Mental Health in Alopecia Areata: एक दिन अचानक खुशी रावत (बदला हुआ नाम) ने अपनी मां से कहा कि उसके बाल बहुत ज्यादा झड़ रहे हैं। जब उसकी मां ने बाल चेक किए तो पता चला कि सिर में गंजेपन जैसा एक पैच है। उस वक्त खुशी की उम्र सिर्फ 13 साल की थी। पैच देखकर समझ ही नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है। अगले दिन जब त्वचा रोग विशेषज्ञ को दिखाया तो पता चला कि इस बीमारी को एलोपेसिया एरीटा कहते हैं। ये एक ऑटो इम्यून बीमारी है, जिसमें सिर के किसी भी हिस्से में पैच आने लगते हैं। हालांकि इसका पूरी तरह से इलाज संभव नहीं है, लेकिन डॉक्टर दवाइयां और लोशन देते हैं। इससे बाल दोबारा उगने लगते हैं।
खुशी के मामले में डॉक्टर ने दवाइयां और लगाने के लिए कुछ लोशन दिए लेकिन सिर पर गंजेपन का पैच बढ़ता ही जा रहा था। उम्र के इस दौर में जब शरीर में बदलाव हो रहे थे, ऐसे में बालों में गंजापन आना, खुशी के लिए मानसिक आघात बन रहा था।
ओनलीमायहेल्थ ऐसे मेंटल डिसऑर्डर को बेहतर तरीके से समझने के लिए ‘मेंटल हेल्थ मैटर्स’ नाम से एक विशेष सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के जरिए हम विभिन्न मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के बारे में उपयोगी जानकारी अपने रीडर्स तक पहुंचा रहे हैं। आज इस सीरीज में हम आपको खुशी रावत की केस स्टडी बता रहे हैं कि कैसे उसने Alopecia Areata में अपनी मेंटल हेल्थ को संभाला।
शारीरिक परेशानी बनी डिप्रेशन का कारण
आज खुशी को डिप्रेशन के उस पड़ाव से निकले 4 साल हो चुके हैं, लेकिन जब भी वह उस समय को याद करती है, तो उसके आंसू रुकने का नाम नहीं लेते। खुशी कहती है, "क्लास में मेरे दोस्तों ने मुझसे बात करना बंद कर दिया था। उन्हें लगता था कि ये बीमारी उनको भी हो सकती है। उन्होंने मेरे साथ लंच करना बंद कर दिया था और मैं क्लास में अकेले बैठने लग गई थी। कुछ बच्चों ने मुझे बुली( bully) भी किया। इस दौरान मेरा पढ़ने में भी मन नहीं लगता था और न ही मुझे स्कूल जाना पसंद था।"
महीनाभर परेशान रहने के बाद उसने ये बात अपनी मां को बताई। पैरेंट्स ने स्कूल में बात की और टीचर्स ने खुशी की मदद करने का आश्वासन दिया।
मानसिक स्वास्थ्य पर दिया ध्यान
अब खुशी को डिप्रेशन से निकालना बहुत जरूरी था, इसलिए पैरेंट्स ने डॉक्टर से बात की। डॉक्टर ने मनोचिकित्सक से काउंसिलिंग कराने की सलाह दी। मनोचिकित्सक ने खुशी से बात की और उसकी थेरेपी लगातार 2 साल तक चलती रही। धीरे-धीरे खुशी में स्कूल जाने की हिचकिचाहट खत्म होने लगी। इस बारे में खुशी ने बताया,"काउंसिलिंग में मुझे महसूस हुआ कि जैसी मैं हूं, मुझे वैसे ही खुद को अपनाना है। लोग क्या सोचते हैं, इसके बारे में मुझे नहीं सोचना है। स्कूल में वापस मैंने सबसे दोस्ती करने की शुरूआत की। मेरे में आत्मविश्वास आया और अब मैं खुद को पहले से बेहतर और मजबूत इंसान समझने लगी हूं। अब मैं पूरी तरह से पढ़ाई पर भी ध्यान देने लगी हूं।" सही समय पर मनोचिकित्सक से सलाह लेने और काउंसिलिंग शुरू होने के कारण वह डिप्रेशन जैसी गंभीर बीमारी से बच गई। लेकिन कई मरीज इस डिप्रेशन को पहचान ही नहीं पाते। ऐसे में बढ़ता तनाव उनकी एलोपेसिया की बीमारी को और अधिक बढ़ा सकता है।
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एलोपेसिया एरीटा क्या है?
इस बीमारी में प्रतिरक्षा प्रणाली रोगी के बालों की स्वस्थ कोशिकाओं पर अटैक करती है। इससे बाल पैच के रूप में झड़ने लगते हैं और गंजापन आने लगता है। एलोपेसिया होने का कारण अनुवांशिक, तनाव या कैंसर जैसे रोगों का इलाज भी हो सकता है। इस बीमारी में सबसे बड़ी समस्या ये है कि रोगी अपने बालों के गंजेपन के पैच की वजह से शर्मिंदगी महसूस करता है और इसका असर उसकी मानसिक सेहत पर पड़ता है।
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मरीज मानसिक सेहत का कैसे रखें ख्याल?
मानसिक सेहत को दुरूस्त रखने के लिए गुरूग्राम के सीनियर क्लिनिकल साइकोलोजिस्ट और साइकोथेरेपिस्ट संजना सराफ ने बताया कि हम एलोपेसिया के मरीजो को समझाते हैं कि जीवन के हर स्टेज पर कुछ बदलाव आते हैं, जिसे हमें विनम्रता से स्वीकार करने की कोशिश करनी चाहिए। जितना वह इस असलियत से दूर भागेंगे, उतनी ही तकलीफ होगी। हमारे शरीर का कोई भी हिस्सा हमारी पूरी पर्सेनलिटी को नहीं दर्शाता। इसे छुपाने से या लोगों से न मिलने की स्थिति में इमोशनल स्ट्रेस बढ़ जाता है। इसलिए खुद को सिर्फ शरीर से जज मत करो, अपने हुनर को आगे लेकर आओ।