
पेरेंट्स को अपने बच्चों की शारीरिक सेहत का ध्यान होता है इसलिए उनकी शरारतों को नजरअंदाज कर देते हैं लेकिन बच्चों के दिमाग का विकास हो रहा है या नहीं, इसका ध्यान रखना भी आपका फर्ज है। अगर बच्चे का विकास नहीं हो रहा है तो हो सकता है कि उसे अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर हो। इस लेख में हम आपको एडीएचडी यानि अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर के बारे में सबकुछ। साथ ही जानें लक्षण, उपचार, कारण के बारे में...
अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर के लक्षण
- ऐसे बच्चे कभी स्थिर नहीं बैठ पाते। उन्हे देखकर महसूस होता है कि उनके अंदर कभी न रुकने वाला कोई यंत्र है, जो उन्हें हर वक्त चार्ज रखता है।
- अपने बोलने की आदत पर कंट्रोल न करना।
- बिना किसी कारण उझल-कूद करना।
- बच्चों का जल्दी ध्यान भटक जाना।
- एक काम को छोड़कर दूसरा काम शुरू कर देना।
- हर चीज को भूलना और सही ढंग से काम नहीं कर पाना।
- अपनी पसंद का काम भी अधूरा छोड़ देना।
- होमवर्क सही समय पर पूरा न करना और अपने पेन-पेंसिल, कॉपी आदि को बार-बार खोना।
- पूरी बात सुने बिना जवाब देना और दूसरों की बातचीत में बोलना।
- हर बात पर चिल्लाना, झगड़ना, रोना या बेवजह झगड़ा करना।
- अपनी भावानाओं पर नियंत्रण न रखना।
- बिना सोचे-समझें अपनी बात रखना।
पेरेट्स को क्या करना चाहिए
बच्चों के दिमाग में केमिकल्स के असंतुलन के कारण उनका व्यवहार बेकाबू हो जाता है। ऐसे में माता-पिता का धैर्य रखना बहुत जरूरी है। पेरेंट्स को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए...
- उनकी दिनचर्या बनाएं और उन्हें उसे पालन करने के लिए प्रेरित करें।
- अगर बच्चा कोई अच्छा काम करता है तो उसे प्रोत्साहित करें।
- स्कूल में अच्छे नंबर लाने के लिए उनके दिमाग पर जोर न दें।
- बच्चे के क्लास टीचर से संपर्क करें। उन्हें अपने बच्चे की इस बीमारी के बारे में बताएं और उनसे अनुरोध करें कि वे आपके बच्चे को खिड़की के पास न बैठने दें।
- अगर बच्चे से कोई भूल या गलती हो जाए तो उसे सबके सामने न डांटे बल्कि अलग से ले जाकर समझाएं।
- ऐसे बच्चों की काउंसलिंग और उपचार बेहद जरूरी है। जल्दी असर दिखने पर उपचार बीच में न छोड़ें।
- अगर बच्चों को उपचार समय पर मिले तो वे भविष्य में सामान्य जीवन जी सकते हैं।
एडीएचडी के लक्षण और उपचार
इस बीमारी की जड़ें चार साल की उम्र से ही बच्चे के ज़हन में पैर जमाना शुरू कर देती हैं। ऐसे में अगर आपको इस बीमारी के लक्षण दिखें तो आप तुरंत स्कूल के काउंसलर से बात करें। आपको एक प्रश्नावली भी मिलती है, जिसे पेरेंट्स को और स्कूल के टीचर को भरना होता है। अगर बच्चे को एडीएचडी की समस्या है तो दोनों के जवाब काफी हद तक मिलते-जुलते रहेंगे।
ऐसे बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाना बहुत जरूरी होता है। ऐसे बच्चों को काउंसलिंग दी जाती है, जिसमें सीखाया जाता है कि वे अपने गुस्से पर नियंत्रण कैसे करें, अपनी बारी की प्रतिक्षा करें, हर काम को सोच-समझकर करें, दूसरों की मदद करना, शारीरिक गतिविधियों पर नियंत्रण करना आदि इसी काउंसलिंग का हिस्सा होता है।
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