Myths of COPD: फेफड़ों की बीमारी क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (Chronic Obstructive Pulmonary Disease – COPD) बहुत ही आम बीमारी है। इस बीमारी में फेफड़ों से हवा का प्रवाह रुक जाता है। इससे सांस लेने में कठिनाई होती है और धीरे-धीरे फेफड़े फंक्शन करना कम देते हैं। आमतौर पर लोग मानते हैं कि जो स्मोक करते हैं, उन्हें सीओपीडी होता है, या फिर यह बुजुर्गों की बीमारी है। लेकिन ऐसा नहीं है। अगर आंकड़ों को देखा जाए, तो WHO के अनुसार, सीपीओडी की वजह से साल 2021 में 3.5 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई है। दुनिया में मृत्यु होने का चौथा कारण है। इस बीमारी से जुड़े कई मिथकों की सच्चाई जानने के लिए हमने बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशयलिटी अस्पताल के चेस्ट और रेस्पिरेटरी डिसीज के प्रिंसीपल डायरेक्टर और एचओडी डॉ. संदीप नायर (Dr Sandeep Nayar, Principal Director and HOD, Chest and Respiratory Diseases at BLK-Max Super Speciality Hospital) से बात की। उन्होंने कई मिथको की सच्चाई हमें बताई।
मिथक: क्या COPD बहुत कम लोगों को होता है।
सच्चाई: डॉ. संदीप नायर कहते हैं, “यह सोचना बिल्कुल गलत है कि COPD कम लोगों को होता है। सीपीओडी दुनियाभर में फैली बीमारी है। दुनियाभर में लगातार बढ़ता प्रदूषण, धूल, धुआं और फैक्ट्रियों का निकलता केमिकल फेफड़ों की बीमारियों को बढ़ा रहा है। भारत में भी इसी वजह से यह बीमारी तेजी से फैल रही है क्योंकि भारत में भी प्रदूषण और केमिकल्स से लोग लगातार संपर्क में आ रहे हैं। साल 2018 में लैंसेट जनरल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, भारत में साल 2016 में 55.3 मिलियन लोग COPD से पीड़ित थे।
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मिथक: सिर्फ स्मोकर्स को ही COPD होता है।
सच्चाई: डॉ. संदीप ने बताया कि हालांकि COPD का बड़ा कारण स्मोकिंग है, लेकिन सिर्फ इसी की वजह से यह बीमारी नहीं होती। इस बीमारी होने की कई वजहें है। खासतौर पर भारत के परिपेक्ष्य में देखा जाए, तो गांव की महिलाएं लकड़ी जलाकर चूल्हे पर खाना बनाती हैं, उन्हें इस बीमारी का खतरा रहता है। इसलिए उनके चूल्हों को एलपीजी में बदला गया है। इसके अलावा, प्रदूषण, स्मॉग, गाड़ियों और फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं भी COPD बीमारी का बड़ा कारण है। जो लोग पेंट या केमिकल फैक्ट्री में का करते हैं या फिर कई रेयर जेनेटिक मामलें जैसेकि alpha-1 antitrypsin deficiency के कारण भी COPD हो सकता है।
मिथक: COPD सिर्फ बुजुर्गों को ही होता है।
सच्चाई: डॉ. संदीप कहते हैं, ”COPD की बीमारी आमतौर पर व्यस्कों को होती है। आमतौर पर देखा गया है कि यह बीमारी 40 साल की उम्र के बाद दिखाई देती है, इसलिए इसे बुजुर्गों की बीमारी कहना गलत होगा। जो लोग लंबे समय से स्मोकिंग कर रहे हैं, या फिर कोई यंग इंसान प्रदूषित वातावरण में काम कर रहा है, उसे 40-50 की उम्र में ही COPD के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इसके अलावा, बहुत ज्यादा स्ट्रेस में रहने वाले लोगों को भी COPD की समस्या हो जाती है। उम्र बढ़ने के साथ इसका खतरा बढ़ता है, लेकिन यह केवल बुजुर्गों की बीमारी नहीं है।”
मिथक: COPD सिर्फ फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है।
सच्चाई: डॉ. संदीप कहते हैं, “COPD फेफड़ों की बीमारी है, जिसमें स्मोक का असर सीधे फेफड़ों में जाता है लेकिन यह सिर्फ फेफड़ों को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि शरीर के अन्य अंगों पर भी असर डालता है। सीपीओडी के कारण शरीर में लगातार ऑक्सीजन की कमी (hypoxia) और सिस्टमिक इंफ्लेमेशन होने से हार्ट, दिमाग, मांसपेशियों, हड्डियों और किडनी को भी प्रभावित करता है।”
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मिथक: COPD रोगियों को कसरत करने की मनाही होती है।
सच्चाई: डॉ. संदीप ने बताया कि COPD में कसरत करने की कोई मनाही नहीं है, बल्कि इस बीमारी के इलाज में कसरत महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि कसरत बहुत ज्यादा इंटेंस या लंबे समय तक नहीं करनी चाहिए। इससे चोट लगने का डर रहता है। अगर COPD के रोगी सही तरीके से एक्सरसाइज करते हैं, तो इससे कई फायदे मिल सकते हैं। सांस फूलने की समस्या कम हो सकती है। शरीर को ऑक्सीजन मिलती है और मांसपेशियां मजबूत होती है। लेकिन सीओपीडी के मरीजों को कसरत एक्सपर्ट की निगरानी में करनी चाहिए ताकि किसी तरह की कोई परेशानी न हो।
मिथक: COPD और अस्थमा एक जैसे ही है।
सच्चाई: डॉ. संदीप कहते हैं, “COPD और अस्थमा एक ही तरह की बीमारियां नहीं है। अगर फैमिली हिस्ट्री हो, तो जन्म से अस्थमा होने के चांस काफी ज्यादा बढ़ जाते हैं। यह बीमारी बचपन से ही शुरू हो सकती है। यह बीमारी एलर्जी से जुड़ी होती है। अस्थमा के रोगियों को अगर साफ वातावरण में भी तापमान बदल जाए या फिर पोलन (Pollens) आ जाए, तो भी अस्थमा का अटैक हो सकता है। अगर अस्थमा का इलाज सही तरीके से हो, तो इस बीमारी को रिवर्सिबल किया जा सकता है। इसके उलट, COPD की बीमारी व्यस्कों में ज्यादा मिलती है। जो लोग लंबे समय तक स्मोक करते हैं, या फिर धूल, धुएं में रहते हैं, उन्हें यह बीमारी होने का रिस्क बढ़ जाता है। यह बीमारी पूरी तरह से ठीक नहीं होती। इसलिए इन दोनों का इलाज का तरीका भी अलग-अलग है।”
मिथक: अगर सांस फूलती है, तो क्या यह सिर्फ COPD होने का लक्षण है।
सच्चाई: डॉ. संदीप नायर के अनुसार, सांस फूलना सिर्फ COPD की बीमारी में नहीं है, बल्कि यह लक्षण अस्थमा या लंग से जुड़ी कोई गंभीर बीमारी की वजह से भी हो सकता है। अगर लंग्स में मौजूद फ्लूड सांस की नली में ब्लॉकेज बनता है, तो भी सांस लेने में मुश्किल हो सकती है। कोई ट्यूमर भी सांस फूलने का कारण बन सकता है। किसी को हार्ट की बीमारी या हार्ट फेल्योर होने पर भी सांस फूल सकता है। मोटापा या एंग्जायटी भी सांस फूलने का कारण हो सकते हैं। इसलिए अगर किसी की सांस फूलने की समस्या होती है, तो उसे डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।