आजकल दिनभर ऑफिस, घर के कामकाज या बिजनेस की भागदौड़ में लोग इतना बिजी रहते हैं कि मोबाइल देखने का समय उन्हें ज्यादातर रात को ही मिलता है। खासतौर पर महिलाएं, जो दिनभर घर या ऑफिस की जिम्मेदारियों में लगी रहती हैं, अक्सर रात को सोने से पहले सोशल मीडिया ब्राउज करना, वेब सीरीज देखना या मैसेज का जवाब देना पसंद करती हैं। यह आदत आम होती जा रही है, लेकिन इसका असर महिलाओं के स्वास्थ्य पर गहराई से पड़ सकता है। देर रात तक मोबाइल स्क्रीन में समय बिताने की आदत, खासकर अंधेरे में, महिलाओं के हार्मोनल बैलेंस को बिगाड़ सकती है।
मोबाइल स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट शरीर के नेचुरल नींद लाने वाले हार्मोन मेलाटोनिन के प्रोडक्शन को कम कर देती है। जब मेलाटोनिन का लेवल गिरता है, तो नींद की क्वालिटी खराब होती है, जिससे शरीर के अन्य हार्मोन जैसे एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और थायराइड हार्मोन पर भी प्रभाव पड़ता है। इस लेख में मेट्रो हॉस्पिटल, नोएडा की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और साइकोथेरेपिस्ट कंसल्टेंट डॉ. मनीषा सिंघल (Dr. Manisha Singhal, Consultant - Clinical Psychologist & Psychotherapist, Metro Hospital, Noida) से जानिए, देर रात तक फोन इस्तेमाल करने से महिलाओं के हार्मोन्स पर क्या असर होता है।
देर रात तक फोन इस्तेमाल करने से महिलाओं के हार्मोन्स पर क्या असर होता है? - Impact of Using Mobile Till Late Night on Female Hormones
1. ब्लू लाइट का मेलाटोनिन पर असर
मोबाइल स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट सीधे मेलाटोनिन हार्मोन को प्रभावित करती है। मेलाटोनिन नींद लाने वाला हार्मोन होता है जो शरीर की सर्केडियन रिद्म को कंट्रोल करता है। जब कोई महिला देर रात तक मोबाइल देखती है, तो मेलाटोनिन का प्रोडक्शन घट (raat ko jyada mobile dekhne se kya hota hai) जाता है, जिससे नींद की क्वालिटी खराब होती है। खराब नींद का सीधा असर महिला हार्मोन जैसे एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन पर पड़ता है, जो फर्टिलिटी के लिए बेहद जरूरी हैं।
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2. अनियमित पीरियड्स
देर रात तक मोबाइल का उपयोग हार्मोनल गड़बड़ी का कारण बन सकता है, जिससे पीरियड्स अनियमित हो सकते हैं। कई रिसर्च में यह साबित हुआ है कि जो महिलाएं नियमित रूप से 7-8 घंटे की नींद नहीं लेतीं, उनमें PCOS (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) और PCOD जैसी समस्याएं ज्यादा पाई जाती हैं। PCOS एक हार्मोनल समस्या है जो ओवुलेशन को प्रभावित करता है और फर्टिलिटी में कमी ला सकता है।
3. कॉर्टिसोल का बढ़ना
जब कोई महिला देर रात तक मोबाइल पर सोशल मीडिया ब्राउज करती है या ज्यादा जानकारी लेती है, तो दिमाग लगातार एक्टिव मोड में रहता है। इससे शरीर में तनाव हार्मोन कॉर्टिसोल का लेवल बढ़ जाता है। हाई कॉर्टिसोल लेवल न केवल नींद को प्रभावित करता है, बल्कि एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हार्मोन के संतुलन को भी बिगाड़ता है। महिलाओं में यह हार्मोनल असंतुलन थकावट, मूड स्विंग्स और पीरियड्स से पहले चिड़चिड़ापन का कारण बन सकता है।
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4. फर्टिलिटी पर प्रभाव
देर रात तक मोबाइल का उपयोग महिलाओं की फर्टिलिटी पर भी असर डालता है। नींद की कमी और हार्मोनल असंतुलन ओवुलेशन को प्रभावित कर सकता है, जिससे कंसीव करने की संभावना कम हो जाती है। साथ ही, मेलाटोनिन की कमी से अंडाणुओं की क्वालिटी पर भी असर पड़ता है।
5. स्किन पर असर
हार्मोनल असंतुलन केवल आंतरिक स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि स्किन पर भी प्रभाव डालता है। महिलाओं में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के असंतुलन के कारण मुंहासे, चेहरे पर बाल, ड्राई स्किन, बाल झड़ना जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं। देर रात तक मोबाइल इस्तेमाल करने से नींद की क्वालिटी में गिरावट (jyada raat tak mobile dekhne se kya hota hai) आती है, जिससे स्किन की रिपेयरिंग प्रोसेस बाधित होती है और उम्र बढ़ने के लक्षण जल्दी दिखने लगते हैं।
बचाव के लिए क्या करें? - What's the best way to protect yourself
महिलाओं को अपनी हार्मोनल सेहत को बेहतर बनाए रखने के लिए कुछ सरल उपाय अपनाने चाहिए। सबसे पहले, रात को सोने से कम से कम एक से 2 घंटे पहले मोबाइल का उपयोग बंद कर देना चाहिए। ब्लू लाइट फिल्टर का प्रयोग करें और यदि संभव हो तो नाइट मोड का उपयोग करें। सोने से पहले मेडिटेशन, किताब पढ़ना या म्यूजिक सुनना बेहतर विकल्प हो सकते हैं। इसके अलावा, 7-8 घंटे की नींद, बैलेंस डाइट और नियमित एक्सरसाइज भी हार्मोन संतुलन को बनाए रखने में मदद करते हैं।
निष्कर्ष
मोबाइल हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा जरूर है, लेकिन इसकी लत सेहत के लिए खतरा बन सकती है, खासकर महिलाओं के लिए। देर रात तक स्क्रीन देखने की आदत धीरे-धीरे शरीर के हार्मोनल सिस्टम को प्रभावित करती है, जिससे पीरियड्स, स्किन, फर्टिलिटी और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
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