Can Too Much TV Cause Autism In Hindi: ऑटिज्म, यह शब्द सुनते ही कई पैरेंट्स के चेहरे पर मायूसी छा जात है। क्योंकि ऑटिज्म बच्चों में होने वाली एक बीमारी है। इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस्ऑर्डर के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो यह समस्या वयस्कों में भी हो सकती है। हालांकि, जन्म के बाद दो साल के भीतर ही इस बीमारी का पता चल जाता है। यह एक तरह की मेंटल डिसएबिलिटी है। ऑटिज्म की वजह से बच्चों की सीखने, बोलने, बिहेव करने और कम्युनिकेट करने में दिक्कतें आती हैं। ध्यान रखें कि ऑटिज्म की गंभीरता व्यक्ति दर व्यक्ति अलग-अलग हो सकती है। बहरहाल, हाल के सालों में हमने देखा है कि ऑटिज्म के मामले बढ़े हैं। कई लोगों का दावा है कि ऑटिज्म जैसी मेंटल कंडीशन टीवी देखने की वजह से भी बच्चों को हो सकती है। यहां यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वाकई टीवी देखने को ऑटिज्म हो सकता है? आइए, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और सुकून साइकोथैरेपी सेंटर की फाउंडर दीपाली बेदी से जानते हैं इसकी क्या सच्चाई है।
क्या वाकई ज्यादा टीवी देखने से बच्चों को ऑटिज्म हो सकता है?- Can Watching Too Much TV Make A Child Autistic In Hindi
अमेरिकन एकेडेमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुसार, "यह सच है कि टीवी देखने से बच्चों की मेंटल ग्रोथ प्रभावित होती है। उनकी कम्युनिकेशन स्किल कमजोर हो जाती है, उन्हें दूसरों के साथ बातचीत करने, सोशल सर्कल बनाने में भी तकलीफें आती हैं। यहां तक कि ऐसे बच्चे सामान्य भाषा सीखने में भी अन्य बच्चों की तुलना में अधिक समय लगाते हैं।" जहां तक सवाल इस बात का है कि क्या वाकई बहुत ज्यादा टीवी देखने से ऑटिज्म हो सकता है? इसको लेकर अमेरिकन एकेडेमी ऑफ पीडियोट्रिक्स में प्रकाशित लेख के अनुसार,"जब बच्चे बहुत छोटे से ही टीवी देखने लगते हैं, तो उनमें ऑटिज्म जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं। लेकिन, वह ऑटिज्म नहीं होते हैं।’ इस वेबसाइट से आगे पता चलता है, "ऑटिज्म और स्क्रीन टाइम को लेकर कई बच्चों पर अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में कई बच्चों पर ऑटिज्म स्क्रीनिंग टेस्ट किया गया। इसके रिजल्ट ये बताते हैं कि टीवी देखने की वजह से बच्चों को ऑटिज्म नहीं होता है। हां, बच्चों का बिहेवियर में बदलाव हो सकता है।"
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स्क्रीन टाइम का बच्चों की मेंटल हेल्थ पर असर
भाषा सीखने में कठिनाई
जो बच्चों बहुत अधिक समय टीवी पर बिताते हैं, खासकर 18 महीने से कम उम्र के बच्चे, उनकी मेंटल डेवेलपमेंट धीमी हो जाती है। ऐसे बच्चों को कम्युनिकेशन लैंग्वेज सीखने में बहुत समय लग जाता है। यहां तक कि जो भाषा घर में रोजाना बोली जाती है, उसमें भी ये बच्चे कम्युनिकेट नहीं कर पाते हैं। ये बच्चे स्क्रीन में बोली जानी वाली भाषा को ही समझते हैं।
सोशल स्किल में कमी
जिन बच्चों का स्क्रीन टाइम ज्यादा है, उनमें सोशल स्किल भी न के बराबर होते हैं। ऐसे बच्चे अपने हमउम्र ब्रच्चों के साथ खेलने-कूदने में सहज नहीं होते हैं। ऐसे बच्चों को जब भी उनके हमउम्र बच्चों के साथ खेलने के लिए भेजा जाता है, तो वे असहज हो जाते हैं और रोने लगते हैं। ऐसे बच्चे फेस टू फेस इंटरैक्शन से भी बचते हैं।
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अटेंशन की कमी
जो बच्चे बहुत ज्यादा समय स्क्रीन पर बताते हैं, उनमें अटेंशन की कमी होने लगती है। इसका मतलब है कि ये बच्चे किसी एक चीज पर लंबे समय तक फोकस्ड नहीं रह पाते हैं। इन्हें कुछ करने को कहा जाता है, तो वह भी इन्हें समझने में दिक्कत आती है।
एक्सपर्ट की सलाह
स्क्रीन देखने की वजह से बच्चों में ऑटिज्म जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं। इसे वर्चुअल ऑटिज्म कहा जाता है। इस स्थिति में भी बच्चे की डेवेलपमेंट धीमी हो जाती है और बातचीत करने में भी उन्हें कठिनाई आती है। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि वर्चुअल ऑटिज्म को रिवर्स नहीं किया जा सकता है। बच्चे की स्पेशल देखरेख और एक्सपर्ट की सलाह से बच्चे की कंडीशन में सुधार किया जा सकता है।
FAQ
क्या टीवी देखना बच्चों में ऑटिज्म का कारण बनता है?
अब तक ऐसे कोई तथ्य सामने नहीं आए हैं, जिससे यह साबित हो सके कि टीवी के कारण ऑटिज्म होता है। हां, अगर बच्चों घंटों-घंटों टीवी के सामने रहता है, तो उनका ब्रेन डेवेलपमेंट धीमा हो जाता है।ऑटिज्म होने का मुख्य कारण क्या है?
जेनेटिकल कारणों की वजह से बच्चों में ऑटिज्म हो सकता है।क्या ऑटिस्टिक बच्चों के लिए टीवी देखना अच्छा है?
ऑटिस्टिक बच्चों को टीवी देखने या स्क्रीन पर समय नहीं बिताना चाहिए। ऑटिस्टिक बच्चों का मेंटली विकास पहले से ही धीमा होता है। ऐसे में अगर उन्हें टीवी देखने दिया जाए, तो उनकी कम्युनिकेशन स्किन डेवेलप नहीं होगी और उनकी कंडीशन दिन पर दिन बिगड़ सकती है।