
ऑटिज्म एक तरह का मानसिक डिसऑर्डर है। हालांकि इस बीमारी का शिकार बच्चे ज्यादा होते हैं, मगर ये किसी भी उम्र के व्यक्ति हो सकती है। यही कारण है कि लोग ऑटिज्म को बच्चों की बीमारी मानते हैं। ऑटिज्म के शिकार बच्चे आमतौर पर चीजों को देर से सीखते हैं और उनका दिमाग भी चीजों का रिस्पॉन्स देर से देता है। यही कारण है कि कुछ लोग ऑटिज्म के शिकार बच्चों को मंदबुद्धि मानकर ये सोच लेते हैं, उन्हें ठीक नहीं किया जा सकता है। मगर ऐसे बच्चों की अगर सही परवरिश की जाए, तो ये बच्चे अन्य बच्चों की तरह सामान्य जिंदगी जी सकते हैं। ऑटिज्म के शिकार बच्चों की संख्या पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ गई है। इसका कारण महिलाओं की बदलती जीवनशैली, सेहत और खानपान है।
हमारे समाज में ऑटिज्म जैसी संवेदनशील बीमारी को लेकर कई तरह की भ्रामक अफवाहें फैली हुई हैं, जिनके कारण इस बीमारी का शिकार बच्चों को विकास का सही मौका नहीं दिया जाता है। आइए आपको बताते हैं ऑटिज्म से जुड़ी ऐसी ही 5 अफवाहों की सच्चाई।

ऑटिज्म के कारण बच्चे मंदबुद्धि होते हैं
कुछ लोगों को लगता है कि ऑटिज्म का शिकार बच्चे समाज में घुल-मिल नहीं पाते हैं और लोगों के बीच झिझकते हैं। लोगों को लगता है कि ऐसे बच्चे मंदबुद्धि होते हैं। मगर आपको बता दें कि ऑटिज्म के कुछ लक्षण ऐसे भी होते हैं, जो आपको बेहद सामान्य लग सकते हैं और आपके बच्चे में भी हो सकते हैं। जैसे-
- बोलना सीखने में देरी
- आंख मिलाकर बात करने में परेशानी होना
- खेल-कूद में दिलचस्पी न लेना और दोस्त न बनाना
- बड़ों की बातें सुनकर नजरअंदाज कर देना या आज्ञा न मानना
- बैठे-बैठे पैर हिलाना, हाथ हिलाना या शरीर को हिलाते-डुलाते रहना
- हमेशा अपने मन की करना और लोगों को परेशान करना
- स्वभाव में चिड़चिड़ापन और बहुत ज्यादा गुस्सा करना
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ऑटिज्म का कोई इलाज नहीं है
ये ऑटिज्म से जुड़ी सबसे बड़ी गलतफहमी है कि इसके शिकार लोगों को ठीक नहीं किया जा सकता है। ऑटिज्म कोई बीमारी नहीं, बल्कि बुद्धि कौशल है, इसलिए इसे थोड़े बहुत प्रयास के बाद विकसित किया जा सकता है। गंभीर ऑटिज्म के शिकार बच्चों को भी कुछ दवाओं, सही डाइट और ट्रेनिंग के द्वारा इस तरह से विकसित किया जा सकता है कि वो दूसरे लोगों के साथ घुल-मिल सकें और अच्छी सामाजिक जिंदगी जी सकें।

ऑटिज्म के रोगी को देखकर पहचाना जा सकता है
लोगों को लगता है कि ऑटिज्म के शिकार बच्चों को देखकर ही पहचाना जा सकता है, क्योंकि इनमें कुछ सामान्य लक्षण होते हैं जैसे- सीधे न खड़े होना, हाथ को सीधा न रखना, कंफ्यूज दिखना, आंखें आड़ी-तिरछी करना आदि। मगर आपको बता दें कि ऑटिज्म के कुछ लक्षण ऐसे होते हैं, जिन्हें किसी व्यक्ति को देखकर नहीं पहचाना जा सकता है। जैसे-
- बोलते समय अटक-अटक कर बोलना या हकलाना
- भाषा सीखने में देर लगना या परेशानी होना
- लोगों को अपनी बात न समझा पाना
- हर समय खोए-खोए रहना और चिंतित दिखाई देना
ऑटिज्म का पता बचपन में ही चल जाता है
लोगों को लगता है कि ऑटिज्म के शिकार बच्चों का पता बचपन से ही लग जाता है, क्योंकि उनका व्यवहार सामान्य से अलग होता है। मगर यह सच नहीं है। कई बार बच्चे के ऑटिज्म का पता आपको तब तक नहीं चलता है जब तक वो स्कूल नहीं जाने लगता है क्योंकि उसके पहले उसकी सभी गतिविधियां आपको सामान्य लग सकती हैं। हालांकि अगर बच्चा गंभीर ऑटिज्म का शिकार है, तो इसका पता 6 महीने के बाद भी चल सकता है।
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ऑटिज्म का शिकार सिर्फ बच्चे होते हैं
ऑटिज्म एक ऐसा मानसिक डिसऑर्डर है, जो जीवन के किसी भी मोड़ पर हो सकता है। कई बार युवा होने के बाद लोगों में इस मानसिक समस्या के लक्षण दिखने शुरू होते हैं। ऐसे लोगों को बचपन से किसी बड़ी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है, मगर बाद में सोशल और कम्यूनिकेशन स्किल ठीक से न विकसित हो पाने के कारण अपने हमउम्र लोगों से ये पीछे रह जाते हैं। इसलिए यह मानना गलत है कि ऑटिज्म बच्चों की बीमारी है।
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