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महिलाओं में माइग्रेन ज्यादा क्यों होता है? जानें डॉक्टर से इसे कंट्रोल करने के तरीके

Migraine in Women: महिलाओं में माइग्रेन होना काफी गंभीर समस्या है, इसलिए इसे इग्नोर करना सही नहीं है। इस लेख में डॉक्टर ने महिलाओं को माइग्रेन होने के कारण बताए हैं और साथ ही माइग्रेन मैनेज करने टिप्स दिए हैं। 
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महिलाओं में माइग्रेन ज्यादा क्यों होता है? जानें डॉक्टर से इसे कंट्रोल करने के तरीके

Migraine in Women: माइग्रेन को अक्सर कुछ समय के लिए सिरदर्द की समस्या समझकर लोग इग्नोर कर देते हैं, लेकिन माइग्रेन सिर्फ सिरदर्द ही नहीं होता, बल्कि यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जो कई लोगों की पूरी दिनचर्या खराब कर देता है। कई लोग मान लेते हैं कि माइग्रेन की समस्या लाइफस्टाइल या स्ट्रेस से जुड़ी हुई है, लेकिन इसका कारण शरीर में होने हार्मोनल और न्यूरोलॉजिकल बदलाव होते हैं। महिलाओं में हार्मोनल बदलाव ज्यादा होते हैं, शायद इस वजह के चलते दुनियाभर में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को माइग्रेन की समस्या ज्यादा होती है। इस बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए हमने बीएलके मैक्स सुपरस्पेशलिटी अस्पताल के न्यूरोसाइंस विभाग के वाइस चेयरमैन और एचओडी डॉ. अतुल प्रसाद (Dr. Atul Prasad, Vice Chairman & HOD, Neurosciences, BLK - Max Super Specialty Hospital) से बात की।


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माइग्रेन महिलाओं में ज्यादा क्यों होता है?

NCBI में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, माइग्रेन 20 से 50 साल की उम्र के लोगों में ज्यादा होता है और पुरुषों की तुलना में महिलाओं में तीन से चार गुना ज्यादा माइग्रेन के केस पाए जाते हैं। (migraine male vs female) डॉ. अतुल ने महिलाओं में माइग्रेन होने के कई कारण बताए हैं। 

हार्मोनल बदलाव के कारण माइग्रेन होना

महिलाओं में माइग्रेन बढ़ने की सबसे महत्वपूर्ण कारण एस्ट्रोजन हार्मोन में बदलाव होना है। जब पीरियड्स शुरू होते हैं, उससे पहले एस्ट्रोजन तेजी से कम होता है और फिर यह सीधे दिमाग के पेन सर्किट्’ को बहुत ज्यादा सेंसिटिव बना देता है। इस वजह से कई महिलाओं को इसे मेनुस्ट्रॉल माइग्रेन भी कहा जाता है। इस तरह का माइग्रेन आमतौर पर महिलाओं को पीरियड्स, प्रेग्नेंसी, डिलीवरी के बाद हार्मोनल शिफ्ट, पेरिमेनोपॉज और हॉर्मोनल बर्थ कंट्रोल दवाइयां लेने पर होता है।

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माइग्रेन का कारण शरीर का न्यूरोलॉजिकल सेंसिटिव होना

एस्ट्रोजन ब्रेन के उन हिस्सों पर असर डालता है जो दर्द को तेज होने पर कंट्रोल करते हैं। अगर किसी महिला में एस्ट्रोजन कम होता है, तो पेन थ्रेशोल्ड घटता है, ट्राइजेमिनोवैस्कुलर सिस्टम ज्यादा एक्टिव होता है और माइग्रेन ट्रिगर आसानी से एक्टिव हो जाते हैं। इस वजह से महिलाओं में माइग्रेन के दौरे काफी लंबे समय तक रह सकते हैं।

माइग्रेन की वजह फैमिली हिस्ट्री होना

महिलाओं में कुछ ऐसे जीन अधिक एक्टिव होते हैं, जो ऑयन चैनल, CGRP पाथवे और दर्द को समझने वाले न्यूरल सर्किट्स को प्रभावित करते हैं। अगर फैमिली में किसी को माइग्रेन की समस्या हो, तो महिलाओं को माइग्रेन ज्यादा होने के रिस्क रहता है।

माइग्रेन होने की अन्य बीमारियां

जिन महिलाओं को एंग्जाइटी, डिप्रेशन, ऑटोइम्यून बीमारियां, थायरॉइड और सोने में दिक्कत होती हैं, उनमें न्यूरो-इम्यून सिस्टम पर असर पड़ता है और यह माइग्रेन को बढ़ा देता है।

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महिलाओं को कौन-से माइग्रेन ट्रिगर होते हैं?

डॉ. अतुल कहते हैं कि आमतौर पर महिलाओं को स्ट्रेस, नींद पूरी न होना, तेज रोशनी, तेज आवाज, डिहाइड्रेशन, भूखे रहना, कैफीन ज्यादा लेना, शराब या ज्यादा स्क्रीन टाइम होना ट्रिगर्स हो सकते हैं, लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हर महिला में अलग-अलग ट्रिगर्स हो सकते हैं, इसलिए जब भी माइग्रेन हो, तो ट्रिगर पर जरूर नजर रखें।

पीरियड्स में होने वाले माइग्रेन को कैसे मैनेज करें?

डॉ.अतुल कहते हैं, “पीरियड्स के दौरान होने वाला माइग्रेन काफी दर्दनाक होता है और वे कई दिनों तक रह सकता है। इसे मैनेज करने के लिए डॉक्टर की सलाह पर कुछ दवाइयां ली जा सकती है। ये दवाइयां पीरियड्स शुरू होने से दो से तीन दिन पहले और शूरू होने के बाद दो से तीन दिन तक ली जा सकती है। इसके अलावा, कुछ महिलाओं को कंट्रास्टेप्टिव दवाइयों से हार्मोन्स स्टैबल हो जाते हैं। इससे भी माइग्रेन कम होता है, लेकिन अगर किसी महिला को माइग्रेन ऑरा के साथ होता है, तो इन दवाइयों से स्ट्रोक का रिस्क बढ़ सकता है। इसलिए किसी भी दवाई को लेने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें।”

माइग्रेन को मैनेज करने के तरीके

डॉ. अतुल ने कुछ टिप्स दिए हैं, जिन्हें अपनाकर महिलाएं अपने माइग्रेन को मैनेज कर सकती है।

  1. माइग्रेन को मैनेज करने के लिए डॉक्टर CGRP मॉनोक्लोनल एंटीबॉडीज दवाइयां दे सकते हैं। इससे कई महीनों तक रोकथाम मिल सकती है।
  2. अगर दवाइयां फिट नहीं बैठती, तो महिलाएं External trigeminal nerve stimulation, Non-invasive vagal nerve stimulation और single-pulse TMS ऑप्शन चुन सकती हैं। इन तकनीकों के इस्तेमाल से बिना दवाइयों के माइग्रेन की फ्रीक्वेंसी कम की जा सकती है।
  3. लाइफस्टाइल में बदलाव करने के लिए नींद का रुटीन ठीक करें।
  4. दिनभर में पानी पीते रहें और भोजन समय पर करें। इससे भी माइग्रेन मैनेज करने में मदद मिलती है।
  5. लंबे समय तक मोबाइल और लैपटॉप न देखें।
  6. योग, मेडिटेशन और प्राणायाम करने से स्ट्रेस मैनेज होता है।
  7. रेगुलर एक्सरसाइज जैसे ब्रिस्क वॉक और साइकिलिंग करके माइग्रेन अटैक को कम किया जा सकता है।

निष्कर्ष

अगर किसी महिला को महीने में 8 से 10 बार माइग्रेन हो, बहुत तेज दर्द, उल्टी, चक्कर, रोशनी का डर और दवाइयों से राहत न मिले, तो डॉक्टर से जरूर सलाह लें। माइग्रेन मैनेज करने के लिए अच्छी बात यह है कि सही इलाज, लाइफस्टाइल में बदलाव और ट्रिगर पहचानकर इसे काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है।

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  • Dec 08, 2025 17:07 IST

    Published By : Aneesh Rawat

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