Understanding Autism In Children In Hindi: ऑटिज्म को हम डेवेलपमेंटल डिसएबिलिटी के रूप में जानते हैं। जब किसी बच्चे को ऑटिज्म होता है, तो उसे दूसरों के साथ कम्युनिकेट करने, नए स्किल सीखने में दिक्कतें आती हैं। यहां तक कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे सामान्य बच्चों से बिल्कुल अलग होते हैं, उन्हें रोजमर्रा के कामकाज में भी तकलीफें हो सकती हैं। हालांकि, ऑटिज्म के लक्षण हर बच्चे में अलग-अलग तरह से नजर आते हैं। इसलिए, इन बच्चों के साथ डील करने के लिए बहुत ज्यादा समझदारी और सेंसिटिविटी का होना जरूरी है। बहरहाल, क्या आप जानते हैं कि जब किसी पेरेंट्स को पहली बार यह पता चलता है कि बच्चे को ऑटिज्म है, तो उन्हें किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है? ज्यादातर पेरेंट्स इस बात से अनजान हैं कि जब उन्हें पहली बार यह पता चले कि उनके बच्चे को ऑटिज्म है, तो इस स्थिति में उन्हें क्या करना चाहिए। घबराइए नहीं! यहां हम आपको क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और सुकून साइकोथैरेपी सेंटर की फाउंडर दीपाली बेदी द्वारा बताए गए कुछ टिप्स दे रहे हैं। (Bachche Ko Autism Hai To Kya Karein)
जब पहली बार पता चले कि बच्चे को ऑटिज्म है तो क्या करें?- First Steps After Autism Diagnosis In Hindi
प्रोफेशनल हेल्प लें
बच्चे को ऑटिज्म है, यह जानने के बाद अक्सर पेरेंट्स घबरा जाते हैं और उन्हें लगता है कि अब उनके बच्चे के भविष्य का क्या होगा। इस तरह के ख्याल अपने मन से निकाल दें। सबसे पहले आप एक्सपर्ट की सलाह ले सकते हैं। वे आपको समझाएंगे कि जब बच्चे को ऑटिज्म होता है, तो उसके साथ कैसे डील किया जा सकता है और अपनी पेरेंटिंग को हेल्दी बनाए रखा जा सकता है। इसमें चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट, बिहेवियरल थेरेपिस्ट आपकी मदद कर सकते हैं।
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इंटर्वेंशन प्रोग्राम में हिस्सा लें
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को तरह-तरह की थेरेपी की जरूरत होती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि ये बच्चे बोलना, दोस्ता बनाना बहुत देरी से सीखते हैं। ये बच्चे आसानी से लोगों के साथ घुल-मिल नहीं पाते हैं। ऐसे मं इंटर्वेंशन प्रोग्राम के तहत इन बच्चों को स्पीच थेरेपी और फिजिकल थेरेपी मिलती है। इससे बच्चा धीरे-धीरे ही सीह लेकिन बोलना और दूसरों के साथ कम्युनिकेट करना सीखता है।
सपोर्टिक नेटवर्क
जब यह पता चले कि बच्चे को ऑटिज्म है, तो जरूरी है कि पेरेंट्स अपने लिए सपोर्टिव नेटवर्क बनाएं। सपोर्टिव नेटवर्क का मतलब है कि ऐसे पेरेंट्स के साथ घुलना-मिलना जनके बच्चों को ऑटिज्म है। इससे आपको यह अहसास होगा कि इस दुनिया में आप अकेले नहीं हैं, जिनके बच्चे को ऑटिज्म है। इसके साथ ही उनके साथ अपने मन की बातें शेयर करने से अपनी पेरेंटिंग स्टाइल में और सुधार कर सकेंगे।
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पेरेंटिंग स्टाइल में बदलाव
जब बच्चे को ऑटिज्म को, तो बहुत जरूरी है कि पेरेंट्स अपनी पेरेटिंग स्टाइल में कुछ जरूरी बदलाव करें। ध्यान रखें कि आप अपने ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे के साथ नॉमर्ल बच्चों की तरह बिहेव नहीं कर सकते हैं। पेरेंट्स को समझना होगा कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे बड़े-बड़े कमांड को सीख या समझ नहीं पाते हैं। उनके साथ छोटे-छोटे वाक्यों में बातचीत करनी पड़ती है, खुद को थोड़ा ज्यादा सेंसिटिव बनाना होता है और अपने पोस्चर-जेस्चर में भी बदलाव करना होता है।
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एंग्जाइटी को मैनेज करें
बच्चे को ऑटिज्म है, यह जानने के बाद ज्यादातर पेरेंट्स को एंग्जाइटी हो जाती है। लेकिन, इस बात को याद रखें कि आपको स्ट्रेस नहीं लेना या परेशान होने से बचना है। इसके लिए, आप क्या कर सकते हैं? इसके लिए,आप अपनी एंग्जाइटी को मैनेज करने की कोशिश कर सकते हैं। एंग्जाइटी को कम करने के लिए जरूरी है कि आप ये समझें कि बच्चे को किस-किस तह की परेशानी होती है और उन्हें आप कैसे हेल्प कर सकते हैं ताकि वे खुद अपनी समस्याओं के साथ डील कर सके।
FAQ
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार के बच्चों में क्या लक्षण दिखाई देते हैं?
आमतौर पर जिन बच्चों को ऑटिज्म होता है, उनके लक्षण तीन से कम उम्र में ही दिखने लगते हैं। लक्षणों की बात करें, तो बच्चे में अटेंशन की कमी, कम्युनिकेशन में दिक्कत और भाषा सीखने में दिक्कतें आने लगती हैं।ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे कब बोलते हैं?
आपने देखा होगा कि सामान्य बच्चे 8-9 महीने के बाद से ही छोटे-छोटे शब्द बोलने लगते हैं, जैसे मां, पापा, दादा आदि। लेकिन, ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को बोलने में बहुत समय लगता है और उन्हें सामान्य बच्चों की तरह स्पष्ट शब्द या वाक्य बोलने में कठिनाई होती है।ऑटिज्म का सबसे अच्छा इलाज क्या है?
ऑटिज्म कोई ऐसी बीमारी नहीं है, जिसका दवा से इलाज किया जा सके। यह डेवेलपमेंट डिस्ऑर्डर है। इसके लिए बच्चे को एक्सपर्ट की देखरेख में थेरेपी दी जाती है। हां, जरूरी हुआ तो डॉक्टर कुछ दवा दे सकते हैं। लेकिन, इस संबंध में आपको डॉक्टर से ही संपर्क करना चाहिए।