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World Breastfeeding Week: नेहा कामदार ने ब्रेस्ट मिल्क न बनने की मुश्किलों को अपनी पॉजिटिव सोच के साथ दूर किया

World Breastfeeding Week के मौके पर हम लेकर आए हैं नेहा कामदार की सच्ची कहानी, जिन्होंने ब्रेस्टफीड की तकलीफों पर कैसे जीत पाई।  
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World Breastfeeding Week: नेहा कामदार ने ब्रेस्ट मिल्क न बनने की मुश्किलों को अपनी पॉजिटिव सोच के साथ दूर किया


मेरी उम्र 42 साल की थी, जब मैं प्रेग्नेंट हुई और इसी वजह से  मुझे अपनी दूसरी प्रेग्नेंसी में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। प्रेग्नेंसी की ये मुश्किलें मेरे लिए सब छूमंतर हो गई, जब मैंने 18 मार्च 2024 को अपने बेटे निर्वाण की प्यारी सी छोटी-छोटी आंखों में चमक देखी। मेरी डिलीवरी सर्जरी से हुई थी और इसी दर्द के कारण मैं शुरूआती तीन दिन अपने बेटे को ब्रेस्टफीड नहीं करवा पाई थी। वह पहले तीन दिन फॉर्मूला मिल्क पर रहा। इसके बाद मैंने धीरे-धीरे उसे ब्रेस्टफीड कराने की कोशिश की पर बेटा पूरी तरह मेरे दूध पर निर्भर न हो सका।

हालांकि ये मेरा दूसरा बच्चा है, इसके बावजूद मुझे ब्रेस्टफीड के हर मोड़ पर कुछ न कुछ परेशानियां आती ही रही। मेरे बच्चे का वजन सिर्फ 2.9 किलो था और दस दिन के अंदर उसका वजन करीब 1 किलो कम हो गया। डॉक्टर्स ने मुझे खासतौर पर हिदायत दी कि बच्चे का वजन बढ़ाने के लिए ब्रेस्टफीड कराओ और बाहर का दूध देना बिल्कुल बंद कर दो।

दूसरा सफर रहा मुश्किलों भरा

डॉक्टर की सलाह पर मैंने फिर से ब्रेस्टफीड देना शुरू किया लेकिन मेरा दूध बच्चे के लिए काफी नहीं था। इसलिए मैंने उसे फॉर्मूला मिल्क एक बार दिन में और एक बार रात में देना शुरू किया। मैं इस दौरान डिलीवरी के बाद डिप्रेशन से भी जूझ रही थी। ऐसे में ब्रेस्ट मिल्क पूरा न आना और लोगों की सलाह मेरे इस डिप्रेशन को बढ़ा रही थी।

मैं अपनी उम्र और सेहत से जुड़ी समस्याओं को इसका जिम्मेदार मान रही थी और ये सोचकर मैं काफी ज्यादा परेशान हो रही थी।

इसके साथ-साथ मुझे ये भी पता था कि परेशान होकर ये समस्या नहीं सुलझ सकती, तो मैंने डॉक्टर के कहने पर सतावरेक्स पाउडर और लेपटाडिन टैब्लेट लेना शुरू किया, ताकि मेरा ब्रेस्ट मिल्क ज्यादा बन सके। इसके अलावा घरेलू उपाय करने से भी मैं पीछे नहीं हटी। मैंने अदरक और नारियल का पाउडर भी लिया। मुझे पूरा विश्वास था कि अब मुझे ब्रेस्ट फीड कराने में दिक्कत नहीं आएगी। लेकिन जब एक दिन मैंने पंप करके दूध निकाला तो सिर्फ 20 मिली मुश्किल से निकला। ये देखकर मेरे आंसू नहीं थम रहे थे और मेरे निप्पल में भी सूजन आ गई थी। जब भी निर्वाण ब्रेस्टफीड करने की कोशिश करता, तो मेरे निप्पल में दर्द होता। 

ये दिन मेरे लिए काफी मुश्किलों भरे रहे पर मैंने पॉजिटिव सोचना शुरू किया कि इन सबका मेरी उम्र से कोई लेना देना नहीं है बल्कि भगवान जो भी करेगा, अच्छा करेगा। इसी सोच के साथ मैंने आगे के बदलाव किए। 

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फिर बेटे की डाइट में किया बदलाव

अब ब्रेस्ट मिल्क बेटे को पूरा मिल नहीं रहा था, तो मैंने उसे फिर से दिन में दो बार फॉर्मूला मिल्क देने की सोची। दो अलग-अलग तरह के दूध से निर्वाण को दस्त लग गए और फिर मैंने सोच ही लिया कि अब मैं सिर्फ और सिर्फ ब्रेस्ट मिल्क ही दूंगी। 

मुझे लगता है कि जब मां अपने मन में कुछ सोच लें तो फिर दुनिया की कोई ताकत उसे नहीं रोक सकती और मेरे साथ भी कुछ ऐसा हुआ। जब मैंने ये सोच लिया कि अब मेरा बेटा सिर्फ ब्रेस्ट मिल्क पर ही रहेगा, तो शायद भगवान ने भी मेरा साथ दिया और ये सफर काफी आसान लगने लगा।

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आखिरकार मां की हुई जीत

धीरज और लगातार कोशिशों के बाद अगले 20-25 दिनों में मेरा बेटा पूरी तरह मेरे फीड पर निर्भर हो गया। मैंने अपने डॉक्टर से भी सलाह ली कि क्या उसका पेट भर रहा है या नहीं, तो डॉक्टर ने बताया कि बच्चा सेहतमंद है और उसे बाहर के किसी सप्लीमेंट की जरूरत नहीं है। 

हालांकि पंप के द्वारा मैं अतिरिक्त दूध नहीं स्टोर कर पाती हूं, जो मैं अपने पहले बेटे के दौरान करती थी। अब मुझे हर दो घंटे बाद अपने बच्चे को दूध पिलाना ही होता है, इसलिए मेरे लिए कहीं बाहर अकेले जाना मुश्किल हो जाता है। अब मेरा बेटा निर्वाण 4 महीने का हो चुका है और मुझे लगता है कि इस दर्द और संघर्ष ने मेरा अपने बेटे के साथ बॉन्ड और अधिक मजबूत कर दिया है। बेटे के मासूम प्यार ने मेरा सारा दर्द भुला दिया है। 

 

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