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किस उम्र में बच्चों को डायपर पहनना बंद कर देना चाहिए, जानें डॉक्टर से

When to Stop Wear Diapers: बच्चों को डायपर छुड़वाने की सही उम्र क्या है और इसकी ट्रेनिंग कैसे दी जाए, जानें इस लेख में-

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किस उम्र में बच्चों को डायपर पहनना बंद कर देना चाहिए, जानें डॉक्टर से


When to Stop Wear Diapers: शिशु के जन्म के बाद डायपर पहनना पैरेंट्स के लिए बहुत सहूलयित का काम हो जाता है। इससे शिशु गीलेपन से बच जाता है और बार-बार सफाई की टेंशन नहीं रहती। ट्रैवल में भी शिशु और पैरेंट्स दोनों के लिए आसान होता है। लेकिन जब शिशु बड़ा होने लगता है, तो वह मानसिक और शारीरिक रूप से भी बड़ा होने लगता है। उसे समझ आने लगती है कि उसे कब पेशाब या पॉटी आ रही है। ऐसे समय में उसे टॉयलेट ट्रेनिंग देने की खास जरूरत होती है ताकि उसे समझ आ सके कि उस कब टॉयलेट जाना है। इस तरह शिशु को डायपर पहनना भी बंद हो जाता है। कई बार पैरेंट्स की शिकायत रहती है कि वे कब बच्चे को डायपर पहनना बंद करें। इस बारे में हमने गुरुग्राम के क्लाउडनाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के बालरोग विशेषज्ञ विभाग के डायरेक्टर डॉ. गोपाल अग्रवाल ( Dr. Gopal Agarwal, Director – Department of Neonatology, Cloudnine Group of Hospitals, Gurgaon) से बात की।

किस उम्र में बच्चों को डायपर पहनना बंद करना चाहिए?

इस बारे में डॉ. गोपाल अग्रवाल का कहना हैं, “वैसे तो बच्चों को 18 महीने से लेकर 3 साल की उम्र तक टॉयलेट ट्रेनिंग देनी चाहिए, लेकिन हर बच्चे का विकास अलग होता है, इसलिए उम्र में थोड़ा-बहुत बदलाव हो सकता है। मैं हमेशा पैरेंट्स को 2 से 2.5 साल की उम्र के बीच टॉयलेट ट्रेनिंग शुरू करने की सलाह देता हूं। इस समय में बच्चे के बिहेवियर में भी बदलाव होते हैं, जो बता देते हैं कि अब उसे डायपर की जरूरत नहीं है। इस उम्र के बाद बच्चों को डायपर नहीं पहनने चाहिए।”

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डायपर ज्यादा उम्र तक पहनाने के नुकसान

डॉ. गोपाल अग्रवाल कहते हैं, “अगर बच्चे को बहुत ज्यादा उम्र तक डायपर पहनाया जाता है, तो उसे फंगल इंफेक्शन या यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन होने का खतरा हो सकता है। इसलिए ढाई साल के बाद बच्चों को डायपर की आदत छुड़वानी चाहिए। अगर पैरेंट्स बच्चे को बहुत ज्यादा उम्र तक डायपर पहनाते रहते हैं, तो बच्चे को टॉयलेट ट्रेनिंग देना भी मुश्किल हो जाता है। डायपर पहनाने के पैरेंट्स को कई फायदे लगते हैं, लेकिन इसके नुकसान बहुत ज्यादा होते हैं। इसलिए इस उम्र तक बच्चों को डायपर पहनना बिल्कुल बंद कर देना चाहिए।”

बच्चों को टॉयलेट ट्रेनिंग देने के तरीके

डॉ. गोपाल अग्रवाल ने बताया कि पैरेंट्स शिशु को टॉयलेट ट्रेनिंग देने के ये तरीके अपना सकते हैं।

समय सही चुनें

जब पैरेंट्स को लगे कि अब बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार है, तभी ट्रेनिंग शुरू करनी चाहिए। बच्चे के साथ जबरदस्ती न करें, क्योंकि दबाव में बच्चा कभी भी ट्रेनिंग नहीं ले सकता। बच्चा जब डायपर में गीला होने पर खुद को असहज महसूस करने लगे, तो पैरेंट्स को ट्रेनिंग देना शुरू कर देना चाहिए।

पॉट्टी चेयर का इस्तेमाल करें

अक्सर बच्चे टॉयलेट ट्रेनिंग इसलिए भी नहीं ले पाते, क्योंकि उन्हें टॉयलेट से डर लगता है। इसलिए पैरेंट्स को मार्किट से रंग-बिरंगे पॉट्टी चेयर लाने चाहिए। इस तरह से वह खुद को सहज और सेफ महसूस करने लगता है और उसे समझ आता है कि इस तरह मुझे पॉटी करनी है।

एक समय फॉलो करें

पैरेंट्स को कोशिश करनी चाहिए कि बच्चे को दिन में एक समय पर ही पॉट्टी चेयर पर बिठाने की आदत डालें। जैसे सुबह उठते ही या सुबह दूध पीने के बाद पॉटी करने के लिए उत्साहित करें। इससे बच्चे का रूटीन बनेगा और उसका शरीर भी इसी अनुसार ढल जाएगा।

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बच्चे का हौसला बढ़ाएं

जब बच्चा सही समय पर पॉटी करे और पॉट्टी चेयर में बैठकर करे, तो पैरेंट्स को हौसला बढ़ाना चाहिए। इससे बच्चे को प्रोत्साहन मिलता है। पैरेंट्स चाहें तो बच्चे को कोई छोटा रिवॉर्ड भी दे सकते हैं। इससे बच्चा प्रोत्साहित होगा और उसका भी आत्मविश्वास बढ़ेगा।

धीरज रखें

जब भी पैरेंट्स बच्चे को पॉटी की ट्रेनिंग देते हैं, तो शुरूआत में वे थोड़ा असहज महसूस करते हैं या फिर पॉट्टी चेयर पर बैठने से इंकार करता है। ऐसे समय में अगर पैरेंट्स बच्चे को डांटते हैं, तो वे कभी भी दोबारा ट्रेनिंग के लिए तैयार नहीं हो पाते। इस समय पैरेंट्स को धीरज रखकर ही बच्चे को समझाना चाहिए।

रात के समय रखें ध्यान

पैरेंट्स को रात में डायपर छुड़वाने में थोड़ा समय लग सकता है। वैसे तो आमतौर पर बच्चे 4 साल की उम्र तक रात में भी बिना डायपर के सोना सीख जाते हैं। रात में लिक्विड कम दें और सोने से पहले टॉयलेट करवा लें।

निष्कर्ष

जब बच्चा बड़ा होने लगता है, तब डायपर छुड़वाना और टॉयलेट की ट्रेनिंग देना बहुत महत्वपूर्ण है। यह प्रक्रिया एक या दो दिन की नहीं होती, बल्कि पैरेंट्स को धीरज के साथ काम लेना चाहिए और बच्चे को भी स्ट्रेस फ्री रखना चाहिए ताकि वह इसे नेचुरली सीख जाए।

 

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