विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, करीब 15 मिलियन बच्चे समय से पहले जन्म लेते हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। समय से पहले जन्म के कारण कुछ जटिलताएं भी जन्म लेती हैं जो पांच साल से कम के बच्चों की मौत का कारण बनती हैं। इस तरह के मामलों से बचाव के लिए स्तनपान कराना प्रीमैच्योर बेबी की अनेक बीमारियों से रक्षा कर सकता है। ऐसे में मां का दूध बेहद महत्वपूर्ण होता है। अगर बच्चे का जन्म समय से पहले हुआ है और वह मां का दूध पीता है तथा पचा लेता है तो इससे एनईसी (गट गैंग्रीन) संक्रमण फैलने की आशंका कम हो जाती है। बच्चा जल्दी तंदरुस्त हो जाता है। पढ़ते हैं आगे...
प्रीमैच्योर बेबी को स्तन पान कराना क्यों है मुश्किल?
गर्भधारण के 37 हफ्ते पूरे होने से पहले जन्मे बच्चे को प्रीमैच्योर बेबी माना जाता है। ऐसे बच्चों को उपवर्ग के आधर पर देखा जाए तो-
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- तय समय से बहुत ज्यादा पहले - एक्सट्रीमली प्रीटर्म (वे बच्चे, जिनका जन्म 28 हफ्ते से कम में हो)
- तय समय से कुछ पहले – वेरी प्रीटर्म(जिनका जन्म 28 से 32 हफ्ते में हुआ हो)
- तय समय से थोड़ा पहले – मॉडरेट टू लेट प्रीटर्म (जिनका जन्म 32 से 37 हफ्ते में हुआ हो)
प्रीमैच्योर बेबी खासकर वो जो 33 हफ्ते से कम के हों, इतने मजबूत नहीं होते हैं कि स्तनपान से पोषण प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं। वे दूध खींचने, निगलने और सांस लेने का काम सब एक साथ कर नहीं कर सकते हैं। कमजोर पकड़ के कारण वे न तो स्तन को ठीक से पकड़ पाते हैं ना फीड कर पाते हैं। प्रीमैच्योर बेबी कम दूध पी पाते हैं, ऐसे में उल्टी, अपच आदि की भी आशंका रहती ही है। इसलिए प्रीमैच्योर बेबी को दूध पिलाने वाली मांओं अगर अपनी दूध किसी और माध्यम से पिलाएं तो बच्चे ज्यादा पी पाएंगे। दूध पीने, निगलने जैसी प्रक्रिया 34 हफ्ते बाद ही बच्चे ठीक से कर पाते हैं। ऐसे बच्चे सीधे स्तनपान कर सकते हैं।
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प्रीमैच्योर बेबी को स्तनपान कराने से पहले ध्यान रखें ये बातें-
मां की भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक स्थिरता :
समय पूर्व प्रसव का कोई अनुमान पहले नहीं लगाया जा सकता। हर मां और डॉक्टर चाहते है कि बच्चा 37 हफ्ते गर्भ में रहे। ऐसे में समय पूर्व अचानक प्रसव होने से मां को मनोवैज्ञानिक तनाव होना स्वाभाविक है। इससे मां को अस्थिरता का भी सामना करना पड़ता है। यही नहीं, मां के लिए प्रीमैच्योर बेबी को संभालना भी मुश्किल होता है। प्रसवपूर्व अच्छी काउंसलिंग और सामाजिक सहायता से इस समस्या से निपटा जा सकता है। क्योंकि स्तन में दूध बनने का सीधा संबंध मां के भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं से है। इसलिए काउंसलर की मदद लेना एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
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हर दो घंटे में दूध देना जरूरी :
बच्चे के जन्म के तुरंत बाद मां के लिए यह जरूरी है कि स्तन का दूध निकलना शुरू हो जाए। यह काम जितनी जल्दी शुरू किया जाए उतना अच्छा है। और यह जल्दी प्रसव या जन्म के बाद घंटे भर के अंदर होना चाहिए। इसके बाद हर दो-चार घंटे पर बच्चे को दूध देना जरूरी है। बच्चा अगर 34 हफ्ते के बाद पैदा हुआ हो तो सीधे स्तन से दूध पी सकता है और दूध पीने के बाद डकार लेता है।
(ये लेख डॉ. प्रशांत गौडा, प्रमुख कंसलटेंट पीडियाट्रिशियन और नोनटोलॉजिस्ट, मदरहुड हॉस्पिटल, सूरजपुर बैंगलोर से बातचीच पर आधारित है।)
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