Importance of Milk: हम भारतीयों की आदत है कि रोजाना सुबह नाश्ते में दूध चाहिए या फिर रात को दूध पीकर ही सोना होता है। दरअसल, हमें बचपन से सिखाया जाता है कि दूध पीने से सेहत अच्छी रहती है, खासतौर से हड्डियां मजबूत रहती हैं। वैसे देखा जाए, तो इंसानों के अलावा और कोई भी प्राणी व्यस्क होने पर दूध नहीं पीता। ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पूरी उम्र दूध पीना जरूरी है। दूध पीने के क्या नुकसान हैं और क्यों व्यस्कों को इसकी जरूरत पड़ती है, इस बारे में हमने फरीदाबाद के सर्वोदय अस्पताल के इंटरवेशनल कार्डियोलॉजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट और यूनिट हेड डॉ. रंजन मोदी (Dr. Ranjan Modi, Senior Consultant & Head (Unit Il) - Interventional Cardiology, Sarvodaya Hospital, Faridabad) से बात की।
क्या वाकई में व्यस्क होने के बाद दूध पीने की जरूरत है?
इस बारे में डॉ. रंजन मोदी ने कहा,”इंसान ही धरती पर ऐसा अकेला प्राणी है, जो बड़ा होने पर भी दूध पीता है और वह भी दूसरे जानवरों का। दरअसल, दूध प्रेग्नेंसी के बाद कुछ समय तक मांओं में बनता है ताकि डाइजेशन पूरी तरह विकसित होने तक शिशु का सही तरीके से विकास हो सके। जब बच्चे मैच्योर हो जाते हैं और सॉलिड फूड लेने लगते हैं, तो दूध की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन इंसान ऐसा प्राणी है, जिसका डाइजेशन पूरी तरह से विकसित हो जाता है, इसके बावजूद वे दूध पीना नहीं छोड़ते। इससे कई लोगों को पेट से जुड़ी समस्याएं होने लगती हैं। इसलिए मैं लोगों को दूध पीने की सलाह नहीं देता।"
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दूध में एस्ट्रोजन की मात्रा ज्यादा होना
भारत में लोग ज्यादातर दूध प्रेग्नेंट गाय या भैंस से लेते हैं। उस दौरान गाय या भैंस में एस्ट्रोजन की मात्रा काफी ज्यादा होती है, क्योंकि इससे बछड़े के विकास में मदद मिलती है। लेकिन यही दूध जब इंसानों को मिलता है,तो उनमें एस्ट्रोजन की मात्रा काफी ज्यादा हो जाती हैं। डेयरी प्रोडेक्ट इस्तेमाल करने से पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन्स कम होने लगते हैं और इससे सीमन की क्वालिटी पर भी असर पड़ता है। महिलाओं में ज्यादा एस्ट्रोजन होने से प्यूबर्टी जल्दी हो जाती है और मेनोपॉज लेट हो सकती है। इससे कैंसर का रिस्क भी बढ़ सकता है। इसलिए दूध पीने की सलाह कम ही दी जाती है।
क्या दूध पचाना मुश्किल होता है?
दूध या दूध से बने प्रोडेक्ट्स में चीनी जैसा स्वाद लैक्टोज की वजह से आता है। इसे पचाने के लिए शरीर को लैक्टोज एंजाइम चाहिए होता है, जो दूध में मौजूद शुगर को डाइजेस्ट कर सके। शिशुओं में लैक्टोज एंजाइम काफी मात्रा में होता है, जो मां के दूध को पचाने में मदद करता है। लेकिन बड़े होने पर दुनियाभर के करीब 65 फीसदी लोगों में लैक्टोज को ब्रेक करने की क्षमता नहीं बचती। इसलिए वे लोग दूध को पचा नहीं पाते और उन्हें लैक्टोज इटॉलरेंस (lactose Intolerance) कहा जाता है। ऐसे लोगों को पेट दर्द, गैस, या डायरिया जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
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क्या दूध के अलावा कैल्शियम और प्रोटीन मिल सकता है?
दूध के अलावा भी कई तरीकों से कैल्शियम और प्रोटीन शरीर को मिल सकता है। अगर कोई लैक्टोज इंटॉलरेंस है, तो उन्हें अपनी डाइट में इसे शामिल करना चाहिए।
- हरी पत्तेदार सब्जियां
- सोया मिल्क
- बादाम या ओट्स मिल्क
- नट्स और बीज
- दालें
- कैल्शियम फोर्टिफाइड जूस और दही के विकल्प
- मछली और अंडे
निष्कर्ष
वैसे तो ये हर किसी की अपनी चॉइस होती है, लेकिन अगर किसी को दूध पचाने में दिक्कत होती है, तो अन्य विकल्पों को अपनाना बेहतर है। सेहत के लिहाज से दूध की बजाय डाइट में सॉलिड फूड लेना ज्यादा फायदेमंद हो सकता है। इसलिए लोगों को अपनी शरीर की जरूरत और डॉक्टर या न्यूट्रिशनिस्ट की सलाह लेकर ही दूध को डाइट में शामिल करना चाहिए।