
यूनिसेफ के मुताबिक, बच्चों में कम वजन, मोटापा और एनीमिया से निपटने के लिए उन्हें पोषक तत्वों से युक्त आहार देना सही रहता है। पोहा, उत्तपम और पनीर काठी रोल आदि पौष्टिकता के बेहतर विकल्प हैं
यूनिसेफ (Unicef) ने बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए 'उत्तपम से लेकर अंकुरित दाल के पराठे' के नाम से एक बुक लांच की है। इस बुक में बताया गया है कि 20 रुपए से कम कीमत में बनने वाले पौष्टिक आहार से बच्चों में एनीमिया, कम वजन और मोटापा आदि समस्याओं से किस प्रकार से सामना किया जा सकता है।
यह पुस्तक समग्र राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण 2016-18 (Comprehensive National Nutrition Survey 2016-18) के निष्कर्षों पर आधारित है, जिसमें पाया गया कि पांच साल से कम उम्र के 35 फीसदी बच्चे कमजोर हैं, 17 फीसदी बच्चे मोटापा से ग्रसित हैं और 33 फीसदी कम वजन के हैं।
सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि 40 प्रतिशत किशोर लड़कियां और 18 प्रतिशत किशोर लड़के एनीमिया से प्रभावित हैं। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि स्कूली बच्चों और किशोरों में में अधिक वजन और मोटापा बढ़ने से मधुमेह (10 प्रतिशत) जैसे गैर-संचारी रोगों का खतरा बढ़ गया है।
28 पन्नों वाले इस बुक में ताजे तैयार किए गए खाद्य पदार्थों के व्यंजनों को सूचीबद्ध करता है, उनमें से प्रत्येक की तैयारी की लागत भी दी गई है।
इस बुक में बच्चों के कम वजन से निपटने के लिए आलू भरवां पराठा, पनीर काठी रोल और साबूदाना कटलेट जैसे व्यंजनों को सूचीबद्ध किया गया है, जबकि मोटापा दूर करने के लिए अंकुरित दाल परांठा, पोहा और वेज उपमा के सुझाव हैं।
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कैलोरी काउंट के अलावा, पुस्तक में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, कुल फाइबर, लोहा, विटामिन सी और कैल्शियम की विस्तृत जानकारी दी गई है। यूनिसेफ की प्रमुख हेनरीटा एच फोर ने कहा कि पुस्तिका का उद्देश्य लोगों को यह बताना है कि कौन सा पदार्थ कितना पौष्टिक है।
हेनरीटा ने कहा कि किसी व्यक्ति के जीवन में दो चरण होते हैं जब पोषण बेहद महत्वपूर्ण होता है। "सबसे पहले एक बच्चे के पहले 1000 दिनों में होता है और उसके लिए हमें युवा माताओं तक पहुंचने की आवश्यकता होती है और दूसरा यह है कि जब आप किशोरावस्था में होते हैं और उसके लिए हमें स्कूलों में जाने की आवश्यकता होती है,"
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उन्होंने कहा कि इन प्रकार के ब्रोशर को लांच करने का उद्देश्य यह याद दिलाना है कि बच्चे के लिए तैयार लंच में क्या होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि इस ब्रोशर को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए और यदि क्षेत्रीय भाषाओं में इसका अनुवाद किया जाए तो इसे लोगों तक पहुंचाना आसान हो जाएगा।
सोर्स-भाषा
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