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10 सालों के बाद मां बनीं मैसूर की उषा, जानें किन परेशानियों के बाद आईवीएफ से मिली सफलता

समय पर माता-पिता न बन पाने वाले कपल्स को कई तरह की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इस लेख में मैसूर के ऐसे ही एक कपल की सच्ची कहानी में बताया गया है कि उन्होंने आईवीएफ की मदद से कैसे पैरेंट्स बनने का सपना पूरा किया। आगे जानते हैं उनकी समस्याओं और समाधान के बारे में।
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10 सालों के बाद मां बनीं मैसूर की उषा, जानें किन परेशानियों के बाद आईवीएफ से मिली सफलता


भारतीय और अन्य देशों की परंपरा में शादी को जीवन का एक अहम पड़ाव माना जाता है। इसके बाद फैमली को आगे बढ़ाने के लिए लोग संतान की कमाना रखते हैं। ज्यादातर कपल्स आसानी से माता-पिता बन जाते हैं। लेकिन, यह सुख हर किसी को आसानी से नहीं मिल पाता है। कुछ कपल्स को प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याओं के कारण गर्भधारण करने में सालों लग जाते हैं। ऐसे में कपल्स को समाज के सोशल प्रेशर से भी गुजरना पड़ता है। कुछ इस तरह की समस्या का सामना मैसूर में रहने वाली उषा (35 वर्षीय- बदला हुआ नाम) और किरण ( 37 वर्षीय, पति) को भी करना पड़ा। उषा और किरण की शादी को करीब 11 साल बीत चुके थे और वह गर्भधारण के लिए हर संभव प्रयास कर चुके थे। लेकिन हर बार उनको असफलता ही हाथ लगती थी। ऐसे में डॉक्टर ने उनको आईवीएफ तकनीक को अपनाने का सुझाव दिया। लेकिन, उसमें भी उनको 6 बार असफलता का ही सामना करना पड़ा। ऐसे में कपल्स बेहद मायूस हो गए। इस दौरान उन्होंने कई डॉक्टर्स को बदला। अंत में डॉक्टर की टीम ने किरण और उषा की समस्या को ध्यान में रखते हुए एक और प्रयास किया इस बार सभी चरण में सफलता मिल और उन्होंने सफलतापूर्वक गर्भधारण किया है। इस लेख में नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी मैसूर के विशेषज्ञ डॉ. प्रकाश सावणूर (Dr. Prakash Savanur, Fertility Specialist at Nova IVF Mysuru) से जानते हैं कि उषा और किरण को गर्भधारण करने में किस तरह की समस्या का सामना करना पड़ रहा था और उनकी टीम ने किस तरह से कपल के माता-पिता बनने का सपना पूरा किया।

उषा को गर्भधारण में क्यों हो रही थी देरी

नोवा आईवीएफ सेंटर, मैसूर के डॉ. प्रकाश ने बताया कि 2024 में उषा और किरण जब उनके सेंटर पर पहुंचे तो वह बेहद मायूस थे। उनकी परेशानी को समझने के लिए सेंटर के अन्य विशेषज्ञों के साथ मिलकर एक टीम बनाई गई। टीम के डॉक्टरों ने उनकी समस्या को दोबारा से जांचा। इस जांच में दो महत्वपूर्ण समस्याएं सामने आईं। जिसमें उषा को पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (PCOS) और क्रोमोसोमल री-अरेंजमेंट पाया गया। यह क्रोमोसोमल असंतुलन अक्सर गर्भपात या भ्रूण के असामान्य विकास का कारण बनता है।

वहीं, दूसरी ओर किरण (पति) को Oligo-astheno-teratozoospermia (OATS) की समस्या थी। इस समस्या स्पर्म की संख्या कम, गति धीमी और संरचना असामान्य होती है। इन समस्याओं के चलते ही पहले किए गए IVF प्रयास भी विफल हो रहे थे।

उषा और किरण का किस तरह किया गया इलाज

इन जटिल समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, डॉ. सावणूर ने एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जिसमें दो अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया गया। इसमें प्रीइम्प्लांटेसन जेनेटिक टेस्टिंग फॉर स्ट्रक्चरल रिअरेंजमेंट्स और अबनोर्मलिटीज (Preimplantation Genetic Testing for Structural Rearrangements/Abnormalities - PGT-SR/A) को अपनाया। यह तकनीक भ्रूण को गर्भ में इम्प्लांट से पहले उसके क्रोमोसोम्स की जांच के लिए उपयोग होती है, ताकि असामान्यताओं को पहले ही पहचाना जा सके।

Ivf in pcos in

इसके अलावा डॉक्टरों की टीम ने फिजियोलॉजिकल इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन (Physiological Intracytoplasmic Sperm Injection - PICSI) तकनीक का सहारा लिया गया। इस तकनीक द्वारा पुरुष के सबसे स्वस्थ स्पर्म को फर्टिलाइजेशन के लिए चुना जाता है, जिससे फर्टिलाइजेशन की सफलता की संभावना बढ़ जाती है।

PICSI तकनीक के जरिए एग्स और स्पर्म के फर्टिलाइजेशन के बाद कई भ्रूण विकसित हुए। इन भ्रूणों का PGT-SR/A टेस्ट किया गया, जिसमें एक सूक्ष्म बायोप्सी लेकर क्रोमोसोमल असामान्यताओं की जांच की जाती है। इन सभी भ्रूणों में से केवल एक भ्रूण ही क्रोमोसोमल रूप से सामान्य पाया गया। उसी एकमात्र स्वस्थ भ्रूण को उषा के गर्भ में ट्रांसफर किया गया।

कुछ सप्ताह की कड़ी निगरानी के बाद उषा का यह प्रयास सफल रहा। प्रेग्नेंसी के दौरान उषा की नियमित जांच की गई और नौ माह के बाद उषा और किरण के घर एक स्वस्थ बच्चे ने जन्म लिया।

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मैसूर के यह कपल प्रेग्नेंसी के लिए परेशान देश के लाखों कपल्स के लिए मिसाल बन गया है। कई सालों के सामान्य प्रयास और आईवीएफ के आधा दर्जन असफल प्रयासों के बाद भी उषा और किरण ने हिम्मत नहीं हारी और मेडिकल साइंस की इस तकनीक पर भरोसा रखा। नोवा आईवीएफ के डॉक्टर प्रकाश बताते हैं कि यदि किसी भी कपल्स को गर्भधारण करने में परेशानी आ रही तो उनको धैर्य बनाए रखना चाहिए.। कई बार स्ट्रेस और मानसिक असंतुलन का प्रभाव भी आईवीएफ के प्रयास को असफल बनने का कारक बन सकता है। ऐसे में आप लाइफस्टाइल और डाइट पर भी पूरा फोकस करें।

FAQ

  • क्या IVF हर किसी के लिए सफल होता है?

    नहीं, IVF की सफलता कई कारकों पर निर्भर करती है जैसे उम्र, एग्स और शुक्राणु की गुणवत्ता, हार्मोनल संतुलन आदि। लेकिन उन्नत तकनीकों से सफलता की संभावना बढ़ाई जा सकती है।
  • PCOS कितने दिन में ठीक होता है?

    पीसीओएस की समस्या हार्मोनल बदलाव की वजह से होती है। इस समस्या में हर महिला के शरीर अलग-अलग तरह से कार्य करता है। ऐसे में पीसीओएस को ठीक होने में अलग-अलग समय लग सकता है।
  • एक महिला कितनी बार आईवीएफ करवा सकती है?

    एक महिला यदि मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ तो वह आईवीएफ की कई साइकिल से गुजर सकती है। लेकिन, सामान्यतः डॉक्टर महिला की उम्र, मौजूदा स्वास्थ्य स्थिति और प्रजनन स्वास्थ्य समस्याओं को गौर करते हुए कई बार 3 से 6 बार तक की सलाह दे सकते हैं।

 

 

 

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