बोलने में दिक्कत, चिड़चिड़ापन और बातों को न समझ पाना है ऑटिज्‍म के संकेत, कुछ इस तरह रखें बच्‍चे का ख्याल

ऑटिज्म एक मानसिक रोग है, जिसके लक्षण जन्म या बाल्यअवस्था में ही बच्चों में दिखाई देने लगते हैं। आइए यहां हम आपको बताते हैं कि बच्चों में ऑटिज्म के खतरे को पहचान कैसे करें। 
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बोलने में दिक्कत, चिड़चिड़ापन और बातों को न समझ पाना है ऑटिज्‍म के संकेत, कुछ इस तरह रखें बच्‍चे का ख्याल


ऑटिज्म दिमागी रोग है, जो कि वयक्ति को मानसिक रूप से अक्षम कर देता है। ऑटिज्म से ग्रसत लोगों को दूसरे लोगों से बातचीत करने और घुलने मिलने या सोचने-समझने में समस्या होती है। इनके स्‍वभाव, लगनता, और काम को करने मे भी असामान्य बदलाव होता है। ऑटिज्म एक ऐसा मस्तिष्क रोग है, जिससे ग्रस्त व्यक्ति का शारीरिक विकास तो होता है, लेकिन मानसिक विकास धीमा हो जाता है। इससे पीड़ित अपनी ही दुनिया में खोया रहता है। वह बोलने में दिक्कत महसूस करना, चिड़चिड़ापन और बातों को समझ न पाना जैसी कई समस्‍याएं होती हैं। आइए हम आपको ऑटिज्‍म से जुड़ी पूरी जानकारी यहां दे रहें हैं। 

ऑटिज्म क्या है?

ऑटिज्म एक मानसिक रोग है जिसके लक्षण जन्म से या बाल्यावस्था से ही दिखाई देने लगते है। जिन बच्चो में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चों से असामान्य होता है। उनका व्यवहार भी अन्य बच्चों से काफी अलग होता है। अकसर अभिभावकों के लिए बहुत कम उम्र में बच्चों में इस बीमारी के लक्षणों को पहचान पाना मुश्किल होता है। बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है और उसे व्यवहार में कुछ असमान्यताएं दिखाई देती हैं तब अभिभावक इस पर गौर करते हैं। जानें ऑटिज्म लक्षणों के बारे में-

ऑटिज्म के लक्षणों की पहचान 

  • जिन लोगों में ऑटिज्म के लक्षण होते हैं वे अपने आसपास के लोगों और पर्यावरण से उदासीन से हो जाते हैं।
  • अक्सर खुद को चोटिल या किसी ना किसी तरह नुकसान पहुंचाते हैं।
  • बार-बार सिर हिलाना
  • एक ही तरह का व्यवहार या आवाज बार-बार करना
  • थोड़ा सा भी बदलाव होने पर बेचैन हो जाना
  • देर तक एक ही तरफ देखते रहना
  • बार-बार हिलना और एक ही तरह का बॉडी पॉस्चर रखना।
  • कब्ज, पाचन संबंधी समस्या और अनिद्रा जैसे लक्षण भी दिखते हैं।

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ऑटिज्म के मरीज को कैसे संभाले?

अक्सर माता-पिता के लिए यह सबसे बड़ी मुश्किल होती है कि वे अपने ऑटिज्म ग्रस्त बच्चे को कैसे संभाले या उसके साथ कैसे व्यवहार करें। ऐसे में सबसे पहले तो माता-पिता को बच्चे का साथ छोड़ने की जगह उनके साथ प्यार व दुलार के साथ पेश आना चाहिए। 

बच्चे को संभालने के लिए उसके व्यवहार को परखें और समझें कि वो क्या कहना चाहता है। 

ऐसे लोग अपनी हर इच्छा को तीखे या दबे हुए व्यवहार से ही बताना चाहते हैं। ऑटिज्म के मरीज अंतर्मुखी होते हैं, यह समाज से नहीं जु़ड़ पाते। यदि जुड़ते भी हैं, तो उनका व्यवहार काफी अलग होता है। इसलिए उनके साथ धैर्य और प्‍यार से पेश आएं। 

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ऐसे लोग किसी भी बात को सुनने के बाद लगातार बोलते रहते हैं। इनके दैनिक दिनचर्या में अगर कोई बदलाव आ जाए, तो ये मानसिक रूप से काफी परेशान हो जाते हैं। ऑटिज्म से पीड़ित मरीजों को समुचित देखरेख की जरूरत होती है। ऑटिज्म आजीवन रहने वाली बीमारी है, जिसे दवाइयों से ठीक कर पाना थोड़ा मुश्किल है। इसलिए परिवार का साथ ही इसका इलाज है। 

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