treatment options other than chemotherapy: भारत में कैंसर के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। एन आई एच (NIH) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में नौ लोगों में से एक को अपने जीवन में कैंसर की संभावना रहती है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में साल 2022 में कैंसर के करीब 14 लाख 61 हजार से ज्यादा केस मिले थे। ऐसी स्थिति में कैंसर के इलाज पर जोर दिया जाना बहुत महत्वपूर्ण है। इलाज की बात की जाए, तो कैंसर का पता चलने पर डॉक्टर कीमोथेरेपी के साथ सर्जरी या अन्य इलाज की तकनीके अपनाते हैं। कीमोथेरेपी में कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करने या उसे शरीर के दूसरे अंगों में फैलने से रोका जाता है। इसके बाद डॉक्टर सर्जरी के माध्यम से ट्यूमर को शरीर से बाहर निकाल देते हैं।
इस इलाज की प्रक्रिया में समस्या तब आती है, जब रोगी पर कीमोथेरेपी काम नहीं करती। ऐसे में डॉक्टर रोगी को इलाज की अन्य तकनीके इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। तो इस लेख में बात करते हैं, अगर कीमोथेरेपी काम नहीं करती, तो कौन सी तकनीके रोगी के लिए बेहतर रहती है। इस बारे में गुरूग्राम के फोर्टीस अस्पताल के सीनियर कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. राहुल भार्गव से बातचीत की।
कीमोथेरेपी काम न करने के लक्षण
कीमोथेरेपी में खून के माध्यम से दवाएं शरीर में पहुंचाई जाती है। ये दवाएं कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में मदद करती है। कीमोथेरेपी करने के बाद डॉक्टर ब्लड टेस्ट, एक्सरे और अन्य तकनीकों के माध्यम से ट्यूमर चेक करते हैं कि ये कितना कम या ज्यादा हुआ है। अगर कीमोथेरेपी काम नहीं करती, तो रोगी में ये लक्षण दिखते हैं -
- ट्यूमर में लगातार बढ़ोतरी होती है।
- ट्यूमर शरीर के अन्य भागों में फैलने लगता है।
- रोगी को कैंसर से जुड़े लक्षण महसूस होने लगते हैं।
कीमोथेरेपी के अलावा तकनीके
रेडियोथेरेपी
कीमोथेरेपी के काम न करने पर डॉक्टर रेडियोथेरेपी का विकल्प भी देते हैं। इस थेरेपी में कैंसर के ट्यूमर के साइज को छोटा करने की कोशिश की जाती है और फिर सर्जरी द्वारा निकाला जाता है। रेडियोथेरेपी दो तरह की होती है। एक थेरेपी में शरीर के कैंसर वाले भाग को ही टारगेट किया जाता है। दूसरी तरह की थेरेपी में ट्यूमर के बिल्कुल पास रेडिएशन दी जाती है, जिससे शरीर का बहुत छोटा हिस्सा प्रभावित होता है।
इस थेरेपी में रोगी का दर्द कम होता है और उसके बाल न के बराबर झड़ते हैं। ट्यूमर के आसपास के अंग कम क्षतिग्रस्त होते हैं। जहां एक तरफ फायदे हैं, तो नुकसान ये हैं कि जिस हिस्से में रेडियेशन थेरेपी दी जाती है, वहां की त्वचा में सूजन आ जाती है। ये तकनीक महंगी है और मरीज को दो महीने के लिए कम से कम पांच दिन के लिए आना पड़ता है।
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इम्यूनोथेरेपी
अगर रोगी पर कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी काम नहीं करती, तो इम्यूनोथेरेपी के जरिए कैंसर का इलाज करने की कोशिश की जाती है। जैसा कि नाम से जाहिर है, इसमें इम्यून सिस्टम ही कैंसर की कोशिकाओं पर अटैक करता है।
इस थेरेपी में इंजेक्शन या सलाइन के जरिए ऐसी दवाइयां दी जाती है, जो इम्यून सिस्टम की टी कोशिकाओं को एक्टिव करती है, जिससे इम्यून सिस्टम कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है। अगर ये थेरेपी मरीज पर काम कर जाती है, तो कई प्रकार के कैंसर का इलाज संभव है और सफलता की दर भी बढ़ जाती है।
इस थेरेपी का नुकसान ये है कि कई बार मरीज के लिवर, किडनी जैसे महत्वपूर्ण अंगों पर प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा रोगी को बुखार, थकान और भूख न लगने जैसी परेशानियों से जूझना पड़ता है।
टार्गेटेड थेरेपी
इस थेरेपी के माध्यम से रोगी की सिर्फ कैंसर की कोशिकाओं को ही टारगेट करके खत्म किया जाता है। इस थेरेपी में सिर्फ कैंसर की कोशिकाओं का पता लगाकर उसके प्रोटीन को टारगेट किया जाता है। इस थेरेपी में सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि स्वस्थ कोशिकाएं नष्ट होने से बच जाती है। इस थेरेपी से कई प्रकार के कैंसर का इलाज हो सकता है। इस थेरेपी में मरीज को कई बार त्वचा से जुड़ी समस्याएं हो सकती है। कई रोगियों को हाई ब्लड प्रेशन और लिवर से जुड़ी दिक्कते भी देखने को मिल सकती है।
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डॉक्टर से लें सलाह
अगर कैंसर शुरूआती स्टेज पर होता है, तो इलाज के कई विकल्प खुले होते हैं, इसलिए कैंसर को पूरी तरह से मात देने के लिए समय पर सही डॉक्टर से सलाह लेना बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसके साथ-साथ रोगी को ये भी ध्यान रखना चाहिए कि हर कैंसर के इलाज का समय और रिकवरी अलग-अलग हो सकती है। इसलिए धीरज के साथ डॉक्टर से मिलकर कैंसर से जुड़ी सभी तरह की थेरेपियों व इलाज के बारे में जानें और पॉजिटिव एट्यीयूड के साथ इलाज कराएं।
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