विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सलाह के अनुसार सभी नवजात शिशुओं को जन्म के पहले घंटे के बीतर मां का दूध जरूर देना चाहिए। इस दौरान शिशु का एकमात्र पोषण मां का दूध ही होता है। शिशु के जन्म के पहले छह महीने तक मां को स्तनपान जरूर कराना चाहिए। बच्चे को पोषण के लिए सही मात्रा में मैक्रोन्यूट्रिएंट्स और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की जरूरत होती है जो मां के दूध में मौजूद होता है। ब्रेस्टफीडिंग बच्चों की सेहत के लिए भी बहुत जरूरी होता है, मां के दूध का सेवन करने वाले बच्चों में आगे चलकर कई समस्याओं का खतरा कम हो जाता है। लेकिन क्या आपको पता है की बच्चे के जन्म के छह महीने के बाद से उसे कॉम्प्लिमेंटरी फीडिंग (Complementary Feeding) यानि ऊपरी और पूरक आहार की जरूरत होती है। बच्चे के उचित पोषण के लिए छह महीने के बाद मां के दूध के साथ-साथ कॉम्प्लिमेंटरी फीडिंग की सलाह दुनियाभर के एक्सपर्ट डॉक्टर्स भी देते हैं। ब्रेस्टफीडिंग को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से पूरी दुनिया में अगस्त माह के पहले सप्ताह को विश्व स्तनपान सप्ताह (World Breastfeeding Week) के रूप में मनाया जाता है। वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक के मद्देनजर हम आपको शिशुओं के उचित पोषण के लिए पूरक आहार यानि कॉम्प्लिमेंटरी फीडिंग के बारे में बताएंगे। इस विषय को लेकर हमने इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) के चैप्टर इन्फेंट यंग चाइल्ड फीडिंग (आईवाईसीएफ) के चेयरमैन डॉ केतन भारद्वा से बात की। आइये जानते हैं डॉ केतन ने शिशुओं के पूरक आहार यानि कॉम्प्लिमेंटरी फीडिंग को लेकर क्या जानकारी साझा की।
पूरक आहार यानि कॉम्प्लिमेंटरी फीडिंग क्या है? (What is Complementary Feeding?)
जन्म के बाद शिशुओं के उचित और पर्याप्त पोषण के लिए मां के दूध का सेवन करने की सलाह दी जाती है। जन्म के बाद लगभग छह महीने तक सभी नवजात शिशुओं के पोषण का मुख्य माध्यम मां का दूध ही होता है। लेकिन छह महीने की उम्र के बाद बच्चों को अतिरिक्त पोषण की आवश्यकता होती है। जन्म से छह महीने बाद बच्चों के विकास के लिए उन्हें अतिरक्त आहार दिया जाना चाहिए। जन्म के बाद छह महीने तक सिर्फ मां के दूध का सेवन करने के बाद जब बच्चे को अतिरिक्त पूरक आहार दिया जाता है तो इस प्रक्रिया को कॉम्प्लिमेंटरी फीडिंग कहते हैं। इस दौरान शिशुओं को ठोस (मैश) आहार दिया जाता है और उन्हें धीरे-धीरे मां के दूध में मिलने वाले प्रोटीन के अलावा आयरन, कैल्शियम जैसे अन्य महत्वपूर्ण पोषक तत्व दिए जाने चाहिए। डॉ केतन ने हमें बताया कि जब बच्चा जन्म के बाद छह महीने का हो जाता है तो समुचित विकास के लिए प्रोटीन के अलावा एनी पोषक तत्वों की जरूरत होती है। ऐसे में छह महीने के बाद बच्चों को स्तनपान के साथ-साथ थोड़ी मात्रा में ठोस आहार भी दिया जाना चाहिए। आप थोड़ी मात्रा से इसकी शुरुआत करके धीरे-धीरे इसे बढ़ा सकते हैं। बच्चों को ये आहार तब तक दिए जाते हैं जब तक बच्चे खुद से घर में बनने वाले सभी प्रकार के भोजन का सेवन करने लगें।
इसे भी पढ़ें : क्या आपके बच्चे भी दूध पीने में करते हैं आनाकानी? इन तरीकों से उनमें डालें दूध पीने की आदत
शिशुओं को कैसे दिया जाता है पूरक आहार या कॉम्प्लिमेंटरी फीडिंग? (Complementary Feeding Process)
जन्म के छह महीने बाद शिशुओं के उचित पोषण और विकास के लिए पूरक या ऊपरी आहार की जरूरत होती है। इस प्रक्रिया को कॉम्प्लिमेंटरी फीडिंग भी कहा जाता है। बच्चों को छह महीने के बाद धीरे-धीरे ठोस आहार दिया जाना चाहिए। डॉ केतन ने बातचीत के दौरान हमें बताया कि शिशुओं को पूरक आहार देते समय जबरदस्ती नहीं की जानी चाहिए। शुसात में आप बच्चे को एक आहार दे सकते हैं और रोजाना आप इसकी मात्रा में थोड़ी सी बढ़ोत्तरी कर सकते हैं। लगभग चार से पांच दिन बाद जब बच्चे की भोजन के प्रति आदत बनने लगे तो उसे दूसरा आहार देना शुरू करें। इस प्रकार से हर चार से 5 दिन बाद आप बच्चे को एक नया आहार दे सकती हैं। इस दौरान भोजन की मात्रा को अचानक से न बढ़ाएं और बच्चे को उत्साहित होकर फीड न करें। शुरुआत में बच्चे के लिए यह आहार पचाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है इसलिए पहले दिन उसे एक चम्मच आहार ही दें। इस आहार को दिन के हिसाब से बढ़ाते जायें। इससे बच्चे की आहार के प्रति रूचि भी बढ़ेगी और आसानी से यह आहार पच भी जायेगा। लगभग 12 महीने के बाद आप बच्चे को दो से तीन बार भी भोजन दे सकती हैं।
इसे भी पढ़ें : बच्चों को चावल का पानी पिलाने से होते हैं ये 5 फायदे, जानें बनाने का सही तरीका
क्यों जरूरी है शिशुओं को पूरक आहार (कॉम्प्लिमेंटरी फीडिंग) देना? (Why Complementary Feeding Necessary?)
डॉ केतन भारद्वा के अनुसार बच्चों को जन्म के बाद जिस प्रकार से मां का दूध देना जरूरी होता है ठीक उसी प्रकार से उसे जन्म के छह महीने बाद से पूरक आहार दिया जाना चाहिए। जन्म के छह महीने बाद बच्चे को उचित विकास के लिए मां के दूध में मौजूद पोषक तत्वों के अतिरिक्त तमाम पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इस दौरान सिर्फ मां के दूध का सेवन करने से शिशुओं के शरीर का उचित विकास नहीं हो पाता है। यही कारण है की एक्सपर्ट्स और डॉक्टर्स शिशु के जन्म के छह महीने बाद स्तनपान के साथ कॉम्प्लिमेंटरी फीडिंग की सलाह देते हैं। सामान्यतः बच्चे लगभग 2 साल की उम्र के होने तक भोजन ग्रहण करना शुरू कर देते हैं इसलिए शुरुआत में छह महीने के बाद उन्हें उचित पोषण देने के लिए पूरक आहार दिए जाने चाहिए। दुनियाभर में हर साल लाखों की संख्या में बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण जन्म के दो साल तक उचित पोषण न मिल पाना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक जिन बच्चों को जन्म के छह महीने बाद पर्याप्त मात्रा में पूरक आहार नहीं मिलता है उनके कुपोषण का शिकार होने का खतरा और बढ़ जाता है। इसलिए ये बेहद जरूरी है कि जन्म के छह महीने बाद सभी बच्चों को स्तनपान के साथ पूरक आहार दिए जाएं।
इसे भी पढ़ें : बच्चों को सूजी खिलाने के फायदे और सही तरीका
पूरक आहार के रूप में बच्चे को कौन से आहार दिए जाने चाहिए? (What Foods Can Be Given as Complementary Feeding?)
डॉ केतन के मुताबिक बच्चे के जन्म के छह महीने बाद उसके शरीर के विकास के लिए प्रोटीन के अलावा आयरन से भरपूर आहार की जरूरत होती है। बच्चों को पूरक आहार के रूप में ये खाद्य पदार्थ दिए जाने चाहिए।
- आयरन की प्रचुर मात्रा वाले खाद्य पदार्थ।
- इसके बाद आप आहार में धीरे-धीरे एनी चीजों की मात्रा को बढ़ाना शुरू करें।
- बच्चे के अनुकूल फल, सब्जियां और अनाज को भी इसमें शामिल करें।
- विटामिन ए की उचित मात्रा वाले खाद्य पदार्थ।
- हरी सब्जियां और फल।
- कुछ समय के बाद दूध और दूध से बने उत्पादों को भी शामिल करें।
- ध्यान रहे इस दौरान स्तनपान भी बेहद जरूरी है।
कॉम्प्लिमेंटरी फीडिंग के दौरान इन बातों का रखें ध्यान (Remember These Things While Complementary Feeding)
बच्चों को पूरक आहार देते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आपके लिए बहुत जरूरी है। बच्चों के जन्म के छह महीने यानि 180 दिन बाद उन्हें पूरक आहार के रूप में ठोस आहार दिया जाना चाहिए। बच्चे को पूरक आहार देते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जो आहार आप दे रहे हैं उससे बच्चे को कितना पोषण मिल रहा है। बच्चे को पूरक आहार देते समय इन बातों का विशेष ध्यान रखें।
- पूरक आहार देते समय बच्चे को जबरदस्ती खिलाने का प्रयास न करें।
- बच्चे को 6 से 12 महीने की उम्र तक सिर्फ ठोस (मैश किये हुए) और ऐसे खाद पदार्थ दें जो बिलकुल लिक्विड न हों।
- नट्स और अन्य अनाज जो अधिक ठोस होते हैं उन्हें मैश करके बच्चों को दें।
- जब बच्चा 1 साल का हो जाये तो धीरे-धीरे उसे ठोस और लिक्विड आहार देना शुरू करें।
- बच्चे के मसूढ़े मजबूत होते हैं उन्हें चबाने वाले आहार भी दें।
- 1 साल से कम आयु वाले बच्चों को गाय या भैंस का दूध न दें, इसकी वजह से उन्हें समस्या हो सकती है।
- इस दौरान बच्चे के परिवार में फूड एलर्जी का भी ध्यान रखें। अगर माता या पिता को किसी चीज से एलर्जी है तो बच्चे को ऐसा आहार देने से बचें।
- बच्चे को दिए जाने वाले सभी पूरक आहार घर पर तैयार किये जाने चाहिए, किसी भी प्रकार के रेडीमेड या डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
- कॉम्प्लिमेंटरी फीडिंग के दौरान बच्चों को ये आहार देने से बचें (Foods That are Not Good for Infants)
- बच्चों को पूरक आहार के रूप में जल्दी पचने वाले और पौष्टिक आहार देने चाहिए। शुरुआत में लगभग 1 साल तक बच्चे को ऐसा आहार नहीं दिया जाना चाहिए जो आसानी से पच न सके और निगलने में कठिनाई हो। इसलिए पूरक आहार देते समय बच्चे को ये फूड्स देने से बचें।
- अधिक कठोर भोजन देने से यह भोजन बच्चे के गले में फंस सकता है और पचने में भी दिक्कत होती है।
- साबुत नट्स, बीज, कॉर्न, चिप्स, कच्ची गाजर और सेब के टुकड़े जैसे खाद्य पदार्थों से बचें।
- खाने में अतिरिक्त चीनी या नमक मिलाने की जरूरत नहीं है।
- 12 महीने की उम्र तक गाय या भैंस के दूध को पेय के रूप में नहीं देना चाहिए।
- फलों का रस, चाय और कॉफी शिशुओं के लिए फायदेमंद नही होता है इसलिए ऐसे फूड्स से बचें।
इसे भी पढ़ें : घर का खाना नहीं खाता है आपका बच्चा? तो इन 5 तरीकों से खिलाएं जिद्दी बच्चों को हेल्दी फूड्स
बच्चे को छह महीने के बाद पूरक आहार देते समय इस बात का ध्यान रखें कि इस दौरान बच्चे को दिए जाने वाले सभी खाद्य पदार्थ शुद्ध हों। इसके अलावा हर प्रकार के खाद्य पदार्थों को मैश करके या पीसकर देने के बजाय उन्हें सीधे देने का काम करें। इस दौरान बच्चों को घर पर बनें शुद्ध आहार का ही सेवन कराएं। बाजार में मिलने वाले डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का सेवन बच्चों के लिए हानिकारक माना जाता है इसलिए ऐसे खाद्य पदार्थों को पूरक आहार के रूप में इस्तेमाल करने से बचें।
Read More Articles on Parenting in Hindi