
घर में जब शिशु का जन्म होता है तो परिवार वाले अपने-अपने एक्सपीरिएंस से तरह-तरह की सलाह देते हैं। कई बार माता-पिता दूसरों के कहने पर कुछ ऐसी गलतियां कर देते हैं जो बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती हैं। शिशु के लिए पहला साल बहुत ही खास होता है, इसमें वह अपनी मां के दूध के अलावा बाहर का भोजन भी करना शुरू करता है। इस बारे में कई लोगों के सवाल होते हैं कि आखिर बच्चे को किस उम्र से अन्न और फल देना शुरू करना चाहिए। इस बारे में हमने रामहंस चेरिटेबल हॉस्पिटल के आयुर्वेदिक डॉक्टर श्रेय शर्मा (Ayurvedic doctor Shrey Sharma from Ramhans Charitable Hospital) से बात की है, उन्होंने आयुर्वेद के अनुसार बच्चे को क्या और कब खिलाना शुरू करना चाहिए इसके बारे में बताया है।
आयुर्वेद के अनुसार बच्चे को क्या और कब खिलाना शुरू करना चाहिए? - When And What Can Babies Eat According To Ayurveda In Hindi
डॉक्टर ने बताया कि आयुर्वेद में शिशु के लिए दो संस्कार बताए गए हैं। जिसमें पहला है फलप्राशन और दूसरा अन्नप्राशन है। डॉक्टर ने बाताया कि आयुर्वेद के अनुसार, जन्म से 6 महीने तक बच्चों के लिए सबसे उत्तम आहार मां का दूध है। मां का दूध बच्चे की सभी पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करता है और उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी को बढ़ाता है। इसके साथ ही मां का दूध बच्चों के पाचन तंत्र के लिए आसान होता है।
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जब बच्चा 6 महीने का हो जाए तो फलप्राशन संस्कार करना चाहिए। फलप्राशन संस्कार तब शुरू होता है जब बच्चा 6 महीने का हो जाता है। इसमें आप 6 महीने के बच्चे को फल और फलों का पल्प और रस दे सकते हैं। बच्चे को आप केला, सेब प्यूरी के रूप में अंगूठे की मात्रा के बराबर दिन में 1 या 2 बार दे सकते हैं। वहीं जब बच्चे के दांत आने लगें तो अन्नप्राशन करना चाहिए। जिसमें आप बच्चे को चावल, गेहूं, जौ आदि खिला सकते हैं। बच्चों को अन्न दिन में 1 से 2 बार दिया जा सकता है लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इसका आटा बनाकर अच्छे से पकाकर ही बच्चे को खिलाएं। जिससे कि बच्चा इसे आसानी से पचा सके।
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बच्चे को क्या-क्या खिला सकते हैं?
जब बच्चे के दांत आने लगें तो आप हल्के अनाज के अलावा बच्चे को चावल का पतला पानी दे सकते हैं, यह हल्का और आसानी से पचने वाला होता है। इसके अलावा फल और सब्जियों की प्यूरी, गाजर, सेब, केला की प्यूरी बच्चों को दी जा सकती है। बच्चों को सीमित मात्रा में मूंग दाल का पानी भी दिया जा सकता है यह प्रोटीन का अच्छा सोर्स है और यह पाचन के लिए भी हल्का होता है।
आयुर्वेद के अनुसार, बच्चों के आहार को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए। शुरुआत में मां का दूध, फिर फल और ठोस आहार और अंत में परिवार का सामान्य आहार बच्चों के लिए उचित होता है। यह ध्यान में रखें कि बच्चे को सभी आवश्यक पोषक तत्व मिल रहे हों और उसका पाचन तंत्र सही तरीके से काम कर रहा हो। आयुर्वेद में स्वस्थ और संतुलित आहार के माध्यम से बच्चों के संपूर्ण विकास पर जोर दिया जाता है, जिससे वे शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बन सकें।
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