Breastfeeding and Childhood Obesity: बच्चों में मोटापे की समस्या आम हो गई है, फिर चाहे बात शहरों की हो या गांव की। छोटी उम्र में मोटापे के चलते बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज, हाई बीपी, अस्थमा और सांस से जुड़ी कई तरह की समस्याएं (risks of lifestyle diseases) देखने को मिल रही हैं। मोटापे के चलते छोटी उम्र में ही लिवर की समस्या से लेकर स्ट्रेस जैसी मानसिक परेशानियों से भी जूझ रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर मां ब्रेस्टफीड कराती हैं,तो क्या बच्चे को मोटापे का खतरा कम हो सकता है? वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक (World Breastfeeding Week) के अवसर पर हमने इस बारे में नई दिल्ली के क्लाउडनाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स की , लेक्टेशन कंसल्टेंट और फिजियोथेरेपिस्ट प्रियंका खन्ना से बात की और उन्होंने इस बारे में विस्तार से बताया।
क्या ब्रेस्टफीडिंग से बच्चे को मोटापे का खतरा कम होता है?
इस बारे में प्रियंका खन्ना कहती हैं, “हां, ब्रेस्टफीडिंग से आने वाले सालों में बच्चे को मोटापे का रिस्क कम होता है। कई रिसर्च और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे WHO और UNICEF में पाया गया है कि ब्रेस्टफीडिंग कराने से बच्चों में मोटापे का खतरा कम हो सकता है। इसके अलावा नवजात शिशु को पहले 6 महीने सिर्फ मां का दूध ही देना चाहिए। इससे शिशु को पूरा पोषण मिलता है। जो बच्चे लगातार ब्रेस्टफीड करते हैं, उन बच्चों में आगे चलकर बॉडी मास इंडेक्स (BMI) सामान्य रहने की संभावना बहुत ज्यादा रहती है।
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ब्रेस्टमिल्क कैसे बच्चे को मोटापे से बचाता है?
लेक्टेशन एक्सपर्ट प्रियंका कहती हैं, “मां के दूध में वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, विटामिन और खनिज जैसे कई पोषक तत्व होते हैं, जो बच्चे के विकास के लिए जरूरी है। इसके अलावा, ब्रेस्टमिल्क कुछ इस तरह शिशु को मोटापे से बचाता है।”
- शिशु ब्रेस्टमिल्क के जरिए खुद ही तय करते हैं कि उन्हें कब ब्रेस्टफीड करना है और कितना पीना है। इससे शिशु ओवरफीडिंग नहीं कर पाता।
- मां के दूध में लेप्टिन और एडिपोनेक्टिन जैसे हार्मोन होते हैं जो बच्चे के मेटाबॉल्जिम को नियंत्रित रखते हैं। इससे शिशु को दूध जल्दी पच जाता है। ब्रेस्टमिल्क फैट स्टोरेज को कंट्रोल करती है।
- ब्रेस्टमिल्क हर स्टेज पर बदलता है, जो शिशु की जरुरतों को पूरा करता है।
- ब्रेस्टमिल्क में प्रीबायोटिक्स और अच्छे बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो पाचनतंत्र को हेल्दी रखता है। इससे आने वाले समय में बच्चे को मोटापे से बचाता है।
ब्रेस्टफीडिंग से कौन सी बीमारियों का खतरा कम होता है?
WHO के अनुसार, ब्रेस्टमिल्क से नींद से जुड़ी बीमारियां और लिवर की परेशानियां कम होती हैं। बच्चे को डिप्रेशन और सोशल एंजाइटी का रिस्क कम होता है। प्रियंका खन्ना के अनुसार ब्रेस्टमिल्क से शिशु को इन बीमारियों से बचाया जा सकता है।
- संक्रमण जैसे कान का इंफेक्शन, डायरिया और सांस की बीमारियों का खतरा कम रहता है।
- अस्थमा और एलर्जी होने की संभावना कम हो जाती है।
- टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज का रिस्क कम होता है।
- अचानक से मृत्यु (Sudden Infant Death Syndrome) का खतरा कम हो जाता है।
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मोटापे के रिस्क को कम करने के लिए मां को कब तक ब्रेस्टफीड कराना चाहिए?
इसे बारे में लेक्टेशन एक्सपर्ट प्रियंका कहती हैं, “WHO और इंडियन अकैडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (IAP) की सलाह है कि मां को पहले 6 महीने तक सिर्फ ब्रेस्टफीड (Exclusive Breastfeeding) ही कराना चाहिए। इसके बाद शिशु को सेमी सॉलिड और फिर सॉलिड फूड देना चाहिए और साथ में कम से कम 2 साल तक स्तनपान जारी रखना चाहिए। इससे शिशु की इम्युनिटी बढ़ती है और बच्चो को इमोशनल सपोर्ट मिलता है।
FAQ
ब्रेस्टफीडिंग क्यों जरूरी है?
शिशु की पेट और आंते पूरी तरह से विकसित नहीं होती, ऐसे में ब्रेस्टमिल्क पचाना आसान होता है। इसमें मौजूद एंटीबॉडीज संक्रमण से बचाती है।क्या ब्रेस्ट फीडिंग से ब्रेस्ट छोटे होते हैं?
ब्रेस्टफीडिंग से स्तनों के आकार में कोई फर्क नहीं पड़ता। इसलिए यह गलत है।क्या दूध पीने से ब्रेस्ट साइज बढ़ता है?
नहीं, दूध पीने से ब्रेस्ट का साइज नहीं बढ़ता है। ब्रेस्ट का साइज हार्मोन, शरीर के फैट और जीन्स पर निर्भर करता है। दूध पीने या न पीने से कोई फर्क नहीं पड़ता।