
एक अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि गंभीर ह्रदय रोगों के उपचार में स्टेंट लगाना और बाईपास सर्जरी उतनी कारगर नहीं है, जितनी की दवाओं का प्रयोग और जीवनशैली में बदलाव है। अध्ययन में ज्यादातर प्रतिभागी भारत के थे और स्टेंट व बाईपास का कुछ ज्यादा प्रभाव नहीं पाया गया है। अध्ययन में विश्वभर की 320 जगह, जिसमें से 19 सरकारी और निजी भारतीय अस्पताल शामिल थे। अध्ययन में पाया गया कि केवल दवाओं के जरिए उपचार प्राप्त कर रहे लोगों की तुलना में स्टेंट और बाईपास सर्जरी कराने से मरीजों में हार्ट अटैक या ह्रदय रोगों से मरने वाले लोगों की संख्या में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आई।
अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि स्टेंट या फिर बाईपास सर्जरी जैसी आक्रमक प्रक्रियाएं जब चिकित्सा पद्धति और जीवनशैली में शामिल की जाती है तो ये बड़े और गंभीर मामलों को कम करने में विफल साबित होती हैं। शोधकर्ताओं ने अमेरिकन हार्ट एसोशिएशन की साइंटीफिक मीटिंग में अपने निष्कर्षों को प्रस्तुत किया।
कार्डियोलॉजिस्टों ने आगाह किया कि ये निष्कर्ष केवल उन्हीं लोगों पर लागू होते हैं, जो लंबे समय से इस बीमारी से पीड़ित हैं। इन लोगों को शारीरिक परिश्रम या तनाव के बाद छाती में दर्द और हल्की-हल्की जकड़न महसूस होती है। उन्होंने यह भी कहा कि ये परिणाम उन हार्ट अटैक रोगियों पर लागू नहीं होते हैं, जिन्हें आराम करते वक्त या थोड़ी थकान होने पर दिक्कत महसूस होती है और दवाओं से राहत नहीं मिलती है। इन रोगियों के लिए स्टेंट या बाईपास एक जीवन रक्षक प्रक्रिया हो सकती है।
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भारत में अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता और एक सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट बलराम भार्गव ने कहा, ''ये निष्कर्ष भारत और अन्य देशों के लिए एक बड़ी जटिलता है।'' उन्होंने अनुमान लगाया कि लंबे वक्त से एंजाइना (हृदय में रक्त के बहाव में कमी आने से होने वाला सीने का दर्द) से पीड़ित मरीजों को वर्तमान में स्टेंट और बाईपास सर्जरी की सलाह दी जाती है।
कार्डियोलॉजी सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा जुटाए गए आंकड़ों से पता चला कि 2017 के दौरान भारत में स्टेंट लगवाने वाले 387,416 मरीजों में से 74,926 (19.3 फीसदी) को लंबे वक्त से एंजाइना था।
निष्कर्ष में यह सुझाव दिया गया कि स्टेंट और बाईपास सर्जरी के समान सुरक्षा का स्तर हासिल करने के लिए ह्रदय रोगी एस्पिरिन, एंटी-लिपिड स्टैटिन और एंटी ब्लड प्रेशर की दवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं।
भार्गव ने कहा, ''अध्ययन में भारत की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण थी क्योंकि करीब 20 फीसदी मरीजों के स्वास्थ्य की जांच की गई।'' उन्होंने कहा, ''हमने पिछले 10 से 15 वर्षों में चिकित्सा पद्धति में कई बड़े बदलाव देखे हैं। संदेश बिल्कुल साफ है, वे मरीज जिन्हें एंजाइना है, उन्हें स्टेंट और बाईपास सर्जरी कराने से बचना चाहिए।''
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नई दिल्ली ऑल इंडिया इंस्टीटयूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट और प्रोफेसर अंबुज रॉय का कहना है कि ये नतीजे इतने चौंकाने वाले नहीं हैं क्योंकि बहुत से अध्ययन पहले ही दवाओं के जरिए ह्रदय रोगों को उपचार को फायदेमंद बता चुके हैं। बता दें कि अध्ययन के लिए नई दिल्ली भी शोधकर्ताओं का एक केंद्र रहा था।
रॉय ने कहा, ''आपातकाली स्थिति में फिर चाहे मरीज को एंजाइना हो या हार्ट अटैक स्टेंट लगाना एक जीवन बचाने की प्रक्रिया होती है।''
अध्ययन के मुताबिक, जिन 2,588 रोगियों ने स्टेंट लगवाया था या फिर बाईपास सर्जरी कराई थी उनमें से 11.7 प्रतिशत को दिल का दौरे या फिर हृदय रोगों के कारण मौत का सामना करना पड़ा। जबकि केवल दवाओं और जीवनशैली में बदलाव के साथ इलाज कराने वाले लोगों में यह प्रतिशत 13.9 रहा। इसलिए स्टेंट या फिर बाईपास की तुलना में दवाओं को बेहतर बताने के लिए आंकड़ें सार्थक नहीं हैं।
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