उम्र बढ़ने के साथ हमारे शरीर में कई सारे बदलाव होते रहते हैं। पर उन बदलावों में सबसे आम है हमारी याददाश्त का कमजोर होना और हमारे सोचने की क्षमताओं में गिरावट। इन्हीं से जुड़ी हुई बीमारियां हैं अल्जाइमर और डिमेंशिया (dementia and alzheimer)। हम में से ज्यादातर लोग इन दोनों को एक ही बीमारी समझते हैं और मूल रूप से इसके लक्षणों में हम मेमोरी लॉस की ही गिनती करते हैं। जब कि ये दोनों बीमारी एक जैसी तो है पर एक नहीं है। दोनों में अंतर है और दोनों के कारण व लक्षण भी अलग-अलग हैं। हालांकि, इन दोनों के अंतर को समझना आसान नहीं है पर फिर भी आज हम इनके बीच के अंतर को समझने की कोशिश करेंगे। अल्जाइमर और डिमेंशिया का अंतर (difference between dementia and alzheimer) समझने के लिए हमने डॉ प्रवीण गुप्ता (Dr. Praveen Gupta), प्रिसंपल डायरेक्टर और हेड, न्यूरोलॉजी विभाग, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम से बात की।
डिमेंशिया क्या है-What is Dementia?
डिमेंशिया (Dementia) एक ऐसी बीमारी है, जिसमें कि समय के साथ व्यक्ति की स्मृति, संचार क्षमता और समग्र रोजमर्रा के काम प्रभावित होने लगते हैं। जैसे कि मेमोरी लॉस, भाषा, निर्णय लेने, व्यवहार करने और , समस्याओं के समाधान निकालने की क्षमताओं में कमी। यह एक पुरानी पर प्रगतिशील प्रकृति की बीमरी है यानी कि दो उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती जाती है। डिमेंशिया का प्रमुख कारण है ब्रेन डीजनरेशन (Brain Degeneration) यानी कि जिसमें मस्तिष्क क्षति न्यूरॉन्स या न्यूरोनल कनेक्शन के नुकसान हो जाता है। इसलिए डिमेंशिया का सबसे आम कारण मस्तिष्क में कोशिकाओं का नष्ट हो जाना। डॉ प्रवीण गुप्ता (Dr. Praveen Gupta) बताते हैं कि डिमेंशिया के कारण (Causes of Dementia) तो कई हैं पर उनमें आम हैं
- -ब्रेन डैमेज
- -स्ट्रोक
- -विटामिन की कमी से
- -ट्यूमर के कारण
डिमेंशिया के शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज करना आसान है, जो हल्के हो सकते हैं। यह अक्सर छोटी-छोटी चीजों को भूलने से शुरू होता है। उसके बाद डिमेंशिया से पीड़ित लोगों को समय का ध्यान रखने में परेशानी होती है और वे परिचित सेटिंग्स में अपना रास्ता खो देते हैं। जैसे-जैसे ये बढ़ता है, मेमोरी लॉस और भ्रम बढ़ता है। नाम और चेहरों को याद करना मुश्किल हो जाता है। व्यक्तिगत देखभाल एक समस्या बन जाती है। डिमेंशिया के स्पष्ट लक्षणों (Symptoms of Dementia) में बार-बार पूछताछ करना, स्वच्छता की कमी और खराब निर्णय लेना शामिल है। इसके अलावा आप डिमेंशिया से पीड़ित लोगों में कुछ अन्य बदलाव भी देख सकते हैं, जैसे कि
- -दिनचर्या में बदलाव स्वीकार न कर पाना
- -अल्पकालिक स्मृति (Short term memory) में परिवर्तन
- -मल्टीटास्किंग ना कर पाना
- -बातचीत करने में परेशानी
- -योजना बनाने या चीजों को व्यवस्थित करने में असमर्थता
- -मुश्किल कामों को ना कर पाना
- -हमेशा कंफ्यूज और विचलित महसूस करना
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अल्जाइमर क्या है-What is Alzheimer?
डॉ. प्रवीण गुप्ता बताते हैं कि अल्जाइमर डिमेंशिया (Alzheimer is a type of Dementia) का ही एक प्रकार है। अल्जाइमर मस्तिष्क की एक प्रगतिशील बीमारी है जो धीरे-धीरे स्मृति और संज्ञानात्मक कार्य में हानि का कारण बनती है। इसे आप स्लोली प्रोग्रेसिव डिमेंशिया कह सकते हैं। इसमें होता ये है कि इस दौरान हमारे ब्रेन में प्लॉक जमने लगता है। ये ब्रेन के सब्सटांस को डैमेज करते हैं और ट्रांसमीटिर्स को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे कोशिकाओं के बीच संबंध खो जाते हैं, और वे मरने लगते हैं। इससे मेमोरी कम करने लगती है। जिससे याददाश्त कमजोर होने लगती है, रोजमर्रा के कामों में परेशानी आ जाती है।
अल्जाइमर के लक्षणों (Symptoms of Alzheimer) की बात करें अल्जाइमर का सबसे आम प्रारंभिक लक्षण नई जानकारी को याद रखने में परेशानी है क्योंकि यह रोग आमतौर पर पहले सीखने से जुड़े मस्तिष्क के हिस्से को प्रभावित करता है। उसके बाद कुछ अन्य लक्षण नजर आ सकते हैं। जैसे कि
- -हाल की घटनाओं या बातचीत को याद रखने में कठिनाई
- -उदासीनता
- -डिप्रेशन
- -भटकाव महसूस करना
- -उलझन
- -व्यवहार में परिवर्तन
- - बोलने, निगलने या चलने में कठिनाई
- -पैसों की गिनती और गणित ना कर पाना
- -बातचीत करते समय सही शब्द खोजने में परेशानी
- -समय समय पर चीजों को गलत जगह पर रखना
- -पारिवारिक या सामाजिक दायित्वों में कोई दिलचस्पी नहीं महसूस करना
- -चिड़चिड़े हो जाना
अल्जाइमर के अलावा डिमेंशिया के कई प्रकार (Types of dementia) और भी हैं। जैसे कि
लेवी बॉडी डिमेंशिया (Lewy body dementia): यह अल्जाइमर रोग और पार्किंसन रोग से पीड़ित लोगों के मस्तिष्क में गुब्बारे जैसे गुच्छों के बनने के कारण होता है। लेवी बॉडी डिमेंशिया उपचार में ब्लड टेस्ट, ब्रेन स्कैनिंग के साथ-साथ दवाओं और चिकित्सा सिफारिशें शामिल हैं।
वस्कुलर डिमेंशिय (Vascular dementia) : इसमें ब्रेन में खून की कमी हो जाती है या फिर सही से खून नहीं पहुंच पा रहा होता है। ये मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति करने वाली वाहिका को नुकसान के कारण होता है। इसका एक बड़ा कारण स्ट्रोक है।
फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया (Frontotemporal dementia): यह डिमेंशिया का एक समूह है जो ज्यादातर बोलने की क्षमता, व्यक्तित्व और व्यवहार के मामले में नुकसान पहुंचाता है।
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डिमेंशिया और अल्जाइमर का इलाज क्या है ?
डिमेंशिया का इलाज (Treatment of Dementia)
इसके सटीक कारणों और प्रकारों जान कर ही किया जा सकता है। इसके लिए डॉ. प्रवीण गुप्ता बताते हैं कि हमें कई बार ब्रेन की एमआरआई (Brain MRI) करनी पड़ती है। उसके बाद हम
क्लीनिकल टेस्ट करते हैं और ब्लड टेस्ट भी लेते हैं। इस दौरान कई बार डिमेंशिया और अल्जाइमर के लिए कई उपचार ओवरलैप कर सकते हैं। वहीं बात अगर सिर्फ अल्जाइमर के इलाज की करें तो इसमें हम
- -उन दवाओं दो देते हैं जो कि न्यूरोट्रांसमीटर के फंक्शन को बेहतर बनाते हैं।
- -ट्यूमर अगर होता है तो, इसका इलाज किया जाता है।
- -स्ट्रोक के कारणों को जान कर इसका इलाज किया जाता है।
- -ब्रेन डैमेज के कारणों को जान कर इसका इलाज किया जाता है।
इसके अलावा डॉक्टर अक्सर पार्किंसंस रोग और एलबीडी के कारण होने वाले डिमेंशिया का इलाज कोलिनेस्टरेज़ इनहिबिटर के साथ करते हैं जिसका उपयोग वे अक्सर अल्जाइमर के इलाज के लिए भी करते हैं।वस्कुलर डिमेंशिय के लिए उपचार मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं को और नुकसान को रोकने और स्ट्रोक को रोकने पर केंद्रित होता है।
अल्जाइमर का इलाज (Treatment of Alzheimer)
अल्जाइमर का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है, लेकिन बीमारी के लक्षणों को कंट्रोल करने के लिए कुछ विकल्प हैं जैसे कि व्यवहार परिवर्तन के लिए दवाएं जैसे कि एंटीसाइकोटिक्स। मेमोरी लॉस की दवाएं। साथ ही कुछ वैकल्पिक उपचार जिनका उद्देश्य मस्तिष्क के कार्य या समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देना है, जैसे ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर फूड्स का सेवन, नींद में बदलाव के लिए दवाएं, अवसाद के लिए दवाएं, एक्सरसाइज और कुछ अलग से किए जाने वाले उपचार जो कि व्यवहार में बदलाव लाने में मदद करते हैं।
इस तरह आप डिमेंशिया और अल्जाइमर का अंतर समझ गए होंगे। पर जरूरी ये है कि आप इन दोनों से बचाव के कुछ उपाय करें। जैसे कि सबसे पहले तो धूम्रपान बंद करें। फिर शराब को कम करने की कोशिश करें। उसके बाद स्वस्थ और संतुलित आहार लें, जिसमें प्रतिदिन कम से कम 5 फल और सब्जियां शामिल हों। इसके अलावा ओमेगा -3 से भरपूर ब्रेन बूस्टर फूड्स को अपनी डाइट में शामिल करने की कोशिश करें। साथ ही रोजाना मध्यम-तीव्रता वाली एरोबिक गतिविधि जैसे साइकिल चलाना या तेज चलना जैसी गतिविधियों को करें। साथ ही कोशिश करें कि हर हफ्ते कम से कम 150 मिनट एक्सरसाइज जरूर करें।
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