बच्चे बेहद नाजुक व स्वभाव से बेहद कोमल होते हैं और यही कारण है कि कोई भी स्वास्थ्य समस्या उन्हें सबसे पहले और सबसे अधिक प्रभावित करती है। लेकिन यह स्वास्थ्य समस्या शारीरिक ही हो, ऐसा जरूरी नहीं है। आज के बदलते युग में बच्चे शारीरिक के साथ-साथ कई तरह की मानसिक समस्याओं से भी जूझ रहे हैं। इनमें से कुछ समस्याएं ऐसी हैं, जो सिर्फ बच्चों में ही देखी जाती हैं, वहीं बहुत सी मानसिक समस्याओं बड़ों के साथ-साथ बच्चों को भी प्रभावित करती हैं। हालांकि बच्चों में इसके लक्षण काफी तीव्र होते हैं। जैसे अगर एक बच्चा डिप्रेशन में है तो उसकी हालत एक व्यस्क से अधिक गंभीर होगी। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि बच्चों में किसी भी तरह का बदलाव होने पर उस पर तुरंत ध्यान दिया जाए। तो चलिए आज हम आपको बच्चों में देखी जाने वाली कुछ मानसिक समस्याओं के बारे में बता रहे हैं-
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
रोहिणी के सरोज सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के न्यूरोसाइकेट्रिस्ट डॉ. आत्मेश कुमार कहते हैं कि आज के समय में बच्चों में कई तरह की मानसिक समस्याएं बेहद काॅमन हैं। जैसे एंग्जाइटी डिसआर्डर, पाइका, चाइल्डहुड डिप्रेशन, ऑटिज्म, ओडीडी, ईटिंग डिसआर्डर, एडीएचडी, आदि। इससे निपटने का सबसे आसान तरीका है कि अभिभावक बच्चों के व्यवहार या उसकी खानपान की आदतों में बदलाव आने पर एक बार चाइल्ड स्पेशलिस्ट, न्यूरोसाइकेट्रिस्ट या चाइल्ड साइकोलाॅजिस्ट से जरूर मिलें।
एंग्जाइटी डिसआर्डर (Anxiety disorders)
जिन बच्चों को एंग्जाइटी डिसआर्डर होता है, वह किसी चीज या परिस्थिति को देखकर डर, चिंता या तनाव का रिएक्शन देते हैं। इसके अलावा उनमें कुछ शारीरिक लक्षण भी देखे जा सकते हैं, जैसे नर्वसनेस, घबराहट, दिल की धड़कन तेज होना या पसीना आना। एंग्जाइटी के कारण बच्चा अपने रोजमर्रा के कार्यों को भी ठीक तरह से करने में सक्षम नहीं हो पाता। बच्चों में कई तरह के एंग्जाइटी डिसआर्डर होते हैं जैसे- ऑब्सेसिव कंप्लसीव डिसआर्डर, पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसआर्डर, सोशल फोबिया आदि।
एडीएचडी (Attention-deficit/hyperactivity disorder )
एडीएचडी वाले बच्चों को आमतौर पर अपना ध्यान किसी एक चीज पर केंद्रित करने में समस्या होती है। वे निर्देशों का पालन नहीं कर सकते हैं और बहुत जल्दी बोर हो जाते हैं। ऐसे बच्चे बहुत अधिक इंपलसिव या हाइपर एक्टिव होते हैं और कुछ भी करने से पहले सोचते नहीं हैं। कुछ बच्चों में यह सभी लक्षण नजर आते हैं तो कुछ बच्चों में एक या इससे अधिक लक्षण भी नजर आ सकते हैं।
ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism spectrum disorder)
ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक बेहद गंभीर डेवलपमेंट डिसऑर्डर है जो अधिकतर तीन साल से कम उम्र के बच्चों में नजर आता है। हालांकि हर बच्चे में इसके लक्षण व गंभीरता अलग हो सकती है, लेकिन फिर भी ऐसे बच्चों को दूसरों के साथ कम्युनिकेट करने में दिक्कत होती है।
ओपोजिशनल डेफिएंट डिसऑर्डर (Oppositional defiant disorder)
ओपोजिशनल डेफिएंट डिसऑर्डर अर्थात ओडीडी एक ऐसी मानसिक समस्या है, जिसमें बच्चा कभी भी दूसरों की बात को नहीं मानता। ऐसे बच्चों में गुस्सा व चिड़चिड़ा स्वभाव देखा जाता है। यूं तो आज के समय में अधिकतर बच्चे बढ़ती उम्र में कुछ हद तक इस तरह का व्यवहार करते हैं और जल्दी से दूसरों की बात नहीं मानते, लेकिन ओडीडी से प्रभावित बच्चे में यह समस्या इतनी अधिक देखी जाती है कि माता-पिता के लिए उन्हें संभालना काफी मुश्किल हो जाता है। आसान शब्दों मंे कहा जाए तो ऐसे बच्चे हमेशा बड़ों की कही गई बात का उल्टा ही करते हैं। मसलन, अगर आप उन्हें खाने के लिए कहेंगे तो वे बिल्कुल नहीं खाएंगे, वहीं अगर आप उन्हें खाने के लिए मना करेंगे तो वह जरूर खाएंगे। ऐसे बच्चे हमेशा ही दूसरों की बात काटते हैं।
कंडक्ट डिसऑर्डर (Conduct disorder)
यह एक ऐसा डिसऑर्डर है, जिसमें बच्चा लगातार झगड़ा करना, बुली करना, झूठ बोलना, चीजें चुराना, चीजों को तोड़ना-फोड़ना, घर से भाग जाना, जानवरों के प्रति क्रूरतापूर्ण व्यवहार आदि करता है। अधिकतर माता-पिता हमेशा ही ऐसे बच्चे को डांटते या मारते हैं, जबकि वास्तव में उन्हें सही इलाज की जरूरत होती है।
ईटिंग डिसऑर्डर (Eating disorder)
ईटिंग डिसऑर्डर मुख्य रूप से बच्चों के मन की भावनाओं, खाने व वजन से जुड़ा हुआ है। वैसे ईटिंग डिसऑर्डर बच्चों के साथ-साथ बड़ों में भी देखा जाता है। इसके मुख्य रूप हैं- एनोरेक्सिया नर्वोसा, बुलिमिया नर्वोसा और बिंग ईटिंग डिसआर्डर। इन ईटिंग डिसआर्डर के कारण सिर्फ बच्चे कुपोषित ही नहीं होते या उनके विकास पर ही प्रभाव नहीं पड़ता। बल्कि इसके चलते कई बार उनकी जान पर भी बन आती है, इसलिए इसे बिल्कुल भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
मूड डिसऑर्डर (Mood disorder)
मूड डिसऑर्डर जैसे डिप्रेशन या बाइपोलर डिसऑर्डर आदि में बच्चे को बहुत अधिक मूड स्विंग्स होते हैं। वह कभी बहुत देर तक बिना किसी कारण उदास होता है तो कभी चिड़चिड़ा और कभी खुश। इस तरह उसे समझ ही नहीं आता कि वह अपने मूड में आने वाले इन बदलावों को किस तरह हैंडल करे।
परवेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर (Pervasive development disorder)
इन विकारों वाले बच्चे आमतौर पर अपनी ही सोच में भ्रमित होते रहते हैं और इसके कारण उन्हें उनके आसपास की दुनिया को समझने में समस्याएं होती हैं।
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सिजोफ्रेनिया (Schizophrenia)
सिजोफ्रेनिया एक बेहद गंभीर मानसिक बीमारी है। यह बीमारी अधिक टीनेजर्स में देखने को मिलती है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चे वास्तविक दुनिया से दूर हो जाते हैं और काल्पनिक वस्तुओं को ही सच समझने की भूल कर बैठते हैं। उन्हें समझ ही नहीं आता कि किसी सामाजिक परिस्थिति में उन्हें क्या प्रतिक्रिया देनी है।
पिका डिसऑर्डर (Pica disorder)
पिका एक ऐसी मानसिक समस्या है, जो बच्चे में बेहद आमतौर पर देखी जाती है। इसमें बच्चे उन चीजों को खाने के लिए लालायित होते हैं, जो वास्तव में खाने लायक नहीं होती। इसे जियोफेगिया भी कहा जाता है। इसमें बच्चे चॉक खाना, मिट्टी चाटना, दीवारों का प्लास्टर खाना, माचिस की तीली, घड़े या मिट्टी आदि को खाना काफी पसंद करते हैं। अगर इसका समय रहते इलाज न किया जाए तो बच्चों को अखाद्य चीजों को खाने की आदत पड़ जाती है और इससे बच्चे कुपोषित तो होते हैं ही, साथ ही इससे बच्चों में भूख न लगना, कमजोरी, आंतों की समस्या, पेट में दर्द या कीड़े होना, किडनी में पथरी व एनीमिया जैसी कई समस्याएं हो सकती हैं।
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स्पेसिफिक लर्निंग डिसएबिलिटी (Specific Learning Disability)
स्पेसिफिक लर्निंग डिसएबिलिटी अर्थात एसएलडी एक ऐसी मानसिक समस्या है, जिसमें बच्चे को सुनने, सोचने, बोलने, पढ़ने, लिखने या सवालों को हल करने में समस्या पैदा होती है। यह वास्तव में एक लर्निंग डिसएबिलिटी है, जिसमें बच्चा किसी भी चीज को सीख या समझ नहीं पाता। एसएलडी में डिस्लेक्सिया, मिनिमम बे्रन डिस्फंक्शन, एक्जीक्यूटिव फंक्शन डिसआर्डर, आदि शामिल है। एसएलडी में फिजिकल समस्या के कारण सीखने में समस्या, इमोशनल, कल्चरल फैक्टर्स, एनवायरनमेंट आदि को शामिल नहीं किया जाता।
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