूसरी तरफ ऑटिज्म दिमाग से जुड़ी समस्या है और इसके लक्षण मुख्य रूप से व्यवहार और कोग्नेटिव (Cognitive) होते हैं।”
डॉ. अंकुश के अनुसार, प्रेग्नेंसी में डाउन सिंड्रोम की स्क्रीनिंग की जा सकती है, लेकिन ऑटिज्म 15 महीने से लेकर 24 महीने तक पता चलता है। ऑटिज्म के लक्षणों से इसकी पहचान होती है। एक और खास बात यह है कि कुछ मामलों में देखा गया है कि जो बच्चे डाउन सिंड्रोम से पीड़ित हैं, उन बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण भी देखे गए हैं।
इसे भी पढ़ें: क्या प्रेग्नेंसी में तनाव के कारण ऑटिज्म हो सकता है? जानें डॉक्टर से
डाउन सिंड्रोम और ऑटिज्म को लेकर डॉक्टर की सलाह - Doctor advice for Autism and Down Syndrome
डॉ. अंकुश कहते हैं, “जो महिलाएं बड़ी उम्र में प्रेग्नेंट होती हैं, उन्हें डाउन सिंड्रोम की स्क्रीनिंग करानी चाहिए। इसके अलावा, डाउन सिंड्रोम और ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के पैरेंट्स को बिहेवियरल, फिजिकल थेरेपी करानी चाहिए। इसके अलावा बोलने की थेरेपी कराना भी फायदेमंद होता है। बच्चों को बहुत ज्यादा प्रेशर न दें। ऐसे बच्चों को परिवार के सपोर्ट की बहुत जरूरत होती है। बच्चों का रेग्लुर चेकअप कराएं और किसी भी तरह की मेडिकल कंडीशन दिखने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लें। डाउन सिंड्रोम और ऑटिज्म के इलाज के लिए कोई भी दवाई नहीं है, लेकिन इससे जुड़ी बीमारियों के लिए डॉक्टर दवाइयां देते हैं।