हमारे शरीर में दो फेफड़े सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया में मदद करते हैं। जब फेफड़ों में कोशिकाएं अनियंत्रित तरीके से बढ़ने लग जाएं, तो कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। अगर आंकड़ों की बात करें, तो GLOBOCAN 2020 की रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 में लंग कैंसर से करीब 18 लाख लोगों की मृत्यु हुई थी। कैंसर से होने वाली सभी मृत्यु में फेफड़ों का कैंसर सबसे प्रमुख कारण था। इसलिए फेफड़ों के कैंसर (Lung Cancer) से जुड़े मिथों की सच्चाई जानना बहुत जरूरी है।
World Lung Cancer Day के मौके पर मिथकों की सच्चाई जानने के लिए बेंगलुरु के फोर्टीस अस्पताल के मेडिकल ऑन्कोलॉजीऔर हेमटो-ऑन्कोलॉजी विभाग की सीनियर डॉयरेक्टर डॉ. नीति कृष्णा रायजादा से बातचीत की और उन्होंने लंग कैंसर से जुड़े 6 मिथकों के बारे में विस्तार से बताया।
फेफड़ों के कैंसर से जुड़े 6 मिथ और उनकी सच्चाई
मिथ: सिर्फ धूम्रपान करने वालों को ही फेफड़ों का कैंसर होता है।
सच्चाई: हालांकि स्मोकिंग फेफड़ों के कैंसर का मुख्य कारण है लेकिन कैंसर का सिर्फ यही कारण नहीं होता। करीब 10 से 20 फीसदी लोग जिन्हें लंग कैंसर है, उन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया है। इसके अन्य कारण जैसेकि राडोन गैस के संपर्क में रहना, एस्बेस्टस खनिज में काम करना, वायु प्रदूषण और जेनेटिक कारण भी हो सकते हैं। जो नॉन स्मोकर्स धूम्रपान करने वाले लोगों के बीच रहते हैं, उन्हें भी फेफड़ों के कैंसर का रिस्क हो सकता है।
मिथ: फेफड़ों का कैंसर हमेशा जानलेवा होता है।
सच्चाई: इसमें कोई दो राय लंग कैंसर का मृत्यु दर ज्यादा है, लेकिन ये भी याद रखना चाहिए कि फेफड़ों का कैंसर हमेशा जानलेवा नहीं होता। अगर इसका जल्दी पता चल जाए, तो एडवांस तकनीकों के माध्यम से जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है। अगर लंग कैंसर का शुरूआती दौर में ही पता चल जाए तो रोगी के 5 साल तक जीवित रहने की दर 56 फीसदी तक हो सकती है। आजकल तो इलाज की नई तकनीकों जैसेकि टारगेट थेरेपी या इम्यूनोथेरेपी के द्वारा रोगी में सुधार किया जा सकता है।
मिथ: सिर्फ व्यस्कों को ही लंग कैंसर होता है।
सच्चाई: वैसे तो लंग कैंसर आमतौर पर वृद्ध व्यस्कों में ही पाया गया है, लेकिन ये भी याद रखना चाहिए कि ये सभी उम्र के लोगों को हो सकता है। दिलचस्प बात ये कि 30 से 40 साल की उम्र के युवाओं में जेनेटिक म्युटेशन और पर्यावरणीय कारकों की वजह से फेफड़ों के कैंसर के मामले देखने को मिल रहे हैं। इसलिए हर उम्र के लोगों को अपनी सेहत का ध्यान रखना चाहिए।
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मिथ: लंग कैंसर के लक्षणों की आसानी से पहचान हो जाती है।
सच्चाई: दरअसल लंग कैंसर के लक्षणों को अन्य बीमारियों के लक्षण समझकर इलाज कर दिया जाता है। लगातार खांसी, सांस लेने में तकलीफ, छाती में दर्द और थकान को आमतौर पर सीरियस नहीं लिया जाता और इसी वजह से लंग कैंसर की स्थिति गंभीर हो जाती है। कई बार लोगों को तब तक कैंसर का पता नहीं चलता, जब तक फेफड़ों का कैंसर एडवांस स्टेज तक नहीं पहुंच जाता। इसलिए सभी को नियमित रुप से स्क्रीनिंग कराते रहना चाहिए और खासतौर से जो लोग हाई रिस्क में आते हैं, उन्हें तो स्क्रीनिंग समय-समय पर कराते रहना चाहिए ताकि समय रहते बीमारी का पता चल जाए।
मिथ: लंग कैंसर सिर्फ फेफड़ों को ही प्रभावित करता है।
सच्चाई: लंग कैंसर फेफड़ों के अलावा दिमाग, हड्डियों, लिवर और एड्रनेल ग्लेंड्स में भी फैल सकता है। इस प्रक्रिया को मेटास्टेसिस कहते हैं। कैंसर के फैलने से कई लक्षण देखने को मिलते हैं, जो इलाज को जटिल कर देते हैं। इसलिए प्राइमरी ट्यूमर और मेटास्टेसिस की सही तरीके से देखभाल करके ही फेफड़ों के कैंसर को मैनेज किया जा सकता है।
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मिथ: लंग कैंसर रोगियों के बचने की कोई उम्मीद नहीं होती।
सच्चाई: फेफड़ों के कैंसर रोगियों को हमेशा उम्मीद बनाकर रखनी चाहिए। आजकल एडवांस मेडिकल रिसर्च और इलाज की तकनीकों ने रोगियों की न सिर्फ जिंदगी में सुधार किया है बल्कि उनका जीने की दर को भी बढ़ाया है। कैंसर के जेनेटिक प्रोफाइल पर आधारित पर्सनालाइजिड (Personalized) दवाइयों ने काफी अच्छे रिजल्ट दिए हैं। इसके अलावा रोगी की इमोशनल और फिजिकल देखभाल करना भी इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
तो लंग कैंसर से जुड़े हर तरह के मिथ को दूर करना बहुत जरूरी है ताकि लोग जागरुक हो। ये समझना कि फेफड़ों का कैंसर सिर्फ धूम्रपान करने वालों या वृद्ध व्यस्कों को ही होगा, इसलिए समय पर जांच न कराना लंग कैंसर के रिस्क को बढ़ा देता है। इसलिए World Lung Cancer Day के मौके पर फेफड़ों से जुड़े हर पहलू की सही जानकारी लें और समय पर इलाज कराने पर जोर दें।
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