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दाल खाते ही पेट फूलता है? पाचन ठीक रखने के लिए अपनाएं ये आयुर्वेदिक टिप्स

भारतीय थाली में दाल का महत्व जितना पोषण के लिए है, उतना ही यह पाचन के लिए भी अहम है। यहां जानिए, दाल खाने के बाद पेट फूलता है तो पाचन के लिए आयुर्वेदिक टिप्स आजमा सकते हैं?
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दाल खाते ही पेट फूलता है? पाचन ठीक रखने के लिए अपनाएं ये आयुर्वेदिक टिप्स


भारतीय रसोई में दाल का स्थान किसी अमृत से कम नहीं, यह रोज की थाली का अहम हिस्सा है, लेकिन क्या आपने ध्यान दिया है कि कुछ लोगों को दाल खाने के बाद पेट में भारीपन, गैस या अपच महसूस होता है? वही दाल जो सेहत के लिए फायदेमंद है, कभी-कभी पाचन की समस्या का कारण भी बन जाती है। आखिर ऐसा क्यों होता है? आयुर्वेद के अनुसार, इसका कारण दाल का स्वभाव और उसे पकाने का तरीका है। दालें गुरु आहार यानी भारी भोजन की श्रेणी में आती हैं। यदि इन्हें सही विधि से नहीं पकाया जाए, तो ये वात दोष बढ़ाती हैं और पेट में गैस या सूजन जैसी परेशानियां उत्पन्न करती हैं। यही वजह है कि आयुर्वेदिक ग्रंथों में दाल बनाते समय कुछ खास नियम बताए गए हैं। इस लेख में सिरसा के रामहंस चेरिटेबल हॉस्पिटल के आयुर्वेदिक डॉ. श्रेय शर्मा (Ayurvedic doctor Shrey Sharma from Ramhans Charitable Hospital) से जानिए, दाल को कैसे बनाएं कि पेट न फूले।

दाल से गैस और अपच से बचने के आयुर्वेदिक उपाय - Ayurvedic Tips To Avoid Gas And Bloating From Pulses

आयुर्वेदिक डॉक्टर श्रेय शर्मा बताते हैं, ''दाल बनाते समय हींग और जीरा का उपयोग अवश्य करें।'' हींग (Asafoetida) और जीरा (Cumin) दोनों ही प्राकृतिक डिटॉक्सिफायर और डाइजेस्टिव एजेंट्स हैं। ये आंतों में बनने वाली गैस को रोकते हैं और पाचन एंजाइम्स को सक्रिय करते हैं।'' हींग में मौजूद गुण गैस बनने वाले बैक्टीरिया को कंट्रोल करते हैं, वहीं जीरा में पाए जाने वाले गुण पेट के रस को संतुलित करते हैं। यदि आप दाल में सिर्फ एक चुटकी हींग और आधा चम्मच जीरा का तड़का लगाते हैं, तो दाल का स्वाद भी बढ़ेगा और यह पचने में भी आसान हो जाएगी।

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डॉ. शर्मा का कहना है कि दाल को बनाने से पहले ड्राई रोस्ट (हल्का सेंकना) करने की आदत डालें। इससे दाल की गुरुत्व (भारीपन) कम हो जाती है और यह हल्की होकर जल्दी पचने लगती है। जब आप दाल को सूखी कढ़ाई में 2-3 मिनट तक हल्का भूनते हैं, तो उसमें मौजूद तत्व (जो गैस बनाने के लिए जिम्मेदार होते हैं) का प्रभाव कम हो जाता है। फिर जब आप इसे पानी में भिगोकर पकाते हैं, तो यह सुपाच्य बनती है और आंतों में गैस बनने की संभावना घटती है।

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  • दाल को पकाने से 2-3 घंटे पहले पानी में भिगोने से यह नरम हो जाती है और गैस बनाने वाले तत्वों की मात्रा कम होती है।
  • ये मसाले वात दोष को संतुलित करते हैं और दाल को सुपाच्य बनाते हैं।
  • अदरक में एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं और हल्दी आंतों में सूजन को कम करती है।
  • घी पाचन तंत्र को चिकनाई देता है और वात दोष से बचाता है। घी में बना तड़का दाल को हल्का और पचने योग्य बनाता है।

दाल के सेवन का सही समय

आयुर्वेद के अनुसार, दाल का सेवन दोपहर के भोजन में करना सबसे अच्छा होता है क्योंकि उस समय जठराग्नि यानी पाचन अग्नि सबसे प्रबल रहती है। रात में दाल खाने से बचना चाहिए, खासकर उन लोगों को जिन्हें गैस, कब्ज या अपच की समस्या रहती है। दिन में एक बार दाल खाना पर्याप्त है, और इसे सब्जियों, चावल या रोटी के साथ संतुलित मात्रा में खाएं।

निष्कर्ष

दालें हमारे भोजन की जान हैं, लेकिन गलत पकाने के तरीके इन्हें पाचन की समस्या का कारण बना देते हैं। आयुर्वेदिक डॉक्टर श्रेय शर्मा का कहना है कि दाल को सही तरह से भूनना, मसालों का संतुलन रखना और हींग-जीरा जैसे पाचक तत्वों का उपयोग करना, इन्हें हल्का और पौष्टिक बनाता है।

All Images Credit- Freepik

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  • Oct 26, 2025 09:13 IST

    Published By : Akanksha Tiwari

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