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ABC of Hepatitis: इंडिया में तेजी से बढ़ रहे हैं हेपेटाइटिस बी और सी के मामले, जानें इसके पीछे के कारण

हेपेटाइटिस बी और सी के बढ़ते मामलों को रोकने की पूरी जानकारी पाएं।
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ABC of Hepatitis: इंडिया में तेजी से बढ़ रहे हैं हेपेटाइटिस बी और सी के मामले, जानें इसके पीछे के कारण

हेपेटाइटिस लिवर से जुड़ी एक बीमारी है, जिसमें मुख्य रूप से लिवर में सूजन आ जाती है। इसके कई कारण हो सकते हैं लेकिन आमतौर पर वायरल, शराब का अधिक सेवन, ऑटो इम्यून बीमारियों, दवाइयों के सेवन या फिर संक्रमित रक्त के द्वारा हो सकती है। हेपेटाइटिस पांच तरह का होता है - ए, बी, सी डी और ई। ये बीमारी कई बार सही समय पर दवाइयां लेने से ठीक हो जाती है लेकिन समय पर इलाज न कराने से हेपेटाइटिस सिरोसिस या लिवर कैंसर भी बन सकता है। इसलिए समय पर इसके बारे में पता चलना और इलाज कराना दोनों ही महत्वपूर्ण है।

दुनियाभर में हेपेटाइटिस को लेकर जागरूकता अभियान के साथ-साथ इलाज पर भी जोर दिया जा रहा है। अधिक से अधिक जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 28 जुलाई को वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे मनाया जाता है। हेपेटाइटिस को लेकर भारत में अभी भी उतनी जागरूकता नहीं आई है, इसलिए इसके मामले ज्यादा पाए जा रहे हैं। हाल ही में डब्लू एच ओ की रिपोर्ट के अनुसार चीन के बाद भारत हेपेटाइटिस बी और सी के मामलों में दूसरे स्थान पर है।

इंडिया में बढ़ते मामलों की वजह 

डब्लू एच ओ के हालिया ग्लोबल हेपेटाइटिस रिपोर्ट के अनुसार साल 2022 में इंडिया में हेपेटाइटिस के 2.98 करोड़ मामले थे और 55 लाख हेपेटाइटिस सी के मामले पाए गए हैं। डेटा के अनुसार दुनियाभर में हेपेटाइटिस की कुल बीमारी के बोझ का 11.6% हिस्सा भारत का है। इसमें से हेपेटाइटिस बी बढ़ने की सबसे बड़ी वजह है कि बीमारी का पता चलने के बाद भी इसके इलाज का कवरेज जीरो प्रतिशत है। हेपेटाइटिस सी के ट्रीटमेंट की दवाइयां होने के बावजूद इसके इलाज का कवरेज सिर्फ 21 फीसदी ही है। 

 

hepatitis in india

भारत में लोग हेपेटाइटिस बी और सी के लक्षणों को नजरअंदाज करते हैं और इलाज कराने में लापरवाही बरतते हैं। इसलिए इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। अगर इलाज कराने जाते भी हैं, तो  नीम-हकीमों के पास जाकर पीलिया कम करने पर जोर देते हैं या फिर हर्बल सप्लीमेंट्स लेकर बीमारी कम करने की कोशिश करते हैं। गुरूग्राम के सी के बिरला अस्पताल के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के लीड कंसल्टेंट डॉ. अनुकल्प प्रकाश के अनुसार अगर किसी को हेपेटाइटिस हो जाता है, तो परिवार रोगी को बिल्कुल फीका या मसाले रहित भोजन देने लगता है। उसमें हल्दी भी नहीं डाली जाती। इससे रोगी को रिकवर होने में समय लगता है। भारत में खासतौर से ये धारणा है कि हल्दी से पीलिया बढ़ जाएगा लेकिन सभी के लिए ये जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि हल्दी से सूजन कम होती है। इसलिए रोगी को हल्दी वाला प्रोटीन युक्त भोजन देना चाहिए। 

बढ़ते मामलों के बारे में  डॉ. आरएमएल अस्पताल और ABVIMS के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग की हेड डॉ. वैशाली भारद्वाज का कहना है कि आजकल लोगों में टैटू बनवाने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है या फिर ब्यूटी पार्लर में ऐसे उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है, जो स्टरेलाइज नहीं होते। लोग ऐसे नीम हकीमों के पास जा रहे हो, जो स्टरेलाइज इंजेक्शन इस्तेमाल नहीं करते। कई बार गर्भवती मां को पता होता है कि वह हेपेटाइटिस से पीड़ित है, इसके बावजूद वह इलाज नहीं कराती। इससे नवजात बच्चे को हेपेटाइटिस हो जाता है। आजकल लोगों में एक से अधिक पार्टनर के साथ यौन संबंध बनाना और असुरक्षित यौन संबंधों के चलते भी हेपेटाइटिस बी और सी के मामले बहुत अधिक देखने को मिल रहे हैं।

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ग्लोबल आंकड़े VS भारत के आंकड़े

अगर दुनियाभर के आंकड़ों की बात करें तो WHO की रिपोर्ट के अनुसार साल 2022 में दुनियाभर में 254 मिलियन लोग हेपेटाइटिस बी और 50 मिलियन लोग हेपेटाइटिस सी से ग्रस्त है। इन आंकड़ों में क्रोनिक हेपेटाइटिस के आधे मामले 30 से 54 साल के उम्र के लोगों में पाए गए हैं और 12 प्रतिशत मामले 18 साल के कम उम्र के बच्चों में देखने को मिले हैं। इसमें 58% पुरुषों के मामले हैं। रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में रोज 3500 लोगों की मृत्यु होती है। इसी से पता चलता है कि हेपेटाइटिस कितनी तेजी से दुनिया में फैल रहा है। आइये एक नजर डालते हैं ग्लोबल और इंडिया के आंकड़ों पर -

 

hepatitis in india

ग्लोबल आंकड़ों के अनुसार पुरुषों में हेपेटाइटिस के मामले ज्यादा देखने को मिल रहे हैं, इसे पीछे क्या वजह है? इस बारे में झायनोवा शाल्बी अस्पताल के कंस्लटेंट गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट, हेपेटोलोजिस्ट और थेराप्यूटिक एंडोस्कोपिस्ट डॉ. अरूण वैद्य ने बताया कि पुरूषों में हेपेटाइटिस होने के कई कारण हो सकते हैं। शराब का अधिक सेवन, ड्रग्स लेना, डायबिटीज, मोटापा और असुरक्षित यौन संबंध बनाना, मुख्य वजहें हो सकती है। अकसर देखा गया है कि पुरूष हेपेटाइटिस का टेस्ट कराने या मेडिकल मदद लेने से बचते हैं। इस वजह से हेपेटाइटिस के बारे में देर से पता चलने पर बीमारी गंभीर हो जाती है और रिकवरी में समय लगता है। इसके अलावा पुरूष किसी खास इंडस्ट्री जैसे माइनिंग या कंस्ट्रक्शन में काम करते हैं, तो हेपेटाइटिस का रिस्क और अधिक बढ़ जाता है। अगर बीमारी का देर से पता चलता है, तो रिकवरी लेट होती है, साथ ही लंबे समय तक इलाज कराने की वजह से आर्थिक नुकसान भी होता है। अगर हेपेटाइटिस ज्यादा गंभीर हो जाए, तो मृत्यु होने की संभावना भी बढ़ जाती है। 

अगर भारत की बात की जाए तो रिपोर्ट के अनुसार देश में हेपेटाइटिस के 50 हजार नए मामले आए हैं और हेपेटाइटिस सी के 1.4 लाख नए मामले दर्ज किए गए हैं। इस वायरल हेपेटाइटिस की वजह से 1.23 लाख लोगों ने अपना जान गंवा दी थी।

इसमें सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात ये है कि हेपेटाइटिस बी के 2.4 प्रतिशत मामले और हेपेटाइटिस सी के 28 फीसदी मामलों में ही बीमारी का पता चला है। बीमारी के बारे में पता न चलने की वजह के बारे में दिल्ली के अपोलो डायग्नोस्टिक्स के नेशनल टेक्निकल हेड और चीफ पैथोलोजिस्ट डॉ. राजेश बेंद्रे कहते हैं कि हेपेटाइटिस बी का वायरस आसानी से ब्लड, लार, सीमन या वजाइनल डिस्चार्ज से दूसरों में फैल सकता है और हेपेटाइटिस सी का वायरस रक्त में जमा बैक्टीरिया, वायरस इत्यादि से दूसरों में ट्रांसमिट हो सकता है। हेपेटाइटिस सी आमतौर पर एक ही सुई के बार-बार इस्तेमाल से होता है। जैसेकि टैटू कराने में उपकरणों को सही तरीके से स्टरलाइज न करना से हेपेटाइटिस सी हो सकता है। हेपेटाइटिस बी और सी के कोई खास तरह के लक्षण सामने नहीं आते, इसलिए लोगों को पता ही नहीं चलता कि वे हेपेटाइटिस बी और सी से पीड़ित है। इसलिए ये बहुत जरूरी है कि लोगों को हेपेटाइटिस बी और सी के बारे में बताया जाए ताकि लक्षणों की पहचान करके रोगी जल्द से जल्द इलाज करवा सके। 

hepatitis in india 

 

हेपेटाइटिस बी होने की वजह?

हेपेटाइटिस बी होने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन मुख्य रूप से इसके होने की वजह है - 

  • संक्रमित व्यक्ति के रक्त के संपर्क में आना
  • संक्रमित व्यक्ति का इंजेक्शन, रेजर या टुथब्रुश का इस्तेमाल करने से
  • गर्भवती महिला से उसके नवजात बच्चे को 
  • असुरक्षित यौन संबंध बनाने से 
  • संक्रमित व्यक्ति की लार के संपर्क आने से
  • HIV लोगों को 7.5 फीसदी क्रोनिक हेपेटाइटिस बी होने का चांस ज्यादा होता है।

सबसे दिलचस्प बात ये है कि हेपेटाइटिस बी का वायरस किसी भी सतह पर सात दिन तक रह सकता है। इसलिए जब भी किसी की चीज इस्तेमाल करें, तो स्टेरलाइज जरूर करें। 

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हेपेटाइटिस सी होने की वजह? 

हेपेटाइटिस सी होने का कारण भी संक्रमित रक्त के संपर्क में आने से होता है। अगर इंफेक्टिड मशीनों का प्रयोग किया जाए, तो हेपेटाइटिस सी होने का खतरा बढ़ सकता है। आमतौर पर ब्यूटी पार्लर या टैटू इत्यादि में संक्रमित मशीनों के उपयोग से हेपेटाइटिस सी होने का रिस्क बढ़ जाता है। 

इसके अलावा हेपेटाइटिस सी की वजह है - 

  • संक्रमित इंजेक्शन शेयर करने से 
  • गर्भवती महिला से बच्चे को
  • संक्रमित उपकरणों के इस्तेमाल करने से 
  • असुरक्षित यौन संबंध से 

 एक ब्लड टेस्ट के जरिए हेपेटाइटिस सी का पता चल सकता है। इस टेस्ट को RNA PCR टेस्ट कहते हैं, इससे डॉक्टर हेपेटाइटिस वायरल होने की पुष्टि होती है। इसके अलावा लिवर फंक्शन टेस्ट, एमआरआई से भी  हेपेटाइटिस सी का पता लगाया जाता है।  

 
 
 
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हेपेटाइटिस बी और सी में अंतर

हेपेटाइटिस बी और सी के वायरस अलग-अलग होते हैं। हेपेटाइटिस बी रक्त या तरल पदार्थों के माध्यम से फैलता है, लेकिन हेपेटाइटिस सी सिर्फ रक्त के माध्यम से फैलता है। अगर घर में किसी को हेपेटाइटिस बी हो जाए, तो परिवार के अन्य सदस्यों को काफी सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि हेपेटाइटिस बी लार के जरिए भी फैल सकता है। 

हेपेटाइटिस बी एक्यूट या क्रोनिक दोनों हो सकता है। आमतौर पर हेपेटाइटिस बी एक्यूट यानि कि लगभग 6 महीने तक रहता है। इसके विपरीत हेपेटाइटिस सी क्रोनिक यानि कि गंभीर हो सकता है। अगर किसी को एक्यूट हेपेटाइटिस सी है, तो वह गंभीर बीमारी में बदल सकता है। इसलिए हेपेटाइटिस सी के इलाज में डॉक्टर दवाइयों के जरिए लिवर को बेहतर रखने की कोशिश करते हैं।

हेपेटाइटिस से ऐसे करें बचाव

सबसे अच्छी बात ये है कि हेपेटाइटिस बी की वैक्सीन उपलब्ध है। इस बारे में डॉ. वैशाली भारद्वाज ने बताया कि अब हेपेटाइटिस बी की वैक्सीन नेशनल टीकाकरण प्रोग्राम का हिस्सा बन चुका है। इसलिए अपने बच्चों को सभी टीके जरूर लगवाएं। साथ ही बड़ों को भी हेपेटाइटिस बी का इंजेक्शन जरूर लगवाना चाहिए। हेपेटाइटिस बी को टीके के माध्यम से पूरी तरह रोका जा सकता है, इसलिए सभी को टीका लगवाना चाहिए।  

हेपेटाइटिस सी का वैक्सीन अभी तक नहीं आया है। इसलिए अगर समय पर इलाज न कराया जाए तो इसके गंभीर होने के चांस बढ़ जाते हैं। जब भी लक्षण सामने आए, तो डॉक्टर को सही समय पर दिखाएं और गंभीरता के साथ दवाइयां लें। डॉक्टर की सलाह पर अपने खान-पान और लाइफस्टाइल पर ध्यान दें। 

 

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