आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी और गलत खानपान के कारण उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर में कई बदलाव देखने को मिलते हैं। 50 की उम्र के बाद हड्डियों में कमजोरी, जोड़ों में दर्द, ड्राईनेस, अपच, गैस, अनिद्रा और मानसिक तनाव जैसी समस्याएं आम हो जाती हैं। आयुर्वेद के अनुसार, इन सभी समस्याओं का एक मुख्य कारण वात दोष का असंतुलन हो सकता है। दरअसल, उम्र बढ़ने के साथ, शरीर में वात का प्रभाव अधिक बढ़ने लगता है, जिससे शरीर में ड्राईनेस, कमजोरी, जोड़ों का दर्द और थकावट जैसी परेशानियां होने लगती हैं। यह सिर्फ शरीर तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि मस्तिष्क पर भी प्रभाव डालता है, जिससे व्यक्ति ज्यादा तनावग्रस्त और बेचैन महसूस कर सकता है। इस लेख में राम हंस चैरिटेबल हॉस्पिटल के आयुर्वेदिक डॉक्टर श्रेय शर्मा (Ayurvedic doctor Shrey Sharma from Ram Hans Charitable Hospital) से जानिए, वात दोष कंट्रोल करने के लिए क्या करें?
50 की उम्र के बाद वात दोष का बढ़ना और इसके प्रभाव
आयुर्वेदिक डॉक्टर श्रेय शर्मा बताते हैं कि 50 की उम्र के बाद शरीर में कई बदलाव आते हैं। मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है, हड्डियों और जोड़ों में दर्द बढ़ने लगता है और पाचन तंत्र में भी गड़बड़ी हो सकती है। वात दोष का असंतुलन खासतौर पर इस उम्र में लोगों के शरीर में कई समस्याओं का कारण बन सकता है। इससे मानसिक तनाव और चिंता भी बढ़ सकते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि वात दोष के असंतुलित होने से मस्तिष्क में भी अस्थिरता आ सकती है।
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वात दोष कंट्रोल करने के लिए नाभि में डालें तिल का तेल - Sesame Oil In Belly Button To Control Vata dosha
तिल तेल को आयुर्वेद में एक अद्भुत औषधि माना जाता है। यह तेल खासतौर पर वात दोष को संतुलित करने के लिए बहुत लाभकारी है। तिल तेल में अच्छी मात्रा में ओमेगा-3 फैटी एसिड, एंटीऑक्सीडेंट्स और विटामिन E होते हैं, जो शरीर को न केवल शांति और ताकत प्रदान करते हैं, बल्कि त्वचा और हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए भी बहुत फायदेमंद होते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार, नाभि शरीर का केंद्र बिंदु मानी जाती है, जहां से सारे नाड़ी तंत्र और ऊर्जा का प्रवाह होता है। 50 की उम्र के बाद लोगों को नाभि में तेल का तेल डालना चाहिए, खासकर सर्दियों के मौसम में यह बेहद लाभकारी साबित होता है। नाभि में तिल तेल डालने से शरीर के भीतर के वात दोष को संतुलित किया जा सकता है। तिल तेल का नाभि में रोजाना उपयोग करने से शरीर में सूजन, दर्द और जलन को कम किया जा सकता है। यह शरीर को शांति प्रदान करता है, जिससे जोड़ों का दर्द और मांसपेशियों की कमजोरी में राहत मिलती है।
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वात दोष के लिए आयुर्वेदिक उपाय - Ayurvedic remedies for Vata dosha
- सर्दियों में तिल तेल का प्रयोग मालिश के रूप में भी किया जा सकता है। यह ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाता है और शरीर के भीतर वात दोष को संतुलित करता है। विशेषकर जोड़ों और मांसपेशियों की सूजन में राहत मिलती है। मालिश से ब्लड फ्लो में सुधार आता है और शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
- तिल का सेवन भी वात दोष को कंट्रोल करने में सहायक हो सकता है। तिल में कई पोषक तत्व होते हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाते हैं और शरीर में सूजन कम करते हैं।
- काले तिल को भोजन में शामिल करना भी एक अच्छा विकल्प है। तिल को हल्का भूनकर सलाद या दही में मिलाकर खा सकते हैं। यह शरीर को गर्मी और ऊर्जा यानी एनर्जी प्रदान करता है और वात दोष को कंट्रोल करता है।
निष्कर्ष
50 की उम्र के बाद वात दोष का असंतुलन शरीर में कई समस्याओं का कारण बन सकता है। तिल तेल का नाभि में प्रयोग और इसके अन्य आयुर्वेदिक उपचार शरीर में वात दोष को संतुलित करने में सहायक होते हैं। इसके अलावा, सही आहार, योग और अन्य आयुर्वेदिक उपायों से भी वात दोष को कंट्रोल किया जा सकता है।
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