
डब्ल्यूएचओ (WHO) रिपोर्ट के अनुसार, भारत में करीब 6 करोड़ 30 लाख लोगों में सुनने की क्षमता कम है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि बहरेपन की समस्या भारत में काफी गंभीर है। इसलिए WHO ने नवजात बच्चों में सिस्टेमेटिक स्क्रीनिंग कराने की सलाह दी है, ताकि समय पर रहते बच्चों में इस विकार का पता चल सके। इससे बहरेपन की समस्या में काफी हद तक निजात पाया जा सकता है। कुछ ऐसा ही मामला आया है दिल्ली के 5 महीने के बच्चे हुसैन का। उसके बहरेपन का कैसे समय रहते पता चला और फिर परिवार ने समय न गंवाते हुए इलाज कराया। फरीदाबाद के सर्वोदय अस्पताल के ईएनटी (ENT) और कोक्लियर विभाग के डायरेक्टर डॉ. रवि भाटिया ने बताया कि इस बीमारी के कारण और कैसे इसका इम्प्लांट की मदद से इलाज संभव है।
5 महीने के बच्चे में बहरेपन का पता चला
2 जनवरी को जन्मे हुसैन के पिता रहमत खान भी जन्म से बहरे और गूंगे हैं। जब बच्चे का जन्म हुआ, तो उनका परिवार इस बात को लेकर थोड़ा सतर्क था। करीब पांच महीने के हुसैन को सर्दी-जुकाम हुआ, तो वह उसे दिखाने लोकल डॉक्टर के पास लेकर गए। डॉक्टर ने चेकअप करने के बाद बच्चे में बहरेपन होने की आशंका जताई। इस बारे में याद करते हुए बच्चे के दादा शंभू खान कहते हैं, “जब डॉक्टर ने उन्हें यह बताया कि उनके चार महीने के पोते में सुनने की क्षमता कम है, तो मैं बिल्कुल टूट गया था। बेटा पहले से ही इस बीमारी के कारण समाज में काफी पीछे रह गया था और मैं अब अपने पोते के साथ वह सब नहीं होने देना चाहता था।”
बच्चे के कई चेकअप कराए
दादा शंभू खान कहते हैं कि उन दिनों में वह काफी परेशान रहने लगे थे। 5 महीने के हुसैन के पास दिन में कई-कई बार ताली बजाता और खिलौने से आवाज करता, लेकिन आवाज को लेकर कोई हरकत नहीं होती थी। फिर मैंने कई अस्पतालों में इसे दिखाया। आखिरकार सर्वोदय अस्पताल में डॉ. रवि भाटिया के पास जब गया, तो उन्होंने कहा कि बच्चा बिल्कुल सुनने लग जाएगा। उन्होंने कई चेकअप किए और फिर सर्जरी की बात बताई। मुझे सिर्फ अपने पोते की चिंता थी कि वह सुनने लग जाए। मैंने वही सब किया जो भी डॉक्टर ने बताया।
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बहरापन होने के कारण
डॉ. रवि भाटिया ने बताया कि कई बार जन्म के बाद बच्चों को पीलिया हो जाता है, या समय से पहले जन्म होने के कारण इंक्यूबेटर में रहने से बहरेपन की शिकायत हो सकती है। इसके अलावा, मेनिनजाइटिस होने या प्लाज्मा ट्रांसप्लांट से भी बहरेपन की समस्या हो सकती है। इसलिए मैं हमेशा कहता हूं कि जन्म के समय बच्चों के बहरेपन का टेस्ट कराने से बीमारी का जल्दी पता चलता है। बच्चों का इलाज जल्दी होने से उनके मानसिक और शारीरिक विकास में कोई अवरोध पैदा नहीं होता।
कोक्लियर इम्प्लांट सर्जरी से हुआ इलाज
5 महीने के हुसैन के इलाज के बारे में बताते हुए डॉ. रवि भाटिया ने कहा कि हुसैन उम्र में काफी ज्यादा छोटा था, लेकिन कम उम्र में इलाज करने से उसकी सीखने की क्षमता प्रभावित नहीं होती। हुसैन का सबसे पहले पूरा ऑडियोलॉजिकल टेस्ट, सीटी स्कैन और एमआरआई से बीमारी को समझा गया। इसके बाद बच्चे के दादाजी शंभू खान को कोक्लियर इम्प्लांट सर्जरी के बारे में बताया। हैरानी की बात यह थी कि उन्होंने इस सर्जरी के लिए तुरंत हां कर दी। उन्होंने बस इतना ही कहा कि वह अपने पोते को बहरेपन के साथ जीवन बिताते नहीं देखना चाहते।
इस डिवाइस के दो हिस्से हैं, एक हिस्से को कान के अंदर सर्जरी करके डाला जाता है और दूसरे हिस्से को बाहर रखा जाता है। बाहर का डिवाइस आवाज को लेकर इसे डिजिटल सिग्नल में बदलकर अंदर वाले डिवाइस में भेज देता है। फिर इंटरनल डिवाइस नर्व को स्टिमुलेट करके दिमाग तक पहुंचाता है। इससे रोगी को सुनने की क्षमता मिलती है। इस मामले में, बच्चे की सर्जरी छोटी उम्र में कर देने से अब वह आसानी से सुनकर रिएक्ट कर पाएगा। फिलहाल हुसैन 10 महीने का हो गया और अभी करीब सालभर तक उसकी थेरेपी चलेगी, ताकि वह आवाज को समझ सके।
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सर्जरी के बाद हुआ सुधार
सर्जरी हुए करीब पांच महीने हो चुके हैं। अब हुसैन आसानी से ताली की आवाज और खिलौनों की आवाज की ओर देखता है। यह देखकर उनके दादाजी शंभू खान बहुत खुश हैं। उन्होंने हमसे बात करते हुए कहा कि जो काम वह अपने बेटे के लिए नहीं कर पाए, वह अपने पोते के लिए करके बहुत खुश हैं। उन्हें इस बात की बहुत तसल्ली है कि अब उनका पोता हुसैन आम बच्चों की तरह स्कूल में पढ़ पाएगा और खेलकूद पाएगा।
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