Precautions After Stroke: स्ट्रोक में मरीज के दिमाग में खून की सप्लाई में बाधा आने से ब्रेन के सेल्स क्षतिग्रस्त होने लगते हैं। इससे मरीज को बोलने, चलने-फिरने, देखने या सोचने की क्षमता कम होने लगती (symptoms of stroke) है। अगर मरीज को समय पर इलाज न मिले, तो कई बार ये स्ट्रोक मरीज के लिए जानलेवा भी हो सकते हैं। अगर आंकड़ों की बात करें, तो WHO की रिपोर्ट के अनुसार, स्ट्रोक साल 2021 में तीसरे स्थान पर था, जो दुनियाभर में कुल मौत के लगभग 10 फीसदी के लिए जिम्मेदार है। इन्हीं आंकड़ों से पता चलता है कि ब्रेन स्ट्रोक या स्ट्रोक कितना खतरनाक हो सकता है। जिन लोगों को समय पर इलाज या देखभाल नहीं मिलती, उन्हें कई तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियों से झेलना पड़ता है। हालांकि, अच्छी बात यह है कि स्ट्रोक के इलाज के बाद अगर मरीज को सही दवाइयां, फिजियोथेरेपी के साथ लाइफस्टाइल में बदलाव किए जाए, तो न सिर्फ मरीज की रिकवरी बेहतर तरीके से होती है, बल्कि दोबारा स्ट्रोक आने का रिस्क भी काफी हद तक कम हो जाता है। स्ट्रोक के बाद मरीज रिकवरी के लिए देखभाल कैसे करें, इस बारे में हमने दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स के कार्डियोथोरेसिक और कार्डियोवास्कुलर सर्जरी विभाग के कंसल्टेंट डॉ. वरुण बंसल (Dr Varun Bansal, Consultant, Cardiothoracic and Cardiovascular Surgery, Robotic Surgery, Indraprastha Apollo Hospitals) से बात की।
स्ट्रोक में सावधानी क्यों जरूरी है?
डॉ. वरुण कहते हैं, “मेडिकल फील्ड में स्ट्रोक को बहुत गंभीर स्थिति माना जाता है, क्योंकि इसमें मरीज के दिमाग में खून पहुंचना मुश्किल हो जाता है, तो ब्रेन के सेल्स को बहुत नुकसान पहुंचता है। ब्रेन सेल्स का नुकसान शरीर पर दिखता है। कई बार इसका असर मरीज की आंखों पर पड़ता है, तो कई मरीजों के शरीर के कई हिस्से काम करना बंद कर देते हैं। स्ट्रोक से उबरने के लिए मरीज को कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए क्योंकि रिकवरी सिर्फ दवाइयों से नहीं होती, बल्कि फिजियोथेरेपी, लाइफस्टाइल में बदलाव और फॉलो-अप पर भी काफी निर्भर करती है।”
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स्ट्रोक के बाद मरीज के ध्यान रखने की बातें
स्ट्रोक के बाद दवाइयों की जरूरत
डॉ. वरुण कहते हैं कि स्ट्रोक के बाद मरीज को ब्लड प्रेशर, शुगर और कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करने वाली दवाइयां रेगुलर और समय पर लेनी चाहिए। अगर दवाइयां मिस होती है, तो स्ट्रोक का रिस्क बढ़ सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मरीज को दवाइयां बिना डॉक्टर की सलाह के कभी भी बंद या बदलनी नहीं चाहिए।
फिजियोथेरेपी
डॉ. वरुण ने कहा कि स्ट्रोक के बाद मरीज का शरीर काफी कमजोर हो जाता है और काम करना भी लगभग बंद कर देता है। ऐसी स्थिति में शरीर को एक्टिव करने के लिए फिजियोथेरेपी बहुत मददगार साबित होती है। इसमें कुछ कसरत कराई जाती है, जैसे कि हाथ-पैर हिलाना, बैठकर खड़े होना और छोटी दूरी पर चलना शुरुआती स्टेप हो सकते हैं।
स्ट्रोक की रिकवरी में डॉक्टर से फॉलो-अप
डॉ. वरुण कहते हैं कि जब मरीज थोड़ा बेहतर होने लगता है, तब वह डॉक्टर से फॉलो-अप बंद कर देते हैं और इससे दवाइयों का रूटीन बदल जाता है। स्ट्रोक के बाद रेगुलर डॉक्टर से मिलना और सलाह लेना जरूरी है ताकि मरीज की प्रोग्रेस को देखा जा सके।
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स्ट्रोक के बाद डाइट
डॉ. वरुण ने कहा कि स्ट्रोक के बाद मरीज की डाइट पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है। मरीज को लो-सॉल्ट डाइट देनी चाहिए ताकि ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहे। इसके साथ लो-शुगर और लो-फैट डाइट हार्ट और ब्रेन दोनों के लिए फायदेमंद है। खाने में हरी सब्जियां, फल, साबुत अनाज, ओमेगा-3 फैटी एसिड वाले फूड्स जैसेकि अखरोट और मछली को शामिल किया जा सकता है। मरीज को सोडा, जंक फूड या तेल वाला खाना बिल्कुल न दें।
स्ट्रोक रिकवरी में लाइफस्टाइल बदलाव
डॉ. वरुण ने स्ट्रोक रिकवरी के दौरान मरीज को लाइफस्टाइल में ये बदलाव करने की सलाह दी है।
- मरीज को स्मोकिंग बिल्कुल छोड़ देनी चाहिए।
- शराब पीना भी बिल्कुल बंद कर देना चाहिए क्योंकि इसेस ब्लड प्रेशर और हार्ट को नुकसान पहुंचता है।
- रोजाना कम से कम 20 से 30 मिनट एक्सरसाइज करना जरूरी है। अगर मरीज चाहे तो सुबह शाम टहल सकते हैं। इससे ब्लड सर्कुलेशन बेहतर रहता है।
- मरीज के स्ट्रेस को कम करने के लिए मेडिटेशन भी करा सकते हैं।
फैमिली का सपोर्ट
डॉ. वरुण कहते हैं कि स्ट्रोक के बाद कई मरीज डिप्रेशन और एंग्जायटी महसूस करते हैं। ऐसे समय में परिवार और दोस्तों का सपोर्ट रिकवरी में काफी मदद करता है। अगर हो सके तो मरीज को किसी कम्युनिटी में शामिल करने के लिए सपोर्ट करें। इससे मरीज दूसरों से मिलकर अकेलापन या डिप्रेशन फील नहीं करेगा।
स्ट्रोक दोबारा होने के लक्षण
डॉ. वरुण कहते हैं कि स्ट्रोक की रिकवरी के दौरान मरीज और परिवार को इन लक्षणों पर खास ध्यान देना चाहिए ताकि समय पर मरीज का इलाज हो सके।
- अचानक शरीर के किसी हिस्से में कमजोरी या सुन्नपन
- बोलने में परेशानी होना
- धुंधला दिखाई देना
- चक्कर आना या संतुलन बिगड़ना
निष्कर्ष
डॉ. वरुण कहते हैं कि स्ट्रोक की रिकवरी बुहत लंबी होती है, जिसमें दवाई, फिजियोथेरेपी और लाइफस्टाइल बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए मरीज को डॉक्टर की सलाह माननी चाहिए और रेगुलर चेकअप पर ध्यान देना चाहिए। इसी से स्ट्रोक के मरीज का जीवन बेहतर हो सकता है।