
गर्भ में पल रहे बच्चे का वजन सही होना बेहद जरूरी है। दरअसल, ये बच्चे की ग्रोथ और उसकी सेहत के बारे में काफी कुछ बताता है। इसे ऐसे समझें कि भ्रूण के स्वस्थ विकास की निगरानी करने, गर्भ के अंदर के विकास (intrauterine growth restriction) या संभावित समस्याओं का पता लगाने में भ्रूण का वेट काफी मददगार है। इसके अलावा भ्रूण का वजन डिलीवरी और नवजात शिशु के स्वास्थ्य का पूर्वानुमान लगाने के लिए भी जरूरी है क्योंकि कम और अधिक दोनों प्रकार का वजन, बच्चे के जन्म और समस्याओं को प्रभावित करते हैं। ऐसे में आज हम बात करेंगे कि गर्भ में 9 महीने के बच्चे का वजन कितना होना चाहिए (what should be the weight of baby in 9th month of pregnancy) जानते हैं इस बारे में Dr. Shobha Gupta, renowned IVF Specialist and the Medical Director of Mother's Lap IVF Centre, New Delhi से।
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भ्रूण के विकास के लिए वजन का जानना क्यों जरूरी है?
Dr. Shobha Gupta बताती हैं गर्भ में 9 महीने के बच्चे का वजन कितना है वो इसकी सेहत को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है इसलिए हर अल्ट्रासाउंड के साथ डॉक्टर बच्चे के वजन को जरूर देखते हैं और कम होने पर इसे बढ़ाने पर जोर देते हैं। दरअसल, भ्रूण के विकास संबंधी समस्याओं का पता लगाने के लिए इसके वजन के बारे में जानना जरूरी है। इससे पता चलता है कि शिशु का विकास बहुत धीमा (IUGR) है या बहुत तेज जो खराब पोषण, प्लेसेंटा संबंधी समस्याओं या जेस्टेशनल डायबिटीज जैसी समस्याओं का संकेत हो सकता है। दरअसल, बच्चे का कम वजन, प्रीटर्म डिलीवरी, इंफेक्शन, सांस लेने में समस्या और विकास में देरी के जोखिम का संकेत हो सकता है। इसके अलावा डिलीवरी को सही से प्लान करने के लिए भी भ्रूण के वजन को जानना बेहद जरूरी है।
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इतना ही नहीं, शिशु का वजन कम है तो आहार, आराम या अन्य उपायों में बदलाव की जरूरत होती है और अगर वजन ज्यादा है, तो यह डायबिटीज का संकेत हो सकता है। ऐसे में शुगर को बेहतर ढंग से मैनेज करना काफी जरूरी हो जाता है। जन्म के समय शिशु का आकार उसके दीर्घकालिक स्वास्थ्य, विकास और यहां तक कि बाद में होने वाली गंभीर बीमारियों के जोखिम को भी प्रभावित कर सकता है।

गर्भ में 9 महीने के बच्चे का वजन कितना होना चाहिए?
डॉ. शोभा गुप्ता के अनुसार, 9 महीने (38-40 सप्ताह) की गर्भावस्था में एक स्वस्थ शिशु का गर्भ में वजन आमतौर पर 2.8 किलोग्राम से 3.5 किलोग्राम के बीच होता है। हालांकि, वह इस बात पर जोर देती हैं कि केवल वजन ही शिशु के स्वास्थ्य का निर्धारण नहीं करता।
अगर विकास नियमित हो और सभी मापदंड सामान्य हों, तो थोड़ा छोटा या बड़ा शिशु भी पूरी तरह स्वस्थ हो सकता है। डॉक्टर केवल वजन पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय समग्र विकास, ब्लड सर्कुलेशन, बच्चे की मूवमेंट और गर्भनाल के स्वास्थ्य का आकलन करते हैं। बस जरूरी है एसर ऐसा शिशु है जो अच्छी तरह से विकसित हो रहा हो और सुरक्षित प्रसव के लिए तैयार हो।
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निष्कर्ष
अंत में डॉ. शोभा गुप्ता बताती हैं कि '' हर प्रेग्नेंसी अलग और अद्वितीय होती है। पेट के पानी का स्तर या शिशु का वजन जैसी संख्याएं चिकित्सकीय रूप से हमारा मार्गदर्शन करती हैं, लेकिन वास्तव में जरूरी है समय पर निगरानी, संतुलित स्वास्थ्य और विशेषज्ञ की देखरेख में प्रक्रिया पर भरोसा करें। सही मार्गदर्शन से, मां और शिशु दोनों की सेहत को सही रखने के साथ पूरी प्रेग्नेंसी हेल्दी तरीके से बिताने में मदद करती है।
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FAQ
प्रीटरम डिलीवरी का मतलब क्या होता है?
प्रीटरम डिलीवरी का मतलब है शिशु पहले पैदा हो गया है। ऐसे में 37 सप्ताह पूरे होने से पहले बच्चे की डिलीवरी करवानी पड़ती है। प्रीटर्म जन्म को गर्भकालीन आयु के आधार पर कई श्रेणियों में बांटा गया है जिसमें अर्ली प्रीटर्म में बच्चा 28 सप्ताह से पहले जन्म ले लेता है। उसके ऊपर के प्रीटर्म में 28 से 32 सप्ताह के बीच पैदा हो जाता है और अंतिम प्रीटर्म में बच्चा 32 से 37 सप्ताह के बीच पैदा हो जाता है।प्रीमैच्योर डिलीवरी के क्या कारण हैं?
प्रीमैच्योर डिलीवरी समय से पहले की डिलीवरी (Premature Delivery) होती है जो कि इंफेक्शन, डायबिटीज, हाई बीपी, मल्टीपल प्रेग्नेंसी और गर्भाशय ग्रीवा की समस्याओं का कारण बन सकती है।पेट में बच्चा ठीक है कैसे पता लगाएं?
पेट में बच्चा ठीक है इसका सबसे बड़ा संकेत है शिशु की मूवमेंट यानी फिटल मूवमेंट जो कि मां को महसूस होती रहती है। इसके अलावा नियमित अल्ट्रासाउंड और डॉक्टर की जांच से भी इसका पता लगाया जा सकता है।
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Dec 30, 2025 15:25 IST
Published By : Pallavi Kumari
