आपकी प्रेग्नेंसी वायबल है या फिर नॉन वायबल, यह बात प्रेग्नेंसी की शुरुआत में ही तय होती है। इसलिए इस दौरान खुद का ख्याल रखना और प्री नटाल स्क्रीनिंग और डॉक्टर का अपॉइंटमेंट लेना काफी जरूरी हो जाता है। लेकिन हर मां को यह पता होना चाहिए कि आखिर इस प्रकार की प्रेग्नेंसी होती क्या हैं और प्रेग्नेंसी में वायबलिटी कौन कौन से फैक्टर्स तय करते हैं। पहले तो आपका जानना जरूरी है कि यह वायबल प्रेग्नेंसी क्या होती है? मदरहुड हॉस्पिटल में सीनियर आब्सट्रिशियन एंड गायनोकोलॉजिस्ट डॉ मनीषा रंजन बताती हैं कि यह ऐसी प्रेग्नेंसी है जिसमें बच्चा एक समय के बाद पेट के बाहर भी आसानी से रह सकता है। यह प्रेग्नेंसी अलग अलग फैक्टर्स पर निर्भर करती है जैसे गैस्टेशनल एज, बच्चे के जन्म के दौरान उसका वजन, तकनीकी इंटरवेंशन। 22 से 25 हफ्तों के दौरान डॉक्टरों को यह पता लग जाता है कि यह प्रेग्नेंसी वायबल है या नहीं। ऐसा अल्ट्रा साउंड द्वारा पता किया जा सकता है। वायबल का मतलब यह नहीं होता कि बच्चा पूरे 9 महीने के बाद ही पैदा होगा।
शुरुआत में वायब्लिटी स्कैन
यह स्कैन प्रेग्नेंसी के 6 से 10 हफ्तों के बीच होता है। इसमें पेट में कितने बच्चे हैं यह देखा जाता है। साथ ही बच्चे की धड़कन और अन्य सामान्य चीजों के बारे में जांच की जाती है। अगर आपको पहले कभी मिसकैरेज हुआ है और इस प्रेग्नेंसी में ब्लीडिंग या दर्द महसूस हो रहा है तो यह स्कैन जरूर करवाना चाहिए। अगर बच्चे में धड़कन होती है, वह बढ़ रहा होता है तो उसे वायबल प्रेग्नेंसी (Viable Pregnancy) कहा जाता है।
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प्रेग्नेंसी की वायबिलिटी कैसे तय होती है?
मां की सेहत पर : मां की उम्र, उसके पहले होने वाले गर्भपात, शारीरिक स्थिति भी बच्चा किस तरह विकसित हो रहा है इस बात को निर्भर करती हैं।
क्रोमोसोमल एब्नॉर्मीलिटी : बहुत से केसों में इस तरह की असमानता का शुरुआत में पता नहीं लग पाता है जिस कारण प्रेग्नेंसी वायबल है या नहीं इस बात का पता भी देर से ही लगता है।
नॉन वायबल प्रेग्नेंसी (Non Viable Pregnancy)
नॉन वायबल प्रेग्नेंसी के दौरान बच्चे के बच पाने के काफी कम चांस होते हैं और इस केस में बच्चे का विकास भी नहीं होता है। अगर शुरुआत के कुछ हफ्तों में नॉन वायबल प्रेग्नेंसी का पता चल जाता है तो इसमें अबॉर्शन या मिसकैरेज हो जाता है। इसके लक्षणों में दर्द होना और ब्लीडिंग होना शामिल होता है। पेल्विक अल्ट्रा साउंड से इसका पता किया जा सकता है।
नॉन वायबल प्रेग्नेंसी के कारण
मोलर प्रेग्नेंसी : इस तरह की प्रेग्नेंसी में यूटरस के अंदर बच्चा बनने की बजाए एक ट्यूमर या असामान्य तरह का विकास होना शुरू हो जाता है। इसके लक्षणों में ब्लीडिंग होना, वेजाइनल डिस्चार्ज दिखना, काफी असहज महसूस होना और हाइपो थायरॉयडिज्म शामिल होते हैं।
केमिकल प्रेग्नेंसी : ऐसा तब होता है जब कंसीव करने के तुरंत बाद ही बच्चा गर्भ में मर जाता है। यह प्रेग्नेंसी शुरुआत के कुछ ही हफ्तों तक ठहरती है। इसमें प्रेग्नेंसी टेस्ट में तो पॉजिटिव दिखता है लेकिन बच्चे का विकास न होने के कारण पेट नहीं निकलता है।
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कुछ अन्य कारण : नॉन वायबल प्रेग्नेंसी के कुछ अन्य कारणों में समय से पहले बच्चे का जन्म होना, बिना धड़कन का बच्चा होना और इंट्रा यूटरिन फेटल इंफेक्शन शामिल होते हैं।
एक्टोपिक प्रेग्नेंसी : जब इंप्लांटेशन यूटरस से बाहर हो जाता है तो इस केस में भी नॉन वायबल प्रेग्नेंसी देखने को मिलती है।
नॉन वायबल प्रेग्नेंसी से दवाइयों या फिर डॉक्टर द्वारा होने वाली सर्जरी से निजात पाई जा सकती है। इसलिए पहले ही वायबिलिटी स्कैन करवा लें ताकि इन सब स्थितियों के बारे में जान सकें।
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