रिलैक्टेशन (relactation) क्या है? अगर किसी वजह से ब्रेस्टफीडिंग बंद करने के बाद उसे दोबारा शुरू किया जाए तो उस प्रक्रिया को रिलैक्टेशन कहा जाता है। अगर आप भी अपने बच्चे को जन्म के समय किसी कारण से ब्रेस्टफीड नहीं करवा पाईं तो परेशान न हों, आप बाद में भी इसे कर सकती हैं। आप खुद को और बच्चे को दूसरा मौका दे सकती हैं। कई ऐसी मां हैं जो रिलैक्टेशन को सफलतापूर्वक कर चुकी हैं। ऐसी ही एक मां है ठाणे, महाराष्ट्र की रहने वाली निखिता लोगडे जो डिलीवरी के बाद अपनी बच्ची को ठीक तरह से स्तनपान नहीं करवा पाईं लेकिन रिलैक्टेशन प्रक्रिया की मदद से उन्होंने दोबारा स्तनपान मुमकिन कर दिखाया। इस लेख में हम रिलैक्टेशन से जुड़ी चुनौतियां और निखिता के अनुभव पर चर्चा करेंगे और इस विषय पर बेहतर जानकारी के लिए हमने लखनऊ के मां-सी केयर क्लीनिक की लैक्टेशन एक्सपर्ट डॉ तनिमा सिंघल से बात की।
रिलैक्टेशन क्या है और इसकी जरूरत क्यों पड़ती है? (What is relactation and why it is needed)
किसी कारण से ब्रेस्टफीडिंग की प्रक्रिया बंद करने के बाद दोबारा शुरू करने की प्रक्रिया को रिलैक्टेशन कहते हैं। इस प्रक्रिया में ब्रेस्टफीडिंग को गैप के बाद दोबारा शुरू किया जाता है।
- दूध की आपूर्ति कम होना
- मां का बच्चे का दूध न पिला पाना
- बच्चे के दूध पीने की क्षमता में कमी या परेशानी
- तनाव के कारण दूध न निकलना
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इस मां ने रिलैक्टेशन की प्रक्रिया क्यों चुनी?
निखिता मेडिकल फील्ड से जुड़ी हुई हैं इसलिए ब्रेस्टफीडिंग की अहमियत को अच्छी तरह से समझती हैं पर ये मौका जब पहली बार उन्हें मिला तो वो इसका पूरा लाभ अपने बच्ची को नहीं दे पाईं। जिस समय निखिता की डिलीवरी हुई उस समय अस्पतालों में कोविड के केस अधिक थे जिसके कारण स्टॉफ की कमी थी और इलाज की प्रक्रिया पहले जैसी नहीं थी जिसके कारण निखिता अपनी बच्ची को जन्म के चार घंटे के भीतर स्तनपान नहीं करवा सकीं जिसके चलते बच्ची को फॉर्मूला मिल्क देना पड़ा। घर आकर बच्ची ने कुछ दिन मां का दूध पिया लेकिन उसका पेट भरने के लिए फॉर्मूला मिल्क भी देना पड़ता था।
शुरूआत में स्तनपान नहीं करवा सकी वो रिलैक्टेशन की प्रक्रिया अपनाई
निखिता ने बताया कि बच्ची के 6 महीने के होने तक उन्हें ब्रेस्टफीडिंग करवाने में ज्यादा परेशानी नहीं आई पर उसके बाद वो बीमार पड़ी और बच्ची से दूर उन्हें कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा। जब वो लौटीं तो बच्ची को दोबारा ब्रेस्टफीडिंग करवाने में परेशानी हुई। उन्होंने रिलैक्टेशन पर आधारित कई वीडियो देखे पर उन्हें निराशा हाथ लगी, इसके बाद निखिता ने डॉ तनिमा से संपर्क किया और लैक्टेशन की प्रक्रिया को अच्छी तरह समझा, अब निखिता बच्ची को मां का दूध पिला पा रही हैं। डॉ तनिमा ने बताया कि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक आप बच्चे को 2 साल तक स्तनपान करवा सकते हैं, इसलिए आप अपने बच्चे का स्वास्थ्य बेहतर समझती हैं, अगर आपको लगता है कि 6 महीने के बाद भी स्तनपान करवाना चाहिए तो उसे जारी रखने में कोई बुराई नहीं है।
रिलैक्टेशन की प्रक्रिया कैसे पूरी की? (Process of relactation)
निखिता ने बताया कि मैंने निश्चित समय पर मिल्क पंप की मदद से निकालने का प्रयास किया, इसके लिए मैंने डॉक्टर की सलाह पर खुद को तनाव से पूरी तरह दूर रखा। अपनी डाइट पर फोकस किया। इस दौरान डॉक्टर ने मुझे हाइजीन का ध्यान रखने की भी सलाह दी थी। हर दो से तीन घंटे के गैप पर मैं पंप की मदद से मिल्क कलैक्ट करने की कोशिश करती थी, इस दौरान मैंने देखा कि दूध की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ रही है, तब से मुझे कॉन्फिडेंस मिला और अब मैं बेटी के लिए आसानी से मिल्क कलैक्ट कर पाती हूं।
रिलैक्टेशन के दौरान किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा? (Challenges during relactation)
निखिता ने बताया रिलैक्टेशन इतना आसान नहीं था, जब मैंने इस प्रक्रिया की शुरूआत की तब मेरी बच्ची आठ महीने की थी। मिल्क सप्लाई बहुत कम थी जिसके कारण मैं बच्ची को स्तनपान के लिए मना नहीं पाई और बच्ची के साथ न देने के कारण मिल्क सप्लाई बढ़ना भी नामुमकिन लग रहा था, लेकिन एक्सपर्ट की राह के मुताबिक मैंने ये मुश्किल काम कर दिखाया। अब मेरी बच्ची को मां का दूध मिल रहा है और मैं इस बात से खुश हूं। अब मुझे बेटी के लिए फॉर्मूला मिल्क लेने की जरूरत नहीं पड़ती, मां के दूध से ही बच्ची का पेट भर जाता है। डॉ तनिमा ने बताया कि रिलैक्टेशन के जरिए मिल्क सप्लाई को बढ़ाया जाता है पर बच्चा दोबारा मां के संपर्क में आकर ही स्तनपान करे ये जरूरी नहीं है।
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रिलैक्टेशन के दौरान बच्चे को जबरदस्ती ब्रेस्टफीडिंग न करवाएं
डॉ तनिमा ने बताया कि आपको इस बात का खास खयाल रखना है कि बच्चे को रिलैक्टेशन की प्रक्रिया के दौरान जबरदस्ती ब्रेस्टफीडिंग न करवाएं, अगर बच्चा ब्रेस्ट तक नहीं आ रहा है या मां के जरिए दूध नहीं पीना चाहता तो आप बच्चे को कटोरी-चम्मच या बोतल में मां का दूध निकालकर भी पिला सकते हैं, रिलैक्टेशन का मतलब ये नहीं है कि बच्चे को दोबारा मां खुद से चिपकाकर स्तनपान करवा सकती है बल्कि रिलैक्टेशन में मां के शरीर में दूध की मात्रा बढ़ाने पर जोर दिया जाता है। निखिता भी अपनी बेटी को पंप की मदद से दूध कलेक्ट करके बच्ची को दूध पिलाती हैं, इस समय वो बच्ची को दोबारा अपने संपर्क में लाकर ब्रेस्टफीड करवाने का प्रयास कर रही हैं पर अभी पूरी तरह से कामियाबी मिलना बाकी है।
रिलैक्टेशन और डिलीवरी के दौरान बनने वाले ब्रेस्टमिल्क में क्या फर्क है?
रिलैक्टेशन और डिलीवरी के बाद बनने वाला ब्रेस्टमिल्क एक जैसा ही होता है। ये मुमकिन है रिलैक्टेशन की शुरूआत में दूध ज्यादा मात्रा में न आए पर कम हो या ज्यादा ब्रेस्टमिल्क बच्चे के लिए फायदेमंद ही होता है। अगर बच्चे का वजन हर माह बढ़ रहा है और वो अलग से कोई सप्लीमेंट नहीं ले रहा है तो मतलब उसके पेट में पर्याप्त दूध जा रहा है।
ज्यादातर केस में रिलैक्टेशन संभव होने की दर 75 से 80 प्रतिशत होती है, अगर मां को सही गाइडेंस मिले तो वो आसानी से दोबारा ब्रेस्टफीडिंग शुरू कर सकती है। इसके लिए आप अनुभवी लैक्टेशन एक्सपर्ट से संपर्क करें।
मां-सी केयर क्लीनिक की लैक्टेशन एक्सपर्ट डॉ तनिमा सिंघल से आप इस नंबर (9936162348) पर संपर्क कर सकते हैं।
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