Breastfeeding and Puberty: आजकल लड़के और लड़कियों को समय से पहले ही प्यूबर्टी (puberty) आना बड़ी टेंशन बन गया है। पहले लड़कियों को प्यूबर्टी की शुरुआत आमतौर पर 10–12 साल की उम्र और लड़कों में 11–13 साल की उम्र के बीच होती थी, लेकिन बदलते लाइफस्टाइल, जंक और प्रोसेस्ड फूड, प्रदूषण और मोटापे के कारण अब बच्चों में प्यूबर्टी 7 से 8 साल की उम्र में ही हो जाती है। इसे प्रीकॉशियस प्यूबर्टी (Precocious Puberty) कहते हैं। इसका नुकसान बच्चों के फिजिकल और मेंटल लेवल दोनों पर होता है। तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिन बच्चों ने ब्रेस्टफीडिंग की है, क्या उन्हें जल्दी प्यूबर्टी होने का रिस्क कम हो सकता है? इस बारे में हमने दिल्ली के क्लाउडनाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के पीडियाट्रिशियन और नियोनैटोलॉजिस्ट विभाग के कंसल्टेंट डॉ. रजत ग्रोवर (Dr Rajat Grover, Consultant- Pediatrician and Neonatologist at Cloudnine Group of Hospitals, Patparganj, Delhi) से बात की।
ब्रेस्टफीडिंग से पहले प्यूबर्टी का रिस्क कम क्यों?
डॉ. रजत ग्रोवर कहते हैं, “मां का दूध शिशु के लिए संपूर्ण पोषण का स्त्रोत होता है। ब्रेस्टफीडिंग बच्चे को न सिर्फ इंफेक्शन और बीमारियों से बचाती है बल्कि उसके हार्मोन्स की ग्रोथ पर भी असर डालती है। इसलिए ऐसे बच्चों को आगे चलकर पहले प्यूबर्टी होने का रिस्क कम हो जाता है।”
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नेचुरल और बैलेंस्ड न्यूट्रिशन
मां का दूध बच्चों के लिए नेचुरली बैलेंस्ड डाइट है। इसमें मौजूद प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, हार्मोन और इम्यून फैक्टर्स बच्चों के विकास को संतुलित रखते हैं। इसलिए तो ब्रेस्टफीडिंग से बच्चों का मोटापा कम होता है और मोटापा ही प्रीमैच्योर प्यूबर्टी का बड़ा कारण माना जाता है। इसलिए बच्चे के सही विकास के लिए ब्रेस्टफीडिंग बहुत जरूरी है।
हार्मोनल बैलेंस होना
जिन बच्चों को फॉर्मूला मिल्क या प्रोसेस्ड फूड्स दिया जाता है, उनमें हार्मोनल असंतुलन हो सकता है। इनमें ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो एस्ट्रोजन जैसे हार्मोन पर असर डालते हैं। इससे बच्चों में समय से पहले यौन हार्मोन सक्रिय हो जाते हैं और प्यूबर्टी 7–8 साल में शुरू हो सकती है।
हेल्दी वजन और बेहतर मेटाबॉलिज्म
ब्रेस्टफीडिंग से बच्चों का मेटाबॉलिज्म मजबूत होता है। इससे बच्चों का मोटापा कंट्रोल होता है। अगर वजन सही न हो, तो फैट टिश्यू ज्यादा एस्ट्रोजन बनाकर प्यूबर्टी जल्दी शुरू कर सकता है। अगर बच्चे ने ब्रेस्टफीड किया है, तो इससे बच्चों की ग्रोथ सामान्य होती है।
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बेहतर इम्युनिटी और इंफेक्शन का रिस्क कम होना
दरअसल, मां के दूध में एंटीबॉडीज होते हैं, जो बच्चे की इम्युनिटी को बेहतर बनाते हैं और इंफेक्शन के रिस्क से बचाते हैं। अगर बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग न कराई गई हो, तो संक्रमण का रिस्क बढ़ जाता है। इससे बच्चे की ग्रोथ पर असर पड़ता है और कमजोर इम्युनिटी हार्मोनल असंतुलन को बढ़ा सकती है। इससे बच्चों को समय से पहले प्यूबर्टी हो सकती है।
मेंटल और इमोशनल असर
ब्रेस्टफीडिंग न सिर्फ बच्चों को न्यूट्रिशन देती है, बल्कि मां और बच्चे के बीच इमोशनल रिश्ता भी बनाती है। इससे बच्चे को मेंटल स्टेबिलिटी मिलती है और उनका मानसिक विकास बेहतर तरीके से होता है। इसका असर हार्मोन्स पर भी पड़ता है। हार्मोन्स का सीधा कनेक्शन प्यूबर्टी से जुड़ा है।
निष्कर्ष
डॉ. रजत कहते हैं कि ब्रेस्टफीडिंग बच्चे को शारीरिक, मानसिक और इमोशनल रूप से पूरा पोषण देती है। इससे बच्चा मोटापे, हार्मोनल असंतुलन और संक्रमण से बचता है और उसकी नेचुरल ग्रोथ होती है, जो उम्र से पहले होने वाली प्यूबर्टी से भी बचाती है। इसलिए WHO ने भी साफ किया है कि शिशु को 6 महीने तक सिर्फ ब्रेस्टफीड कराना चाहिए और 2 साल या उससे ज्यादा समय तक ब्रेस्टफीडिंग जारी रखी जा सकती है।
FAQ
प्यूबर्टी क्या है?
जब बच्चों में शारीरिक बदलाव प्राकृतिक तरीके से होते हैं, तो उसे प्यूबर्टी कहते हैं। इसमें बचपन से एडल्ट की ओर बढ़ते हुए शरीर में लैंगिक परिपक्वता और प्रजनन अंगों का विकास होता है। इस दौरान शरीर पर बाल आना, आवाज में भारीपन, और लड़कियों में स्तनों का विकास आता है।प्यूबर्टी के क्या लक्षण हैं?
प्यूबर्टी के मुख्य लक्षणों में लड़कियों के ब्रेस्ट का विकास और मासिक धर्म की शुरुआत व लड़कों में जननांगों का बढ़ना, आवाज भारी होना, और चेहरे व शरीर पर बाल आना है। इसके अलावा, दोनों में शरीर के आकार का बढ़ना और शरीर की गंध में बदलाव भी होता है।लड़कों में जल्दी यौवन के लक्षण क्या हैं?
लड़कों में अंडकोष और लिंग का विकास, चेहरे पर बाल और गहरी आवाज़ होने के साथ प्राइवेट पार्ट्स और बगलों में तेजी से बालों का होना। कई लड़कों के मुंह पर मुंहासे भी हो सकते हैं।
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Sep 26, 2025 07:03 IST
Published By : Aneesh Rawat