IVF Journey In Hindi: हर कपल चाहता है कि शादी के कुछ सालों बाद ही वे पेरेंट्स बनने का सुख प्राप्त कर सकें। लेकिन, मौजूदा समय में हमने देखा है कि इंफर्टिलिटी बढ़ रही है। ऐसा सिर्फ महिलाओं के साथ ही नहीं हो रहा है, बल्कि पुरुषों को भी इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है। इसके पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं। जैसे अच्छी लाइफस्टाइल फॉलो न करना, अनहेल्दी डाइट लेना और बढ़ता तनाव भी इंफर्टिलिटी को बढ़ावा देता है। यही कारण है कि हाल के सालों में ऐसे पेरेंट्स की संख्या बढ़ी है, जिन्होंने आईवीएफ प्रक्रिया की मदद ली है। आज हम एक ऐसे ही कपल की जर्नी के बारे में जानेंगे। इनका नाम है वंदना और जितेश शाह। इनकी जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए, कभी एक्सीडेंट तो कभी हेल्थ प्रॉब्लम। शादी के करीब 9 साल बाद ये कपल पेरेंट्स बनने का सुख प्राप्त कर सके। आइए, जानते हैं उनकी आईवीएफ के जर्नी के बारे में हर छोटी-बड़ी बातें। यह स्टोरी हमारे साथ खारघर स्थित मदरहुड हॉस्पिटल में कंसल्टेंट फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट और रिप्रोडक्टिव एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. रीता मोदी ने शेयर की।
शादी के दो साल बाद हुआ एक्सीडेंट
वंदना और जितेश शाह किसी भी सामान्य कपल की तरह अपनी जिंदगी जी रहे थे। शादी को दो साल हो चुके थे। लेकिन, एक रोज उनके साथ बुरा हादसा हुआ, जिसमें जितेश को गंभीर चोट आई। इस दुर्घटना में जितेश की रीढ़ की हड्डी (स्पाइन) गंभीर रूप से चोटिल हो गई। इस चोट से रिकवरी में जितेश को काफी समय लगा। यहां तक कि जितेश को यूरिन पर भी कंट्रोल नहीं था। उन्हें लगातार अंडर ऑब्जर्वेशन रहना पड़ता था। लगातार ट्रीटमेंट चलता रहा। इस घटना ने जितेश और वंदना की मैरीड लाइफ पर भी बहुत बुरा असर डाला।
इसे भी पढ़ें: Khushkhabri With IVF: कई बार आईवीएफ कराने के क्या जोखिम हो सकते हैं? डॉक्टर से जानें
वंदना को हुए हेल्थ इश्यूज
जहां एक ओर जितेश अपनी समस्या से धीरे-धीरे रिकवरी कर रहा था, वहीं वंदना के जीवन में नई चुनौतियां दस्तक रह थीं। दरअसल, वंदना एक पैरामेडिकल डेंटल स्टाफ के रूप में कार्यरत थीं। लेकिन, वह कभी भी अपने बढ़ते वजन को कंट्रोल नहीं कर सकीं। वंदना और जितेश दोनों ही मोटापे का शिकार थे। वंदना को डायबिटीज भी था। इसके अलावा वे अक्सर किसी न किसी तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से जूझती रहती थीं। कुछ समय बाद वंदना को पता चला कि उनके गर्भाशय में मायोमा (फाइब्रॉएड्स) नामक एक सॉफ्ट ट्यूमर भी है। इस बीमारी के कारण यूट्रस के आकार पर नेगेटिव प्रभाव पड़ता है, जिससे वंदना के लिए कंसीव करना काफी चैलेंजिंग हो गया।
मिली डॉक्टर की मदद
वंदना और जितेश पेरेंट्स बनना चाहते थे। लेकिन उनकी शारीरिक समस्याएं उन्हें इसकी अनुमति नहीं दे रहे थे। शादी को कई साल बीत चुके थे। लेकिन, डॉक्टर ने वंदना को सलाह दी थी कि अगर वह मां बनना चाहती हैं,तो उन्हें फाइब्रॉएड रिमूव करवाने होंगे और इसके लिए उन्हें सर्जरी करवानी होगी। वंदना इससे घबराई नहीं। आज से करीब 5-6 साल पहले उनकी लैप्रोस्कोपिक मायोमेक्टॉमी सर्जरी की गई, जिसमें 11 सेंटीमीटर का फाइब्रॉएड निकाला गया था।
इसे भी पढ़ें: Khushkhabri With IVF: आईवीएफ ट्रीटमेंट से पहले महिलाएं जरूर बरतें ये सावधानियां, मिलेगा बेहतर परिणाम
समस्या फिर आई सामने
लैप्रोस्कोपिक मायोमेक्टॉमी के बाद वंदना और जितेश को लगा कि अब शायद सब सही हो जाएगा और वे नेचुरल तरीके से पेरेंट्स बन सकेंगे। लेकिन, कुछ ही समय बाद उन्हें एक नया झटका मिला। जब उन्हें पता चला कि वंदना का फाइब्रॉएड फिर से बढ़ गया, जिस वजह से उन्हें दोबारा सर्जरी करवानी पड़ी। बार-बार सर्जरी और कंसीव न कर पाने के दुख ने वंदना को मानसिक रूप से तोड़ दिया था। वह मान चुकी थी कि अब वह कभी मां नहीं बन सकेगी। लेकिन, जितेश ने उनका साथ नहीं छोड़ा। वंदना की दोबारा सर्जरी हुई। इसके बाद वंदना को पूरी तरह ठीक होने के लिए लगभग तीन महीने का समय लगा।
शुरू हुई आईवीएफ की प्रक्रिया
सर्जरी के बाद वंदना और जितेश को सलाह दी गई कि अगर वे पेरेंट्स बनना चाहते हैं, तो बिना देरी किए तुरंत आईवीएफ प्लान करें। हालांकि, इसके लिए उन्हें सही गाइडेंस की जरूरत थी। फिर उन्हें किसी ने मदरहुड हॉस्पीटल का सुझाव दिया, जहां उन्हें डॉ. रीता मोदी की मदद मिली। डॉक्टर ने प्रक्रिया शुरू की। आईवीएफ प्रोसेस के दौरान वंदना को कई इंजेक्शन और मेडिसिन लेने पड़े। फर्टिलाइजेशन के लिए जब जब वंदना के एग्स निकाले गए, तो पता चला कि तीन एग्स में से सिर्फ एक ही हेल्दी एग है। बाकी दोनों खराब थे। लेकिन, इस बार वंदना की किस्मत उसके साथ थी। खुशकिस्मती से वंदना ने इसी हेल्दी एग की मदद से कंसीव किया। इस दौरान वंदना को विशेष ऑब्जर्वेशन में रखा गया। अंततः प्रेग्नेंसी के 9 महीने की सफल जर्नी के बाद वंदना ने एक स्वस्थ शिशु को जन्म दिया और उनके घर नन्हे बच्चे की किलकारियां गूंजने लगीं।
All Image Credi: Freepik