IVF Success Story : हर महिला जीवन में एक बार मां बनने का सपना जरूर देखती है। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए वह हर मुश्किल पार करने को भी तैयार होती है। मां बनने के रास्ते में चाहे शारीरिक या मानसिक दिक्कत आए, उसे कोई परवाह नहीं होती। बस उसकी एक ही इच्छा होती है कि घर में नन्हें से बच्चे की किलकारियां गूंजे। कुछ ऐसा ही सपना मीना चौरासिया भी देखती थी। अपने मां बनने के सफर में आने वाली हर परेशानी को वो हंसकर झेल रही थी लेकिन उन्हें नहीं पता था कि मां बनने की ये जर्नी में दोनों पति-पत्नी को कई बाधाएं आने वाली है। इस लेख में हम मीना और उनके पति सचिन चौरसिया के पेरेंट्स बनने के सफर को जानेंगे।
लोगों के मन में आईवीएफ को लेकर कई तरह के सवाल घूमते हैं। इन्हीं सवालों को ध्यान में रखते हुए ऑनलीमायहेल्थ ने Khushkhabri with IVF नाम से एक स्पेशल सीरीज शुरू की है, जिसमें आपको आईवीएफ से जुड़ी अहम जानकारियां मिलेगी। साथ ही, कुछ दपंतियों की सच्ची कहानियां आपको बताएंगे, जिन्होंने आईवीएफ के प्रोसेस को अपनाया है। आज इस सीरीज में नोएडा के क्लाउडनाइन ग्रुप ऑफ होस्पिटल्स के फर्टिलटी विभाग की डायरेक्टर डॉ. पारूल अग्रवाल की मदद से मीना चौरासिया के मां बनने के संघर्ष की कहानी आपके साथ शेयर कर रहे हैं।
मीना क्यों नहीं मां बन पा रही थी?
जैसे हर दंपति की चाह होती है कि शादी के बाद उनके घर भी बच्चे का जन्म हो और वह एक सेहतमंद बच्चे के पेरेंट्स बनें। वैसे ही मीना और सचिन चौरसिया ने शादी के बाद पेरेंट्स बनने के सफर की शुरूआत की। लेकिन कई कोशिशों के बाद भी मीना प्रेग्नेंट नहीं हो पा रही थी। इसी बीच परिवार का प्रेशर भी बढ़ता जा रहा था कि मीना आखिर क्यों मां नहीं बन पा रही थी। दोनों ही पति-पत्नी काफी निराश हो रहे थे क्योंकि वह और लोगों की तरह प्राकृतिक रूप से पेरेंट्स नहीं बन पा रहे थे।
धीरे-धीरे समाज में भी लोगों ने उनसे मां न बन पाने का कारण पूछना शुरू कर दिया। मीना जब भी किसी फंक्शन में जाती तो यही सवाल होता कि वह कब मां बनेगी। इससे सचिन और मीना को डिप्रेशन होने लगा। मेंटल स्ट्रैस लगातार बढ़ता जा रहा था। आखिरकार जब मीना नेचुरली प्रेग्नेंट नहीं हो पाई, तब वह स्त्रीरोग विशेषज्ञ से मिली। कई तरह की जांचों के बाद पता चला कि ओवरी में ब्लॉकेज होने के कारण पर्याप्त मात्रा में अंडे नहीं बन पा रहे थे। इसी वजह से मीना को इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझना पड़ रहा था।
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दो बार फेल हुआ आईवीएफ
मीना और सचिन को जब ये पता चला कि वह इनफर्टिलटी की वजह से अब नेचुरली मां नहीं बन पाएंगी, तो उन्होंने आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) के जरिए मां बनने का फैसला किया। दोनों एक आईवीएफ विशेषज्ञ से मिले और इस तकनीक का इस्तेमाल किया। बदकिस्मती से उनका आईवीएफ फेल हो गया। हालांकि आईवीएफ फेल होने के बाद दोनों काफी हताश हो गए थे लेकिन दोनों ने एक बार फिर से कोशिश करने की सोची।
पति-पत्नी एक बार फिर आईवीएफ के प्रोसेस से गुजरे लेकिन पिछली बार की तरह इस बार फिर ये फेल हो गया। दूसरी बार आईवीएफ फेल होने के बाद मीना और सचिन बहुत ज्यादा परेशान हो गए। उनकी पेरेंट्स बनने की ये जर्नी बहुत ही ज्यादा संघर्षभरी हो गई। दोनों ने ही सभी से मिलना-जुलना बंद कर दिया और खुद को अकेला कर लिया ताकि लोग उनसे कोई सवाल न करें। दोनों की हताशा मानसिक रूप से उन्हें परेशान करने लगी थी और इसका असर उनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर भी पड़ने लगा था।
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नहीं मानी हार
सचिन और मीना ने दूसरी बार आईवीएफ फेल होने के बाद एक बार और कोशिश करने की सोची। इस बार वह किसी ऐसे डॉक्टर से मिलना चाहते थे, जो उनकी हर समस्या को समझे और फिर इलाज करें। इसी कोशिश में उनकी मुलाकात नोएडा के क्लाउडनाइन ग्रुप ऑफ होस्पिटल्स के फर्टिलटी विभाग की डायरेक्टर डॉ. पारूल अग्रवाल से हुई। उन्होंने दोनों पति-पत्नी को ब्लॉकेज के बारे में विस्तार से समझाया और आईवीएफ तकनीक के जरिए मीना कैसे प्रेग्नेंट हो सकती है। जब दोनों को पूरी तसल्ली हो गई, तो फिर डॉ. पारूल ने प्रक्रिया शुरू की।
काउंसिलिंग से मेंटल स्ट्रेस हुआ कम
डॉ. पारूल ने बताया कि सचिन और मीना दोनों ही मानसिक रूप से काफी स्ट्रेस में थे। इसलिए मैंने उनके लिए ऐसा सपोर्टिव माहौल बनाया ताकि हमारे साथ खुलकर बात कर सकें। उनके मन में जो अनिश्चितता और अकेलेपन आ गया है, उसे कम किया जाए। साथ ही उन्हें सेल्फ केयर के लिए मोटिवेट किया। इससे उन दोनों में पॉजिटिविटी आ सके। हमने ये भी सुनिश्चित किया कि पूरी जर्नी में उनके लिए जो भी चुनौतियां आए, उसके लिए हमारी तरफ से पूरा सपोर्ट मिले।
डॉ. पारूल ने बताया कि सपोर्टिव माहौल के कारण ही मीना पहली बार में ही कंसीव कर गई। मीना-सचिन ने हम पर विश्वास किया और खुद को पूरी तरह से मोटिवेट रखा। इनकी कहानी उन सभी कपल्स के लिए प्रेरणा है, जो सफल प्रेग्नेंसी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
फिर हुआ सपना पूरा
वैसे तो मीना की ये तीसरा आईवीएफ था, लेकिन डॉ. पारूल के इलाज में मीना पहली बार में ही कंसीव करके मां बनने के सपने को पूरा कर पाई और सचिन-मीना के घर साल 2020 में किलकारियां गूंजी। मीना ने बताया कि जब उनकी सुरक्षित डिलिवरी हो गई और बच्चा उनकी गोद में आया, तो हम दोनों बहुत ज्यादा खुश थे। हमारे चेहरे पर संतुष्टि का भाव था। हमारी जिंदगी में जो बदलाव आया, उसके लिए हम दोनों ही भगवान का शुक्रिया करते हैं। जीवन के इस नए अध्याय का हम कई सालों से बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, जो अब शुरू हो गया है।
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