Khushkhabri with IVF: आज के समय बदलती लाइफस्टाइल का असर हमारे स्वास्थ्य पर देखने को मिलता है। खराब होती दिनचर्या की वजह से कुछ लोग मोटापे से परेशान हैं, तो कुछ डायबिटीज और ब्लड प्रेशर से, जबकि कई लोगों को प्रजनन क्षमता से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। खानपान की अनियमित आदतें, पौष्टिक आहार न लेना, स्ट्रेस में रहना, सही नींद न लेना और शारीरिक गतिविधियों में कमी के चलते लोग कई तरह की बीमारियों का शिकार होने लगे हैं। यही वजह है कि आज के समय में लोगों को फर्टिलिटी से जुड़ी समस्याओं (Fertility Problem) का सामना भी करना पड़ रहा है। हालांकि, इन समस्याओं को दूर करने के लिए मेडिकल साइंस ने आईवीएफ (IVF Treatment) जैसी उन्नत तकनीक की खोज भी की है। लेकिन, इस ट्रीटमेंट में कई तरह की सावधानियां बरतने की आवश्यकता होती है। यह ट्रीटमेंट लोगों को में संतान सुख प्रदान करने का एक नायाब तरीका है। आईवीएफ को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल रहते हैं? जैसे कि क्या मोटापा आईवीएफ प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है या पीरियड्स के कितने दिनों बाद आईवीएफ करना चाहिए, आदि।
हर साल 25 जुलाई को World IVF Day मनाया जाता है। अक्सर लोगों के मन में आईवीएफ से जुड़े सैकड़ों सवाल होते हैं। इन्हीं सवालों को ध्यान में रखते हुए OnlymyHealth एक कैंपेन (Khushkhabri with IVF) चला रहा है। इस कैंपने के तहत आपको अलग-अलग सवालों के जवाब जानने को मिलेंगे। इस लेख में कौंशाबी के यशोदा सुपरस्पेशलिटी अस्पताल की कंसलटेंट इंफर्टिलिटी एंड आईवीएफ डॉ. स्नेहा मिश्रा से जानते हैं कि पीरियड्स के कितने दिनों के बाद IVF ट्रीटमेंट शुरु किया जा सकता है।
पीरियड्स के कितने दिनों बाद आईवीएफ ट्रीटमेंट शुरू किया जाता है?
डॉक्टर के अनुसार आईवीएफ ट्रीटमेंट की प्रक्रिया महिला के पीरियड्स के बाद से ही शुरु हो जाती है। दरअसल, महिलाओं को कुछ विशेष तरह की दवाएं दी जाती हैं, जो उनके ओवरी द्वारा एग्स निकलने की प्रक्रिया को उत्तेजित करती हैं। यह प्रक्रिया पीरियड्स के बाद से ही शुरू हो जाती है। इस समय महिलाओं के शरीर में होने वाले हार्मोन आईवीएफ की सफलता दर को प्रभावित करते हैं।
पीरियड्स और बेसलाइन टेस्ट
आईवीएफ ट्रीटमेंट अक्सर पीरियड्स की शुरुआत के साथ शुरू होता है। पीरियड्स के पहले या दूसरे दिन, बेसलाइन टेस्ट किए जाते हैं। इनमें आमतौर पर फॉलिकल-स्टिम्युलेटिंग हार्मोन (FSH), ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (LH) और एस्ट्राडियोल जैसे हार्मोन के स्तर की जांच के लिए किया जाता है। इसमें महिला का ब्लड टेस्ट किया जाता है। जबकि, ओवरी और गर्भाशय की परत की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड स्कैन भी किया जाता है।
आईवीएफ से पहले ये बेसलाइन टेस्ट बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इससे डॉक्टर को महिला की वर्तमान हार्मोनल स्थिति और ओवरी रिजर्वड के बारे में कंप्लीट जानकारी मिलती है।
पीरियड्स के बाद आईवीएफ के मुख्य चरण
- पीरियड्स के 2 से 5 दिनों के अंदर ओवरियन स्टीम्यूशन फेस होता है। इसमें ओवरी को एग्स के लिए स्टीम्यूलेट किया जाता है।
- इसके बाद एचसीजी का इंजेक्शन देकर मैच्योर एग्स निर्मित किया जाता है।
- इसके बाद एग्स को महिला के गर्भाशय से निकालकर फर्टाइल किया जाता है।
- जब फर्टाइल एग्स से एंब्रियो बनने की प्रक्रिया शुरु होती है तो इन एग्स को दोबारा गर्भाशय में ट्रांसफर कर दिया जाता है।
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ये पूरी प्रक्रिया पीरियड्स के बाद से ही शुरु हीती है। यह ट्रीटमेंट दो से तीन सप्ताह तक चलता है। इसके अलावा, महिला की मौजूदा स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर ट्रीटमेंट का समय कम या ज्यादा हो सकता है। IVF Treatment के दौरान महिला को नियमित जांच और कई तरह की सावधानियां बरतने की सलाह दी जाती है।