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प्रीमेच्योर शिशु के लिए मुश्किल होता है ब्रेस्टफीड करना, डॉक्टर बता रहे हैं ब्रेस्टफीड कराने के 5 तरीके

How to Breastfeed Premature Baby: प्रीमेच्योर शिशु को ब्रेस्टफीड कराना बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन ऐसे शिशुओं को ब्रेस्टफीड कराने में कई दिक्कते आती हैं, जिसका समाधान डॉक्टर ने विस्तार से बताया है।
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प्रीमेच्योर शिशु के लिए मुश्किल होता है ब्रेस्टफीड करना, डॉक्टर बता रहे हैं ब्रेस्टफीड कराने के 5 तरीके

How to Breastfeed Premature in Hindi: अगर महिला की डिलीवरी 37 से 42 हफ्ते के बीच होती है, तो इसे सामान्य माना जाता है, लेकिन गर्भधारण के 37वें हफ्ते से पहले डिलीवरी होने पर प्रीटर्म शिशु या प्रीमेच्योर शिशु कहा जाता है। इन शिशुओं का वजन कम होता है, संक्रमण का खतरा, एनीमिया और पीलिया होने (health problems with premature babies) का खतरा बहुत ज्यादा रहता है। इसलिए प्रीमेच्योर शिशुओं को NICU में रखा जाता है, ताकि वह संक्रमण से बच सके और उसे सही पोषण मिल सके। सही पोषण के लिए ब्रेस्टफीड कराना बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन दिक्कत यह होती है कि ऐसे शिशुओं को ब्रेस्टफीड करने में बहुत दिक्कत होती है। अगर महिलाएं ब्रेस्टफीड कराने के लिए अलग-अलग तकनीकें इस्तेमाल करें, तो शिशु की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद रहती हैं। प्रीमेच्योर शिशु को बेस्टफीड किन तकनीकों से कराया जाए, इस बारे में हमने दिल्ली के क्लाउडनाइन अस्पताल के कंसल्टेंट बालरोग विशेषज्ञ और नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ. अभिषेक चोपड़ा (Dr Abhishek Chopra, Consultant Pediatrician and Neonatologist at Cloudnine Group of Hospitals, New Delhi) से बात की। आइये, सबसे पहले जानते हैं कि प्रीमेच्योर शिशु को ब्रेस्टफीड कराना क्यों मुश्किल होता है?

प्रीमेच्योर शिशु के लिए ब्रेस्टफीड करना क्यों मुश्किल होता है?

डॉ. अभिषेक चोपड़ा कहते हैं, “ प्रीमेच्योर शिशु जन्म के समय बहुत कमजोर होता है और उसके शरीर के कई अंग पूरी तरह से विकसित नहीं होते। ऐसे में शिशु को कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं।”

  1. ब्रेस्टफीड में चूसने की क्षमता कमजोर होना - प्रीमेच्योर शिशु के मुंह का विकास पूरा नहीं हो पाता। इस वजह से शिशु को चूसने और निगलने में दिक्कत होती है।
  2. एनर्जी कम होना - प्रीमेच्योर शिशु बहुत लंबे समय तक दूध नहीं पी पाते, क्योंकि एनर्जी कम होने के कारण वे जल्दी थक जाते हैं।
  3. पेट और पाचन समस्याएं – ऐसे शिशुओं का पाचन तंत्र कमजोर होने के कारण उन्हें दूध पचाने में दिक्कत हो सकती है।
  4. सांस लेने में परेशानी - कुछ मामलों में प्रीमेच्योर शिशुओं के फेफड़े पूरी तरह विकसित नहीं होते, जिससे उन्हें दूध पीते समय सांस लेने में परेशानी होती है।
  5. वजन कम होना - वजन कम होने कारण ऐसे शिशु शारीरिक रुप से कमजोर होते हैं, और इस वजह से वे स्तनपान करने में सक्षम नहीं होते।

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प्रीमेच्योर शिशु को ब्रेस्टफीड कराना क्यों महत्वपूर्ण है?

डॉ. अभिषेक कहते हैं कि प्रीमेच्योर शिशुओं के लिए मां का दूध अमृत के समान होता है, क्योंकि इससे शिशु को न सिर्फ शारीरिक विकास होने में मदद मिलती है, बल्कि शिशु में इंफेक्शन का खतरा भी कम होता है।

  1. इम्युनिटी बढ़ती है
  2. पाचन में मदद मिलती है
  3. बीमारियों से बचाव होता है
  4. मां के दूध में मौजूद DHA ब्रेन के विकास में मददगार होता है
  5. शिशु का वजन बढ़ने में सहायक
  6. मां और शिशु की बॉन्डिंग मजबूत होती है

प्रीमेच्योर शिशु को ब्रेस्टफीड कराने की कौन सी तकनीकें हैं?

डॉ. अभिषेक ने प्रीमेच्योर शिशुओं को स्तनपान कराने के 5 तरीके सुझाए हैं, जिसका इस्तेमाल करके मां अपने शिशु को सही तरीके से ब्रेस्टफीड करा सकती है।

1. दूध पंप करना (Breast Pumping)

अगर शिशु बहुत ज्यादा कमजोर है, तो उसके लिए ब्रेस्टफीड करना बहुत ज्यादा मुश्किल होता है। ऐसे में मां ब्रेस्ट को पंप करके दूध को किसी साफ-सुथरी बोतल, कप या फीडिंग ट्यूब में डालकर पिला सकती है। ब्रेस्ट को इलेक्ट्रिक या मैन्युअल पंप के द्वारा दूध निकाला जाता है।

2. ट्यूब फीडिंग (Tube Feeding Pipe)

प्रीमेच्योर शिशु कमजोर होने के कारण खुद दूध नहीं पी पाता, तो डॉक्टर एक पतली नली (Nasogastric Tube) से शिशु को दूध पिलाने की सलाह देते हैं। यह प्रक्रिया बिल्कुल सुरक्षित है। यह प्रक्रिया उस समय इस्तेमाल की जाती है, जब शिशु खुद दूध नहीं पीना चाहता,तो पतली नली के द्वारा दूध पेट तक पहुंचाया जाता है।

3. कंगारू केयर (Kangaroo Care)

जिस तरह से कंगारू अपने बच्चे को खुद से चिपकाकर रखता है, ठीक वैसे ही शिशु को मां की त्वचा के साथ लगाकर रखा जाता है। इसे स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट (skin to skin contact) कहते हैं। इसमें शिशु को गर्माहट मिलती है और इससे बच्चे को ब्रेस्टफीड में बढ़ावा मिलता है। स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट के कारण शिशु को ब्रेस्टफीड में मदद मिलती है।

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4. कप फीडिंग (Cup Feeding)

अगर शिशु को बोतल से दूध पीने में दिक्कत होती है, तो एक छोटे कम से मां का दूध पिलाया जा सकता है। वैसे यह बोतल के मुकाबले अधिक सुरक्षित है। इससे शिशु को स्तनपान करने में भी मदद मिलती है।

5. फिंगर फीडिंग (Finger Feeding)

इसमें प्रक्रिया में मां या उनके साथ के परिवार के लोग एक साफ उंगली को शिशु के मुंह में डालकर, साथ ही दूध से भरी सिरिंज या ट्यूब को भी शिशु को मुंह में डाल देते हैं। इससे बच्चे को चूसने और निगलने की प्रैक्टिस होती है।

अगर शिशु ब्रेस्टफीड न कर पाएं, तो मां को क्या करना चाहिए?

डॉ. अभिषेक चोपड़ा ने कुछ सुझाव दिए हैं, जिनका ध्यान रखकर प्रीमेच्योर शिशु की अच्छे से देखभाल की जा सकती है।

  1. मां को धीरज बनाकर रखना चाहिए। शिशु को धीरे-धीरे चूसने और निगलने की क्षमता विकसित होती है।
  2. अगर शिशु नियमित रूप से दूध नहीं पी रहा, तो हर 2-3 घंटे में दूध पंप करते रहना चाहिए ताकि दूध की आपूर्ति बनी रहे।
  3. ऐसे समय में डॉक्टर और लैक्टेशन कंसल्टेंट से सलाह लें।
  4. मां को बैलेंस डाइट लेनी चाहिए।
  5. मां को स्ट्रेस कम लेना चाहिए, ताकि ब्रेस्ट में दूध बनता रहे।

डॉ. अभिषेक कहते हैं कि प्रीमेच्योर शिशु के लिए ब्रेस्टफीडिंग आसान नहीं होती, लेकिन सही तरीके और धीरज के साथ शिशु के लिए इसे आसान बनाया जा सकता है। इसके लिए नियमित डॉक्टर की सलाह लेते रहना चाहिए ताकि शिशु का सही विकास हो सके।

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