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क्या ज्यादा स्क्रीन टाइम से किशोर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं? डॉक्टर से जानें

आज के युग में स्मार्टफोन, टैबलेट और टीवी स्क्रीन हमारे जीवन का एक हिस्सा बन चुके हैं, खासकर किशोरों (teenagers) में स्क्रीन उपयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। यहां जानिए, क्या ज्यादा स्क्रीन टाइम से किशोर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं?
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क्या ज्यादा स्क्रीन टाइम से किशोर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं? डॉक्टर से जानें


आज की यंग जनेरेशन के पास जानकारी और एंटरटेनमेंट के अनगिनत साधन हैं , सब कुछ उनकी हथेली में मौजूद एक छोटी-सी स्क्रीन में मिल जाता है। सुबह उठते ही सबसे पहले मोबाइल नोटिफिकेशन देखना, स्कूल या कोचिंग के बीच में सोशल मीडिया स्क्रॉल करना और रात में सोने से पहले वीडियो या गेम्स खेलना, ये अब एक आम दिनचर्या बन चुकी है। डिजिटल दुनिया ने जहां युवाओं को जानकारी और अवसरों से जोड़ा है, वहीं यह उनकी मानसिक शांति को धीरे-धीरे निगल भी रही है। कई माता-पिता आज यह शिकायत करते दिखते हैं कि बच्चे अब पहले जैसे खुलकर बात नहीं करते, बाहर खेलना छोड़ चुके हैं और ज्यादातर समय फोन या लैपटॉप में डूबे रहते हैं, लेकिन सवाल सिर्फ फोन की लत तक सीमित नहीं है, असली चिंता यह है कि क्या यह बढ़ता स्क्रीन टाइम किशोरों के मूड, नींद, आत्म-विश्वास और भावनात्मक संतुलन को प्रभावित कर रहा है? लंबे समय तक स्क्रीन से चिपके रहने वाले किशोरों में उदासी, चिंता और अवसाद (Depression) के लक्षण पहले से कहीं ज्यादा बढ़े हैं। इस लेख में मेट्रो अस्पताल, नोएडा, कंसल्टेंट - क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और साइकोथेरेपिस्ट, डॉ. मनीषा सिंघल (Dr. Manisha Singhal, Consultant - Clinical Psychologist & Psychotherapist, Metro Hospital, Noida) से जानिए, क्या ज्यादा स्क्रीन टाइम से किशोर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं?

क्या ज्यादा स्क्रीन टाइम से किशोर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं? - Can Excess Screen Time Cause Depression In Teenagers

डॉ. मनीषा सिंघल बताती हैं कि जो किशोर दिन में 4-6 घंटे या उससे ज्यादा समय स्क्रीन के सामने बिताते हैं, उनमें अवसाद यानी डिप्रेशन, बेचैनी और सामाजिक अलगाव के लक्षण ज्यादा देखे गए हैं। विशेष रूप से सोशल मीडिया पर लगातार एक्टिव रहना किशोरों में आत्म-मूल्यांकन (Self-assessment) और दूसरों से तुलना करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है। यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे कम आत्म-सम्मान, अकेलापन और डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्याओं में परिवर्तित हो सकती है।

1. नींद की कमी

किशोरों की नींद की जरूरत वयस्कों की तुलना में ज्यादा होती है, लेकिन देर रात तक मोबाइल या लैपटॉप का उपयोग नींद की क्वालिटी और समय दोनों को प्रभावित करता है। नींद की कमी से मस्तिष्क की कार्यक्षमता कम होती है और मानसिक थकावट बढ़ती है, जो अवसाद की स्थिति को जन्म देती है।

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2. फिजिकल एक्टिविटी में कमी

ज्यादा स्क्रीन टाइम का सीधा असर फिजिकल एक्टिविटी पर पड़ता है। जब बच्चे खेलने, घूमने या एक्सरसाइज करने की बजाय स्क्रीन के सामने बैठे रहते हैं, तो उनका शारीरिक स्वास्थ्य बिगड़ता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।

3. सोशल आइसोलेशन

वर्चुअल दुनिया में ज्यादा समय बिताने से बच्चे वास्तविक जीवन में सामाजिक संपर्क से दूर हो जाते हैं। यह सामाजिक अलगाव धीरे-धीरे मानसिक तनाव और डिप्रेशन को जन्म देता है।

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4. साइबर बुलिंग

सोशल मीडिया पर दिखने वाली संपूर्ण जिंदगी की झलक किशोरों को भ्रमित करती है। वे अपनी वास्तविक जिंदगी की तुलना दूसरों की डिजिटल जिंदगी से करने लगते हैं। साथ ही, साइबर बुलिंग के मामले भी किशोरों में डिप्रेशन को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं।

रिसर्च क्या कहती है?

एक NCBI में प्रकाशित स्टडी के अनुसार, अवसादग्रस्तता के लक्षणों को बढ़ावा देता है। अवसाद के जोखिम पर स्क्रीन टाइम का प्रभाव आयु, लिंग, स्थान और स्क्रीन टाइम की अवधि के आधार पर भिन्न हो सकता है। इन निष्कर्षों के अवसाद की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ हो सकते हैं।

निष्कर्ष

ज्यादा स्क्रीन टाइम और डिप्रेशन के बीच एक गहरा संबंध है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। किशोर अवस्था संवेदनशील यानी सेंसिटिव होती है और इस दौर में तकनीक का संतुलित उपयोग बेहद जरूरी है। अभिभावकों, शिक्षकों और समाज की जिम्मेदारी है कि वे किशोरों को सुरक्षित, स्वस्थ और संतुलित डिजिटल आदतें अपनाने में मदद करें।

All Images Credit- Freepik

FAQ

  • स्क्रीन टाइम हमारे मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है?

    लंबे समय तक स्क्रीन देखने से नींद का पैटर्न बिगड़ता है, आंखों और दिमाग को थकान होती है और व्यक्ति बाहरी दुनिया से अलग हो जाता है। सोशल मीडिया पर लगातार तुलना, नकारात्मक कमेंट या लाइक्स न मिलना आत्मसम्मान पर बुरा असर डाल सकता है, जिससे उदासी और तनाव बढ़ सकता है।
  • किशोरों के लिए स्वस्थ स्क्रीन टाइम क्या है?

    13-18 वर्ष के बच्चों के लिए एंटरटेनमेंट के लिए स्क्रीन टाइम दिन में 2 घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए। पढ़ाई या प्रोजेक्ट्स के लिए जरूरी समय इसमें शामिल नहीं किया जाता।
  • डिप्रेशन के शुरुआती संकेत क्या हैं?

    लगातार उदासी, नींद में बदलाव, पढ़ाई या पसंदीदा एक्टिविटीज में रुचि घट जाना, चिड़चिड़ापन, अकेलापन पसंद करना और आत्मसम्मान में कमी, ये शुरुआती संकेत हो सकते हैं। ऐसे में माता-पिता को बच्चे से खुलकर बात करनी चाहिए और जरूरत पड़ने पर एक्सपर्ट की मदद लेनी चाहिए।

 

 

 

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  • Current Version

  • Oct 14, 2025 11:48 IST

    Published By : Akanksha Tiwari

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